Book Title: Sthanakvasi Author(s): Aatmaramji Maharaj Publisher: Lala Valayati Ram Kasturi Lal Jain View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णमोत्थुणं समणस्त भगवओ महावीरस्स स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन परम्परा में मूर्तिपूजा को आगम विहित न माननेवाला जो सम्पदाय है, वह स्थानकवासी नाम से प्रसिद्ध है । इस सम्प्रदाय का स्थानकवासी नाम कब और क्यों पड़ा, इसके विषय में ऐतिहासिक तथ्य चाहे कुछ भी हो, परन्तु शास्त्रीय दृष्टि से इसका विचार करते हुए जो तथ्य पतोत हुआ है, उसका दिग्दर्शन कराने के लिये हमारा यह उद्योग है। भाशा है, पाठकगण शान्तिपूर्वक इसका अवलोकन करेंगे। शास्त्रीय दृष्टि से विचार करते हुए प्रतीत होता है कि स्थानकवासी शब्द द्रव्य और भाव दोनों ही अर्थों को लेकर प्रयुक्त हुआ है। इस शब्द का प्रयोग पहले एकमात्र परम त्यागी जैन साधुओं में ही होता था और बाद में यह तदनुयायी वर्ग में भी प्रयुक्त होने लगा। जैसे जैन परम्परा में श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दोनों For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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