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( १२ ) विशुद्धतर संयम स्थानों में निवास करता है अर्थात उनका सम्यक्तया आराधन करता है। अतः उक्त भावरूप संयम स्थानों में वास करने से वह भाव स्थानकवासी कहा वा माना जाता है। तब "स्थानके भावसंयमादिरूपे सम्यकचारित्रे वसति तच्छोल इति स्थानकवासी", इस गुणनिष्पन्न यौगिक व्युत्पत्ति के द्वारा उक्त भावकी स्पष्टता और प्रामाणिकता सुनिश्चित हो जाती है। इस प्रकार
गोयमा! असंखेज्जा संजमट्ठाणा पण्णत्ता एवं जाव परिहार विसुद्धि. यस्स । सुहुमसंपरायसंजयस्स पुच्छा, गोयमा ! असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्टाणा पण्णता । अहक्खायसंजयस्स पुच्छा, गोयमा ! एगे अजहण्णमणुक्कोसए संजमट्ठाणे। एएसिणं भंते ! सामाइय-छेदोवट्ठावणिय-परिहारविसुद्धिय - सुहुमसंपरायअहक्खायसंजयाणं संजमट्ठाणाणं कयरे २ जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे अहक्खायसंजमस्स एगे अजहण्णमणुकोसए संजमट्ठाणे, सुहुमसंपरायसंजयस्स अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा असखेजगुणा, परिहारविसुद्धिसंजयस्स संजमट्ठाणा असंखेज गुणा, सामाइयसंजयस्स छेदोवट्ठावणियसंजयस्सय एएसिणं संजमहाणा दोण्हवि तुल्ला असंखेज गुणा । (शत. २५ उद्द. ७) ___व्या०-संयमस्थानद्वारे-सुहुमसंपरायेत्यादौ असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणत्ति-अन्तर्मुहूर्ते भवानि आन्तर्मुहूर्तिकानि, अन्तर्मुहूर्तप्रमाणा हि तदद्धा, तस्याः च प्रतिसमयं चरणविशुद्धि
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