Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१३९
तं जहाइह परलोयं न गणइ जीवाजीयं सुपुण्ण-पावं च। (२२४अ)पंच-भूयाइ अप्पा मण्णइ मिच्छत्त दिट्ठि सो।।१५५३।। धम्मत्थिओ विअ गिरि-सरि-जल-धरणि-पवण-तरु-पसवे। वंदइ विवेय-रहिओ अमुणंतो धम्म-परमत्थं ।।१५५४।। पडिवजिय-जिणधम्मो अण्णो सव्वण्णु-भासियं वयणं। एगम्मि अमण्णंतो मिच्छत्तदिट्टि मुणेयव्वो।।१५५५।। भव-सयसहस्स-दुलहं अण्णो हारेइ विमल-सम्मत्तं । वंतर मोगल गह गोत्तदेवया पियर पूयाए।।१५५६।। अण्णं च। सव्वण्णु पयासियस्स वि धम्मस्स संसयकरणं संका।।१।। पडिवज्जिय-जिणधम्मो वि छज्जीव-हिय-जिणधम्म-गुणे अयाणंतो अण्णं न दंसण-गाहं जं करेइ सा कंखा।।२।। धम्मकिरियाणुट्ठाणस्स(२२४ब)असमत्थयाए अत्तणो फलं पइ संदेहो विजिगिच्छा साहु दुगुच्छा य।।३।। अमुणिय-साहुगुणो पर-पासंडिणो पसंसेइ पर-पासंड-पसंसा।।४।। अण्णाण-कट्ठ-किलेसिणो पर-पासंडिणो संथवेइ पर-पासंड संथवो।५। अण्णं चतुल्ले गुणे हि धम्मे आगम-नेएसु जण्ण सद्दहणं। तं दिट्ठ-मोह-दोसेण जाण जीवाण मिच्छंत।।१५५७।। इय एवमणेगविहं मिच्छत्तं सोगईए पडिकूलं। वजेयव्वं सम्मत्त-रयण-पडिसोहणट्ठाए।।१५५८।। अवि यजह मल-कलंक-सुद्धं कणयं-साहइ समीहियं कजं।
तह मिच्छत्त-विसुद्धं सम्मत्तं साहए मोक्खं ।।१५५९ ।। १. पायासियस्स. २. दुगंच्छा. ३. मोखो.
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