Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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संपइ पाडलि-नयरे उप्पन्ना पुरिसदत्त-धूया सा । जाय-संवेग-भावा परिणयणं नेच्छइ मयच्छी ॥१४९७।। देवी-सुदंसणाए पुग्व-भवब्भत्थियाए बोहि-कए । एत्थागमण-निमित्तं दिन्नं से पाउया-जुयलं ॥१४९८ ।। सा पुण तुमं किसोयरि ! इहागया पाउया न जोगेण । ता जे बल-सम्मत्ता [२१६-आ] भमंति ते भव समुद्दम्मि ॥१४९९ ॥ उप्पन्न-जाइ-नाणा जंपइ चंपयलया विगयमोहा। वासवदत्तो सो मह 'पुत्तो कत्थेत्थ निवसेइ।।१५०० ।। भणइ मुणिंदो भद्दे! तइया कालेण सो वि मरिऊण। कय-धम्मो सुहयामर-सुमणुय वासेसु भमिऊण।।१५०१।। इह सयलसेलनियडे संपइ सो मलय-नयरिया-नाहो। नामेण महासेणो कुदिट्ठमइ नरवई जाओ।।१५०२।। सो तुह परिणयणत्थं चलिओ जा एइ उयहि-मज्झम्मि। पडिकूल-पवण-खित्तो समागओ सो वि ता इत्थ।।१५०३ ।। तण्हा-सुसिय-सरीरो वावीए सो जलं पिएऊण। तुह पाउयाण(२१६ब) जुयलं दद्दूण ससंभमो जाओ।।१५०४।। सो तुज्झ पाय-पडिबंध-मग्ग-लग्गो पराइओ एत्थ। दह्ण तुमं भवणे खणेण मयणातुरो जाओ।।१५०५।। तुह रूयं पेच्छंतो निवसइ किंकेल्लि-पायवंतरिओ।
उप्पेच्छह निय-पुत्तो इय भणियं मुणिवरिंदेण ।।१५०६ ।। सुणिऊण नियय-चरियं राया धाराहओ बइल्लो व्व। गुरु-लजो नमिय-सिरो समागओ साहु-पय-मूले।।१५०७।। सुमरंतो पुव्व-भवं भणइ निवो हं तए महासत्त। *निंदिय-कजाहिमुहो निवडतो 'दोग्गइं धरिओ।।१५०८।। ता तह करेह भयवं! निवडामि न जा पुणो वि भव-जलहिं।
होति उवयार-णि(२१७अ)रया णिक्कारण-बंधवा गरुया।।१५०९।। १. पत्तो. २. मलइ. ३. उपेच्छह. ४. नंदिय. ५. दोग्गई.
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