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अजितशान्ति स्तवनम् ॥ जिनने ऐसे (अजिअं ) दूसरे तीर्थकर अजितनाथस्वामी (च) और ( पसंत ) अपुनर्भावसे निवृत्त होगएहैं ( सव्व ) संपूर्ण ( गय ) रोग और ( पावं ) पाप जिनके ऐसे ( संति ) सोहलवें तीर्थंकर शान्तिनाथ स्वामी ( सतिगुणकरे ) विघ्नोपशमरूपगुणको करने वाले ( जयगुरु ) जगतमें प्राणियोंको धर्मतत्वोपदेश करने वाले ( दोवि ) दोनो ( जिणवरे ) जिनोंमें श्रेष्ट ऐसे अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीको ( पणिवयामी ) वन्दन करता हूं।
(भावार्थ ) जीत लियेहैं सप्तविधभय जिन्होंने ऐसे दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ स्वामी और निवृत्त होगए हैं संपूर्ण रोग और पाप जिन्होंके ऐसे सोहलवें तीर्थंकर शान्तिनाथ स्वामी विनोंकी शांति करने वाले जगतमें जीवोंको धर्मोपदेश करने वाले जिनोंमें श्रेष्ट ऐसे दोनो अजितनाथ और शान्तिनाथ भगवानको मैं नन्दिषेण कवि वन्दनकरताहूं।
(इतिहास) जिस समय दूसरे तीर्थकर अजितनाथ स्वामी अपनी माता विजयादेवीके गर्भ थे उस समय रानी विजया