Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१२४ जय जय तिहुयण-भुवण-प्पईव जय जय मुणिंद-थुय-चलण। जय जय भव-जलहि-सुजाणवत्त मुणिसुव्वय जिणिंद।।१३९९ ।। जय जय णिक्कारण-परम-बंधु जय जय ईस परम-हिय। (२०३अ)तुह चलणाणं पुरओ करेमि 'विन्नत्तियं भयवं।।१४०० ।। जम्म-जर-मरण-गुरु-लहरि-भीसणे णाह ! भव-समुद्दम्मि। पावइ सुमाणुसत्तं जीवो जं तं तइ पसन्ने।।१४०१।। एगोणसयरि-कोडाकोडीउ खवेवि मोहणीयस्स। जं होइ तुम्ह सेवा णु संगम]तं तुह पसाओ।।१४०२।। जो य तुमं पेच्छंतो जायइ सहस त्ति बहल-पुलयंगो। सो भव्वो पइजम्मं हवेइ पुरिसोत्तमो [लोए] ||१४०३।। जो तुम्ह पुणो आणाणुपालणं कुणइ पइदिणं विहिणा। सो णाह ! णूणमासण्ण-सिद्धि-सुह-तरु-फल-स(२०३ब)मूहो।१४०४। आणामित्तेण वि पणईएसु जिण ! जं समं फलं देसि। तं कयकिच्चो सि तुमं सव्वं पि निएसि अप्पसमं ।।१४०५ ।। वायामित्तेण वि तुम्ह दंसणं भावयंति जे सुहयं। ते वि सुर-मणुय-सोक्खाण भायणं णाह ! जायंति।।१४०६।। पच्चकखे वि तुमं जिण ण दीससे कहणु भावरहिएहिं। अह सच्चं कप्पतरू पेच्छंति ण मंद-पुण्णा जे।।१४०७।। रस-वाय-खीण-देहा निहि ब्व पयडं तुमं अपिच्छंता। भमडंति जं वराया तं मण्णे णाह ! जम्मंधा।।१४०८।। सरि-संगमम्मि मूढा नमंति जिण(२०४अ) केवि धम्मबुद्धीए। सव्वं पि सुवण्णमयं नियंति “धत्तूरिया अहवा।।१४०९।। सुहयं गुणाण निलयं निजिय-तइलोय-लच्छि-वर-सोहं। तुम्ह वयणारविंदं निएवि जिण ! को ण संथुणइ।।१४१०।। विमल-गुण-रयणजलनिहि भव-जलणिहि-तरल-तारण-तरंड।
जम्णण-मरणंत-पयं पयच्छ परमेसर ! पसाय।।१४११ ।। १. विन्नित्तियं. २. सहरि. ३. से. ४. वरया. ५. धुत्तरिआ
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