Book Title: Sthanakvasi
Author(s): Aatmaramji Maharaj
Publisher: Lala Valayati Ram Kasturi Lal Jain

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सपणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंडे अवहरेजा इत्यादि" शत. ८ उद्दे. ५. वर्तमान समय में जो लोग प्रायः यह कहते हैं कि चलो दर्शन करने व व्याख्यान सुनने के लिये साधुओं के उपाश्रय या स्थानक में-यह उनका कथन आगमनिर्दिष्ट प्रथा के प्रतिकूल नहीं किन्तु न्यायसंगत और आगमानुमोदित है। तब इस सारे कथन का सारांश यह निकला कि जो स्थान साधुओं के निवास का मुख्य उद्देश रख कर न बनाया गया हो तथा जो पूर्वोक्त दोषों से रहित हो एवं जिसमें रहने से धर्मध्यान की वृद्धि और कामरागादि की निवृत्ति में सहायता मिळे और समय-समय पर आकर संयमशीलवाले परम त्यागी जैनमुनि जहाँ निवास करें, उस स्थान का नाम उपाश्रय वसती या स्थानक है। इस प्रकार यह आगमदृष्टि से द्रव्य स्थानक कहा जाता है और उसमें निवास करनेवाले साधु द्रव्यरूप से स्थानकवासी कहलाते हैं "स्थानके-द्रव्यरूपे निर्दोषे विविक्ते प्रशस्ते उपाश्रये वसतौ, वसति तच्छील इति स्थानकवासी ॥ उक्तं श्रमणोपाश्रये आसीनस्येति, केइत्ति कश्चित्पुरुषः, भंडंति वस्त्रादिकं वस्तु गृहवर्ति साधूपाश्रयवर्ति वा, अवहरेजत्तिअपहरेत् इत्यादि (व्याख्या)। For Private and Personal Use Only

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