Book Title: Sramana 2002 07 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 4
________________ सम्पादकीय श्रमण जुलाई-दिसम्बर २००२ का संयुक्तांक पाठकों के समक्ष उपस्थित करते हुए हमें सन्तोष एवं हर्ष का अनुभव हो रहा है। अपरिहार्य कारणों से वर्ष २००२ के प्रथम और द्वितीय अंक जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक के रूप में हम दिसम्बर माह में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर सके। उसके बाद हमारा यही प्रयास रहा कि २००२ के शेष दो अंक भी हम पाठकों को अतिशीघ्र प्रेषित कर सकें और परिणामस्वरूप श्रमण का यह अंक जुलाई-दिसम्बर २००२ आपके समक्ष प्रस्तुत है। श्रमण के इस अंक में जैन साहित्य, दर्शन एवं इतिहास से सम्बन्धित १५ आलेख प्रकाशित हैं। हमारा यही प्रयास रहता है कि उक्त विषयों पर लिखे गये प्रामाणिक एवं विवादरहित आलेख ही श्रमण में प्रकाशित हों। हम अपने प्रयास में कहाँ तक सफल हुए हैं यह निर्णय पाठक स्वयं करें। श्रमण का यह अंक आपको कैसा लगा? इस सन्दर्भ में आप अपने सुझावों एवं निष्पक्ष आलोचनाओं से हमें अवश्य अवगत कराने की कृपा करें ताकि इसमें आवश्यक संशोधन/परिमार्जन किया जा सके। सम्माननीय लेखकों से निवेदन है कि श्रमण में प्रकाशनार्थ प्रेषित आलेखों का सन्दर्भ मूलग्रन्थों से मिलान कर ही भेजें। जैन धर्म, दर्शन एवं इतिहास से सम्बन्धित मौलिक एवं अप्रकाशित आलेख श्रमण में प्रकाशनार्थ आमन्त्रित हैं। सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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