Book Title: Sthanakvasi
Author(s): Aatmaramji Maharaj
Publisher: Lala Valayati Ram Kasturi Lal Jain

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) भाव से दिगम्बर वह माना जाता है जो कि अन्दर से सर्वथा नग्न अर्थात् जिसकी आत्मा से कर्मरूप वस्त्र सर्वथा उतर चुके हों। ऐसी दशा में यदि कोई दिगम्बर सम्प्रदाय का अनुयायी यह कहे कि दिगम्बरत्व प्राप्त किये बिना मोक्ष नहीं होता, तो इसमें वह कुछ अनुचित नहीं कहता भावदृष्टि से उसका यह कथन ठीक है। इसी प्रकार द्रव्य से श्वेताम्बर वह है जिस मुनि के श्वेत वस्त्र हों, और भाव से श्वेताम्बर उसे कहते हैं जो अन्दर से सर्वथा श्वेत हो, अर्थात् जो परम शुक्ल परम निर्मल शुक्नध्याने रूप वस्त्रों से युक्त हो । ऐसी हालत में यदि हम यह कहें कि श्वेताम्बर हुए बिना मोक्ष का प्राप्त करना असम्भव है तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं। इसी तरह स्थानकचासो सम्प्रदाय का कोई अनुयायी यदि यह कहे कि यदि मोसमाप्ति की इच्छा है, तो स्थानकवासी बनो। तो यह भी ठीक ही है, क्योंकि जब तक यह आत्मा भाव संयम रूप स्थान-स्थानक-में वास करता हुआ यथाख्यात चारित्र को प्राप्त करके क्षायिक भाव में नहीं पहुँचतातब तक मोक्ष का प्राप्त होना कठिन ही नहीं, किन्तु असम्भव है। उपसंहार इस सारे लेखका सारांश यह है कि जैन भागों में जिस अर्थ में उपाश्रय शब्द का प्रयोग हुआ है, उसी अर्थ For Private and Personal Use Only

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