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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीको (सया ) निरंतर ( नमो ) नमस्कार होओ !
( भावार्थ )
संपूर्ण वेद्यकर्म प्रशान्त हो गए हैं जिन्होंके ( अथवा ) संपूर्ण दुष्ट इन्द्रियां इष्ट अनिष्ट विषयों से निवृत होगई हैं जिन्होंकी (अथवा ) संपूर्ण योग्य जन्तुओंके दुःख निवारण किये हैं जिन्होंने और संपूर्ण पाप नष्ट होगए हैं जिन्होंके और रागद्वेषादि द्वारा न जीती जाने वाली है शान्ति जिन्होंकी ऐसे अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीको मैं निरंतर नमस्कार करता हूं ।
( मागधिका छंदः ) ( मागहिआ )
अजिअजिणसुहृप्पवत्तणं तव पुरि ुत्तमनामकित्तणं । तहय धिइमइप्पवत्तणं तव य जिणुत्तम संति कित्तणं ॥ ४ ॥
(छाया)
हे अजितजिन हे पुरुषोत्तम तव नामकीर्त्तनं सुखप्रवर्तनं तथा च धृतिमतिप्रवर्तनं अस्ति हे जिनोत्तमशांते तव च कीर्तनमपि तथैवास्ति ।