Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 205
________________ १३८ सम्मत्त-रक्खणट्ठा अइयारा जो इमेऽणुपालेइ। पायारो व्व सुनयरे सम्मत्तं निच्चलं तस्स।।१५४३ ।। तं जहाजीवाइ-नवपयत्था भावेण सयावि जो णु सद्दहइ। पेयापाणेण मुणेह सो सुपुत्तो व्व नीसंको।।१५४४ ।। बहुविह रूव धरेवि हु निएवि धम्मतिय(२२३अ) तु न सद्दहइ। निक्कंखिओ वियाणह तुच्छाहारेण मच्चो व्व।।१५४५।। जिणधम्म-फलं पइजस्स नत्थि कइयावि नूण संदेहो। सो मुणह 'नहयलगइ-विजा-गहणेणं चोरु व्व।।१५४६।। साहुदुग्गंछा य दिढे वि कुदिट्टि परे अइसयवंतो वि-जो ण मुझेइ। अवमूढदिट्टि सो मुणह साविया सुलस-सारिच्छो।।१५४७।। चारित्त-णाण-दंसण-समुज्जए जो सया पसंसेइ। संसाए दमगमुणिणो अभयकुमारो व्व सो मुणह।।१५४८।। तव-सील-विरइ-रहनेमिकुमर-पडिबोहणेणं राइवइ। थिर-सम्मत्ता नाउं थिरसम्मत्तेण होयव्वं ।।१५४९ ।। (२२३ब)जिणकप्पिय-मुणि-सील-प्पहाव-पयडणपरा सुभद्द व्व। चंपाए पोलि-ऊघाडणेण जिण-वच्छलो मुणह।।१५५० ।। दुब्भिक्खे चउविह-संघ-भत्त-पाणेणं दंसणपहावं ।। कुणमाणो जाणह वइरसामि सुगुरुव्व थिर-सम्मो।।१५५१।। इय अइयार-विसुद्धं सम्मत्तं जस्स निच्चलं अत्थि। सो संसार-समुदं तरेइ अरेण कालेण।।१५५२।। एयं सम्मत्तं ।। मिच्छत्तं पुण जाण सम्मत्तं जेणाण] निच्चलं होइ। अमुणिय-गुण-दोसाणं हवेइ गुणसंगहो कहवा।।१५५३।। १. नहपल. २. विरय. ३. रायवइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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