Book Title: Sthanakvasi
Author(s): Aatmaramji Maharaj
Publisher: Lala Valayati Ram Kasturi Lal Jain

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५ ) वह मोक्षस्थान है। वह ध्रव है, शाश्वत है और सब प्रकार की बाधाओं से रहित है। उसको प्राप्त करने या उममें निवास करनेवाले को जन्म, मरण, जरा और आधि व्याधि का कोई भय नहीं रहता। वह लोक के अग्रभाग में स्थित है, परन्तु उसका प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। उसको प्राप्त करनेवाले आत्माओं के लिए फिर किसी प्रकार का कोई कर्त्तव्य बाकी नहीं रह जाता। वे संसार की जन्म-मरण परंपरा का अन्त करके सदा के लिये कृतकृत्य हो जाते हैं। इसी मोक्ष का दूसरा नाम सिद्धस्थान या सिद्धों को निवास भूमि भी है । अतः उस मोक्षरूप स्थान में निवास करनेवाले सिद्ध भगवान् ही यथार्थरूप * अत्थि एगं धुवं ठाणं लोगग्गम्मि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरामच्चू , वाहिणो वेयणा तहा ॥ ८१ ॥ छा० अस्त्येकं ध्रुवं स्थानं, लोकाग्रे दुरारोहम् । यत्र न स्तो जरामृत्यू , व्याधयो वेदनास्तथा ॥ ८१ ॥ +तं ठाणं सासयं वासं, लोगग्गम्मि दुरारुहं । जं संपत्ता न सोयंति, भवोहंतकरा मुणी ॥ ८४ ॥ छा०-तत् स्थानं शाश्वतावासं, लोकाने दुरारोहं । यत् संप्राप्ता न शोचन्ते, भवौधान्तकरा मुनयः ! ये गाथायें उत्तराध्ययनसूत्र के २३ वें अध्ययन की हैं। केशीकुमार और गौतममुनि के प्रश्नोत्तर रूपमें यह सम्पूर्ण अध्ययन कहा गया है, जो कि पाठकों के लिये अवश्य द्रष्टव्य हैं। For Private and Personal Use Only

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