SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीको (सया ) निरंतर ( नमो ) नमस्कार होओ ! ( भावार्थ ) संपूर्ण वेद्यकर्म प्रशान्त हो गए हैं जिन्होंके ( अथवा ) संपूर्ण दुष्ट इन्द्रियां इष्ट अनिष्ट विषयों से निवृत होगई हैं जिन्होंकी (अथवा ) संपूर्ण योग्य जन्तुओंके दुःख निवारण किये हैं जिन्होंने और संपूर्ण पाप नष्ट होगए हैं जिन्होंके और रागद्वेषादि द्वारा न जीती जाने वाली है शान्ति जिन्होंकी ऐसे अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीको मैं निरंतर नमस्कार करता हूं । ( मागधिका छंदः ) ( मागहिआ ) अजिअजिणसुहृप्पवत्तणं तव पुरि ुत्तमनामकित्तणं । तहय धिइमइप्पवत्तणं तव य जिणुत्तम संति कित्तणं ॥ ४ ॥ (छाया) हे अजितजिन हे पुरुषोत्तम तव नामकीर्त्तनं सुखप्रवर्तनं तथा च धृतिमतिप्रवर्तनं अस्ति हे जिनोत्तमशांते तव च कीर्तनमपि तथैवास्ति ।
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy