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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ (पदार्थ) ( अजिआजण ) हे अजितसंज्ञक जिनभगवन् ( पुरिसुत्तम ) हे पुरुषोत्तम ( तव ) आपका ( नामकित्तणं ) नामस्मरण ( सुह ) सुखका (प्पवत्तणं) प्रवर्तकहै ( तहय ) और वेसेही (धिइ ) स्वास्थ्य लक्षण धृति और ( मइ ) प्रज्ञालक्षण मतिका (प्पवत्तणं) प्रवर्तक है (च) और (जिणुत्तम ) जिनोम श्रेष्ट ( संति ) हे शान्तिनाथस्वामी ( तब ) आपकाभी ( कित्तणं ) नाम स्मरग वेसाही है। (भावार्थ ) हे पुरुषोत्तम अजित संज्ञक जिनभगवन् और हे जिनोंमें श्रेष्ट शान्तिनाथ भगवन् आप दोनोंका नामस्मरण संपूर्णसुखका प्रवर्तक है और वैसेही स्वास्थ्यलक्षण धृति और प्रज्ञालक्षणमतिका भी प्रवर्तक है। ___ (आलिंगनकंछंदः) . (आलिंगणयं) किरिआविहि संचिअकम्मकिलेस विमुक्खयरं । अजिअ निचिरं च गुणेहिं महामुणिसिद्धिगयं ।। अजिअस्स य संतिमहामुणिणोविअ संतिकरं सययं मम निव्वुइकारणयं च नमसणयं ॥५॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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