Book Title: Sushil Nammala
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram

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Page 729
________________ 678 ममालाया 302 647 120 271 250 1010 227 सर्पः 2388 सरिद्वरा 1886 / सर्वभक्ष: सरीसषः ___ 280,2354 | सर्वभुक सरूप: 2656 सर्वभूषकः सरोरुहासन: सर्वमङ्गला सर्गः 2502 सर्वरज। सर्जः 2002 सर्वरत्नक: 2353 | सर्वरस: सर्पकाय: 2374 सर्व रसाग्र सर्पभुक् | सर्वलोहः सर्पमणिः 1040 सर्वविधा सर्पराजः 2365 सर्वशः सर्पहा सर्वसहा सारातिः 2352 सर्वसहननं सपिः 608 सर्वाङ्ग सर्व 2605 सर्वार्थसिद्धा सर्व केशी 483 सन्निभक्षकः सर्वग्रन्थिक सर्वानीनः सर्वतः 2788 सर्वानुभतिः सर्वतोभद्र : 2008,2816,2026 सर्वास्त्राः सर्वदमः 1136 | सवौधः सर्वदमनः सर्षपः सर्वदर्शी सला सर्वदा 2761 / सल्लकी सर्वदुःखक्षयः 46 सलवणं सर्वधात्री 312 / संलग्नं सर्वधुरीण। 2276 / सलयः 2524,1018 588 1136 373 2637 1565 1308 .236 2352 646 646 40 340 1308 2161 951 2164 1800 2338 46.

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