Book Title: Sushil Nammala
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram

View full book text
Previous | Next

Page 853
________________ * मन्तव्य * Harssesoxercensore न वि अत्थि न वि अहो ही, सज्झाय समं तपो कम्मं // वृत भा० 1147 जैनधर्म दिवाकर राजस्थान दीपक, मरुधर देशोद्धारक शाख-विशारद साहित्य-रत्नकवि भूषणादि भूषितोपाधि श्री श्री श्री 1008 श्रीमद् विजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराज सा० द्वारा रचित 'सुशीलनाममाला' ग्रन्थ का अवलोकन ___ करने का सुअवसर मिला, सम्पूर्ण ग्रन्थ अंपने मौलिक स्वरुप में अनूठा ग्रन्थ है / यह ग्रन्थ शब्द कोष के रुप में होते हुए भी जैन तत्व दर्शन, जैनागमों के सद्धान्तिक विश्लेषण तथा जन कथा साहित्य की परंपरानों से सुसम्पन्न है / विषय का प्रस्तुतीकरण सुबोध एवं साहित्यिक रसानुभूति से युक्त होने से व्याकरण विषय की निरसता नहीं है तथा साधारण के लिये समझने योग्य है। आपने इस ग्रन्थ को कोष के रुप में प्रस्तुत करते हुए भी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक इति वृत्तात्मकत्ता से सटीक एवं कलात्मक बनाया है जो इस पुस्तक की अपनी विशेषता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878