Book Title: Sushil Nammala
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram

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Page 854
________________ ( 71 ) . स्वाध्याय, मनन तथा तत्वचिंतन. ऐसे महान् तप है जिनकी साधना से प्रागमा बुधि से अतीत के मुक्ता अन्वेषित कर साहित्य के कोष को समृद्ध बनाया जाता है। प्राचार्य श्री का प्रयास इस रुप में वरदान तुल्य है। वर्तमान भौत्तिक जीवन में प्रागमों की ज्ञान-गंगा जन मानस तक लाकर आध्यात्मिक उर्वरता प्रदान करने की र प्रत्यन्त आवश्यकता है। इस प्रकार का भगीरथ प्रयास भौतिक जिजीविषा से मुक्त प्राचार्य, मुनि ही कर सकते है तथा भौतिक सुखों को मृगतृष्णा में भटकते जीवों को शाश्वत् मोक्ष सुख प्रदान कर सकते है। शिक्षा मोक्ष देने वाली हो। 'सा विद्या या विमुक्तये' प्राज की शिक्षा मुक्त रहने के लिये नहीं भौत्तिक बन्धनों का हेतु बन गई है। - सम्यक-ज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है। समाज में नतिक एवं चारित्रिक शुद्धता के विकास के लिये इस प्रकार 4 की कृतियों प्रकाशस्तभ का कार्य करती है। . सम्यक-दर्शन, सम्यक-ज्ञान एवं सम्यक-चारित्र्य की रत्न त्रयो का त्रिवेणी संगम आध्यात्मिक एवं मानसिक र संतुष्टि प्रदान कर भव भव भटकते भविजन को कर्मो के पाश M से मुक्त करा कर मोक्ष का पथिक बनाता है। RAKAARTHATARTHATAENELORSERIES RAIIAN

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