Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 199
________________ १. १३२ तइयाऽहं बोहि-कए भणिया तुमए णं तुज्झ ता इहिं । आसि तुमं पुव्वभवे पुत्तो सिरिचंदगुत्तस्स । । १४८५ । । संदिट्ठे च तए मह तइया रज्जट्ठिएणं जं भद्द ! | 'जह पडिबोहेअव्वो' तए अहं इय तए भणियं । । १४८६ । । देवी सुदंसणा वयणं विज्जाहरो सुणे ( २१४ ) ऊण । उप्पण्ण-जाइणाणो भणइ कयत्थो कयत्थोहं । । १४८७ । । दोग्गइ - कूयावडिओ जिणिंद - मय-रज्जुणा तए देवी । उद्धरिओ जह भयवइ धम्मं पि तहाणुसाह ॥ १४८८ ॥ एयम्मि वरावसरे सेतुजे तियस कय-समोसरणओ । भविय पडिबोहणत्थं वीर - जिणिंदो समोसरिओ ॥ १४८९ ॥ विज्जाहरो वि देवी सुदंसणाए समं तहिं पत्तो । भत्तीए वीरनाहं थुणेवि ति पयाहिणं काउं ॥ १४९० ॥ तं जहा जय जय वीर जिणेसर जय जय तियसिंद-नमिय-पय- कमल । जय तिहुयण - भुवद्धरण सरण भव-भीय - भवियाणं ॥१४९९ ॥ जय कुगइ - णय[ २१५-अ] र- गोउर-कवाड नेव्वाण - नयर - पह - ईव । तह करह मह पसायं निवसामि जहा णं संसारं ||१४९२ || सो विज्जाहर-राया वीर - जिणिदं थुणेवि भावेण । पडिवज्जिऊण दिक्खं विहरइ तित्थयर-पय- मूले ॥ १४९३ ॥ भयवं पि वीरणाहो पडिबोहिऊण भविय - कमलाई । aar - नीसेस - मलो पत्तो अयरामरं ठाणं ॥ १४९४ ॥ विज्जाहरो वि देवी सुदंसणाए सहोयरो साहू । तुझ पडिबोहणत्थं इहागओ सो अहं भद्दे ! | १४९५ ॥ [२१५- ब] जा तइया मह पासे सिंघलवइणा णिरूविया पउमा । मरिऊण सा वि एत्तिय - कालं भमिया भवसमुद्धे ॥१४९६ ॥ अच्चो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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