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श्रमण, वर्ष ५६, अंक ३-४ जुलाई-दिसम्बर २००५
(विद्यापीठ के प्रांगण में
पार्श्वनाथ विद्यापीठ में "अनेकान्त एवं उसकी समकालीन प्रासङ्गिकता"
विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न २५ सितम्बर, २००५। पार्श्वनाथ विद्यापीठ, रायकृष्ण दास इन्टैक एवं त्रिरत्न ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में "अनेकान्त एवं उसकी समकालीन प्रासङ्गिकता" (Anekānta: Its contemporary Relevance) विषय पर दिनांक २५ सितम्बर, २००५ को पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सभागार में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रथम उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे- प्रो० जी० एन० सामतेन, कुलपति, उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) सारनाथ, वाराणसी। प्रथम सत्र की अध्यक्षता बौद्ध दर्शन के प्रख्यात विद्वान प्रो० एन० एच० साम्तानी ने किया और इस सत्र के विशिष्ट अतिथि थे - प्रो० राय आनन्द कृष्ण। कार्यक्रम का प्रारम्भ मानवमिलन के प्रेरक स्थानकवासी जैन मुनि प०पू० मणिभद्र जी 'सरल' एवं डा० कमलेश कुमार जैन, अध्यक्ष जैन दर्शन विभाग, का०हि०वि०वि० के मंगलाचरण से हुआ। पूज्य मुनिश्री ने इस अवसर पर अनेकान्त की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जैन दर्शन की आधारशिला ही अनेकान्त है जो विश्वमैत्री, सद्भावना एवं शान्ति का उद्भावक है। संगोष्ठी के संयोजक डा० डी०पी० अग्रवाल ने अतिथियों एवं आगन्तुकों का स्वागत किया। डा० मुकुलराज मेहता, रिसर्च साइंटिस्ट, दर्शन एवं धर्म विभाग का०हि०वि०वि० ने विषय प्रवर्तन किया। इस सत्र में डा० डी० पी० अग्रवाल, डा० एम० एन० ठाकुर (Fellow DCRC, University of Delhi), डा० जॉन चैटनट (दिल्ली) एवं श्री कीर्तिकुमार ने अपने शोधपत्रों को प्रस्तुत किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो० एन०एच० साम्तानी ने अनेकान्तवाद के साथ बौद्ध दर्शन के सम्बन्धों की विस्तृत चर्चा की। प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि प्रो० जी०एन० सामतेन ने अपने उद्बोधन में कहा कि समाज से वैमनस्यता और कटुता को दूर करने का गुण अनेकान्तवाद में है। यदि दुनियां भर के लोग अनेकान्तवाद की धारणा को अपना लें तो वैचारिक और धार्मिक मतभेदों के कारण होने वाले अमानवीय कृत्यों से निजात मिल सकती है और चहुंओर शान्ति और सद्भाव का वातावरण उत्पन्न हो सकता है। संगोष्ठी के
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