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साहित्य सत्कार : २१५
हो तो ऐसी, अच्छी पड़ोसने पुण्य से, कुछ अनछुए पहलू, आयोजन का प्रयोजन, रागद्वेष की जड़ और क्या मुक्ति मार्ग इतना सहज है? आदि १३ अध्याय हैं। इसमें लेखक ने कथानकों के माध्यम से जैन धर्म के मूल सिद्धान्त वस्तु स्वातन्त्र्य को बड़ी कुशलता से समझाया है तथा अपने कथन या कथानक का आगमवाणी से समर्थन भी किया है। क्रमबद्ध पर्याय को रेखांकित करती यह कृति निश्चित ही पढ़ने
और मनन करने योग्य है। संक्षेप में यह उपन्यास तत्त्वज्ञान से ओतप्रोत है। भाषा प्राञ्जल और सुबोध गम्य है। यह पुस्तक पठनीय और संहग्रणीय है।
डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय
साभार-प्राप्ति १. सुविधि दर्शन, वीतराग सत् साहित्य प्रसारक ट्रस्ट, भावनगर, प्रथम आवृत्ति, २००५, मूल्य ४०.०० रुपये, पृष्ठ सं० २९२।
२. काव्यानुशासन (सटीकम्), श्री हेमचन्द्र, संशोधन द्वारा- महामहोपाध्याय पंडित श्री शिवदत्त शर्मा, श्री काशी नाथ शर्मा एवं श्री वासुदेव शर्मा, श्री झालावाड जैन श्वेता० मूर्तिपूजक तपागच्छ संघ (सुरेन्द्रनगर) पृ०सं०४३२, प्रवचन प्रकाशन, पूना, वि.सं. २०५८, मूल्य ८० रुपये।
३. श्री रत्नशेखर सूरीश्वरजी ज्ञचित श्राद्धविधि प्रकरणम्, भाषान्तर, सम्पादक- मुनिश्री जयानन्द विजयजी, श्री गुरु रामचन्द्र प्रकाशन समिति, भीनमाल (राज.), पृ० सं० ३९८, वि.सं० २०६१।
४. सिद्धलोक एवं सिद्धत्व साधना के सूत्र, डा० राजेन्द्र कुमार बंसल, सम्पा० मनोहर मारवडकर, श्री अ. भा. दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् ट्रस्ट, दुर्गापुरा, जयपुर (राज.) प्रथम संस्करण २००५, पृ० सं० ६४, मूल्य १० रुपये।
५. नींव का पत्थर, पं रतनचन्द भारिल्ल, प्रका० पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर (राज.) प्रथम संस्करण २००५, पृ० १२८ मूल्य ८ रुपये ।
६. रक्षाबन्धन और दीपावली, पं रतनचन्द भारिल्ल, प्रका० पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर (राज.) प्रथम संस्करण २००५, पृ० सं०.४८ मूल्य- स्वाध्याय।
७. जैन धर्म विज्ञान की कसौटी पर या विज्ञान जैन धर्म की कसौटी पर, पंन्यास श्री नंदीघोषविजयजी गणि, प्रका० भारतीय प्राचीन साहित्य वैज्ञानिक
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