Book Title: Sthanakvasi
Author(s): Aatmaramji Maharaj
Publisher: Lala Valayati Ram Kasturi Lal Jain

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८ ) में स्थानक शब्द का ग्रहण है । जैसे कि पहले बतलाया 1 जा चुका है कि श्वेताम्बर जैन परम्परा में दो सम्प्रदाय प्रचलित हैं, एक वह जो मूर्तिपूजा को आगमविहिन नहीं मानता है, जबकि दूसरे सम्प्रदाय को मान्यता इसके विरुद्ध है । पहले में तो स्थानक और उपाश्रय दोनों प्रचलित रहे और दूसरे ने मात्र उपाश्रय शब्द को ही अपनाया । इसलिये स्थानक कहो या उपाश्रय, अर्थ दोनों का एक हो है । शब्दभेद का कारण केवल साम्प्रदायिक विचार विभिन्नता है, ऐसा हमारा विचार है। इसके अतिरिक्त इतना फिर भी स्मरण रहे कि स्थानकवासी शब्द पहले तो देवता, द्रव्य और भावरूप स्थानक में बसने से जैनमुनियों तक ही वह सोपित रहा; बाद में दिगम्बर और श्वेताम्बर शब्द की भान्ति वह तदनुयायी वर्ग में प्रयुक्त होता हुआ एक सम्प्रदाय में रूढ़ होगया जो कि आज तक प्रचलित हो रहा है 1 अन्त में पाठकों से हमारा निवेदन है कि स्थानक - वासी शब्द के सम्बन्ध में शास्त्रीय दृष्टि से हमारा जो कुछ विचार था वह हमने उनके सामने उपस्थित कर दिया, आशा है अन्य जैन विद्वान् भी इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे । For Private and Personal Use Only

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