________________
१९८
अभ्युदयाश्रीजी म० ने अमृतमय वाणी से कल्पसूत्र की वांचना की। चतुर्विध संघ के बीच पर्व दिवस में दूरस्थ अंचलों के साथ स्थानीय लोगों ने भी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई। संवत्सरी दिवस पर मंदिरजी के विशाल प्रांगण में सकल संघ ने मुनिराज पीयूषसागर जी म० सा० ठाणा २ एवं पू० प्रियंकराश्रीजी म०सा० आदि ठाणा ३ की पावन निश्रा में ८४ लाख जीव योनियों से विधिवत् क्षमायाचना की। इसके पश्चात् सभी ने मन्दिर, दादावाडी के दर्शन पश्चात् प० गुरुवरों से क्षमापना की। चैत्य परिपाटी हेतु सकल संघ के साथ मुनिराज ने संघ के साथ दिगम्बर जैन मंदिर में देववन्दन किया। इस अवसर पर अनेक तपस्याओं का सफल आयोजन किया गया। चतुर्विध संघ के सान्निध्य में दिनांक ११ सितम्बर को विभिन्न तपस्याओं के अनुमोदनार्थ भव्य बरघोड़ा निकाला गया। १५ सितम्बर से २२ सितम्बर २००५ तक जैन श्वेताम्बर मंदिर के प्रांगण में दिवंगत श्री अरुणोदयाश्रीजी म० की आत्म शांति हेतु अष्टाह्निका महोत्सव आयोजित किया गया।
___ आचार्य अमृतचन्द्र पुरस्कार समर्पण समारोह सम्पन्न
नई दिल्ली ९ अक्टूबर, २००५। आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में संस्कृत भाषा एवं आध्यात्मिक साहित्य विषयक आचार्य अमृतचन्द्र पुरस्कार कुन्दकुन्द भारती में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रमुख विद्वान् पं० रतनचन्द भारिल्ल (जयपुर) को प्रदान किया गया।
समारोह को सम्बोधित करते हुए परमपूज्य आचार्यश्री ने अपने आशीर्वचन में कहा कि ज्ञान का दीप सदा जलता रहना चाहिए। इसी कारण भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहा है। आचार्यश्री ने पण्डित रतनचन्द जी भारिल्ल के कृतित्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसी तरह हर व्यक्ति को देश और समाज के हित में सोचते हए देश की प्रगति में योगदान करना चाहिये, क्योंकि अच्छे संस्कारों के बिना भौतिक प्रगति निरर्थक है। आचार्यश्री ने पण्डित रतनचन्द जी के विद्वत् परम्परा को बढ़ानेवाले कार्यों की सराहना करते हुये उन्हें अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
समारोह की मुख्य अतिथि राजस्थान की राज्यपाल सौ० प्रतिभा पाटिल ने पं० रतनचंद जी को शाल, प्रशस्ति पत्र एवं एक लाख रुपये की राशि का ड्राफ्ट प्रदान किया। उन्होंने कहा कि यह गर्व और हर्ष की बात है कि आचार्यश्री के सान्निध्य में आज एक उच्चकोटि के विद्वान् को सम्मानित किया गया। आचार्यश्री को अपनी भावपूर्ण विनयाञ्जलि में राज्यपाल ने कहा कि ये लोगों के मन जोड़ने का महान कार्य करते हैं और यही हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि है। प्रशस्ति में आपको सिद्धान्तसूरि की मानद उपाधि प्रदान की गई। For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International