Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१०१
तं जहा
भयवं ! चउगइ - संसार- - दुक्खं भीयाण भव्व - भवियाणं । सरणं परं तुमं चिय सरण - विहीणाण दीणाणं । । ११२८ । । भव्वत्तणं पि नूणं तुम्ह पसाएण हौइ जीवाणं । अहवाणुहवंति सया अणिमित्त सुबंधवा गरुया ॥११२९॥ भाविंति पाणिणो जे दंसण - रहिया वि दंसणं तुम्ह ।
( १७३ - अ) भव - दुक्खहरं पावंति दंसणं ते जिनिंदस्स ॥ ११३० ॥ अज्ज 'कयत्थो जम्मो अज्ज कयत्थं सुजीवियं मज्झ ॥
जं तुम्ह दंसणामय - रसेण सित्ताइं णयनाई ॥ ११३१॥
इय जाव रायधूया करे गुण - कित्तणं सुसाहूणं । ता तूर- सरो तेसिं संकंतो कन्न- विवरेसु ॥१९३२ ॥
तं निसुणिऊण अवही पउंजिओ जाव मुणिवरिंदेहि ।
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ता विन्नायं सव्वं आगमणं राय धूयाए ॥ ११३३॥ उ (१७३ - ब) म्मीलिय- नयण - जुओ मउलीकय - सेय - झाण-वावारो । सिढिलीकय - सव्वंगो अणिरंभिय- वाय-मण-कायो ॥ ११३४ ॥
जेट्टो मुणीण सुमुणी सिवउर गोउर कवाड - वज्जं व । दे से धम्मलाभं पसण्ण- गंभीर - वाणीए ॥११३५ ॥ जंपेइ मुणी भद्दे ! चएवि तं तिरिय संभवं दुक्खं । नवकार-लाभ-णियम-फलेण जाया नरिंद- सुया ॥१९३६ ॥ अवि य
जं दुक्कर-तव- सज्झं पाविज्जइ मुणिवरेहिं भव- महणं । ( १७४ - अ) तं तुह जाईसरणं जायं नियम- प्पहावेण ||११३७ ॥ तह नियम - रहिओ सुसाहु वि सावओ कुणइ जं विसेस - तवं । तं तं न दे वुडी विणं व्व कलंतर- विहीणं ॥ ११३८ ॥ अच्छउ ता मणुयाणं तिरियाण वि बोहि कारणं नियमो । दीसंति जे धणत्था ते वि हु नियम प्पभावेण ॥११३९॥ जे य पुणो रयणि-दिणं अखलिय-पंचेदियाहिलासाय । अमुणिय - संतोस - सुहा भमंति ते णरय - तिरिएसु । । ११४० । । १. कयथो. २. पसण.
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