Book Title: Sudansana Cariyam
Author(s): Saloni Joshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
निमाविय-जिणभवण-वण्णणो नाम दसमो उद्देसो
तं मुणिवराणं वयणं सुणेवि भावेण सुयणु ! रायसुया। काऊण विहि-पणामं समुट्ठिया परियण-समेया।।१२९५ ।। जियसत्तु-निवेणं तओ णिय-भवणे गउरवेण णिव-धूया। भुंजाविऊण सुहयं पुणो वि सम्माणिया सुयणु! ।।१२९६।। एत्थंतरम्मि कमला णरिंद-धूयाए सायरं भणिया। (१९१अ)सिंघलदीवे गमणं तुह जुजइ ताय-पय-मूले।।१२९७।। एसा कुसल-पउत्ती गंतुं साहेह जणणि-जणयाणं। सम्मत्त-थिरीकरणं मुणि-दसणमिह विसेसेण।।१२९८ ।। लद्धाएसा कमला णमेवि चलणेसु राय-धूयाए। आरूढ-जाणवत्ता संचलिया दाहिणाभिमुहं।।१२९९।। जाए पहाय-समए-पहाण-दिवसम्मि सोहणे रिक्खे। सम्माणिऊण सव्वं पउर-जणं आगम-विहीए।।१३०० ।। पूएवि सुत्तहारो विणएणंऽब्भत्थिओ "इमं भणिओ। एसा मह रायसिरी(१९१कोसाहीणा तुज्झ सव्वावि।।१३०१ ।। परिभाविऊण एयं करेह तह जिणहरं सुधम्मपरा। तह पिच्छिऊण विबुहा वि होति गुणकित्तणा पउणा।।१३०२।। एसो य उसहदत्तो निरुविओ तुह मए तह सहाओ। जेण समीहिय-कज्जं असहायाणं ण सिज्झेइ।।१३०३ ।। उसहदत्तो वि भणिओ राय-सुयाए सुमित्त ! जइ वि तुमं। जिण-समए कुसलमई तह वि मए इह भणेयव्वो।।१३०४।। जं जह मुणीहि भणियं जिण-भवणं भद्द ! तुज्झ पच्चकखं। तं तह विहिणा तुरियं(१९२अ)जयणाए तुमं कराविज।।१३०५ ।। एवं लद्धाएसो कय-सम्माणो य उसहदत्तो सो। सुत्तहारेण सहिओ गओ समोसरण-ठाणम्मि।।१३०६।।
१. परिणय. २. थिरीव. ३. सुत्तहारे ४. णिमं.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/1af60a4d6a3c55e3b9371f2ed66a291be934de52ae43c13d64e34fa37b9c2657.jpg)
Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258