Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१३० पउमा-धावीए सुओ तस्स सहाओ निरू(२११ब)विओ दुइओ। जणणि व्व तस्स धावी ताणं समीवे ठिया पउमा।।१४६८ ।। राया वि चंदउत्तो सपरियणो रायलच्छिमुज्झेवि। जिण-दिक्खं पडिवण्णो सुदंसणाए वियोगेण ।।१४६९ ।। काऊण तवं विउलं उप्पण्णों सो मरेवि 'सुरलोए। सो पुण वसंतसेणो सिंघलदीवे कुणइ रज्जं ।।१४७० ।। कालेण सो वि रजं चएवि पडिवज्जिऊण तव-चरणं। मरिऊण विविह-सुर-मणुय-सोक्ख-वासेसु भमिऊण।।१४७१ ।। संपइ सो वेयड्ढे दाहिण-सेढीए चंदरह-नयरे। नामेण चंदवेगो मयच्छि! विजाहरो जाओ।।१४७२ ।। वर-रूय-लक्खण-धरो नव-जोवण-संपयं समारूढो। सो अण्णया रमंतो पत्तो भरुयच्छ-नयरम्मि।।१४७३ ।। सिरि-सवलिया(२१२अ)विहारे किन्नर-गंधव्व-जक्ख-जुवइणं। गेय-रवं णिसुणंतो संपत्तो जा तमुद्देसं ।।१४७४ ।। ता महुर-गिरालवणाहि मंगलं पणिऊण जयगुरुणो। खिविऊण कुसुम-वुट्ठी पारद्धं सुयणु ! पिच्छणयं ।।१४७५ ।। वजंत-पडह-मद्दल-हुडुक्क कंसाल-वंस-वीणाणं। उच्छलिय-गहिर-सद्देण तत्थ दिण्णो य समतालो।।१४७६ ।। अवि यवामंग-णिवेसिय-सुसर-तिसरि-तंत्ती-सुकररुहक्कं ता। मयणाणुकूल-महुरं मुयइ सरं जक्ख-'जुवईए।।१४७७ ।। (२१२ब)अण्णा वि विविह-महुर-सर-भाविया किण्णरी वि अहर-दले। ठविऊण सुसर-वंसं आलावइ भइरवालती।।१४७८ ।। अण्णा वि ताल-जुयलं करेण गंधब्विणी गहेऊण। जिण-गुण-कित्तण-मुइया गायइ गंभीर-वाणीए।।१४७९ ।।
१. सुरलोय. २. नव्व. ३. जुवइए.
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