________________
47
सोया मन जग जाए सोचता है, भावी पीढी के कल्याण की बात सोचता है।
सम्राट ने संतप्रवर से कहा-महात्मा ! मुझे संतोष है। मैंने महान् आत्मा का साक्षात् कर लिया है।
जब इच्छा और मन की चंचलता जीवन का संचालन करती है, तब महानता प्रगट नहीं हो पाती। उन्हीं व्यक्तियों में महानता प्रगट हुई है जिनके जीवन की लगाम इच्छा के हाथ में नहीं थी, मन की चंचलता से जीवन संचालित नहीं था। जब सुप्त चेतना जागती है तब इच्छा और मन पर नियन्त्रण होता है। या यों कहें, जब इच्छा और मन पर अनुशासन होता है, तब सुप्त चेतना जागती है। हमारी चेतना शरीर में बंदी बनी हुई है। मनोवैज्ञानिकों ने कहा, सचेतन मन को शांत करो और अचेतन मन को जागृत करो, शक्तियां बढ़ेगी। जब इस तथ्य पर दार्शनिक दृष्टि से सोचते हैं तो प्रतीत होता है कि यह सही तो है, पर है अपूर्ण। इसमें कुछ परिष्कार अपेक्षित है। अचेतन मन के जागरण की बात कही गई तो क्या अचेतन मन में भद्दापन, कुरूपता, हिंसा और घृणा नहीं है? सारे आवेश और आवेग का अड्डा है यह। बेचारे सचेतन मन के पास ये आते कहां से हैं? ये सारे बुरे भाव अचेतन मन से ही तो सचेतन मन में संक्रान्त होते हैं? हमें अचेतन मन को दो भागों में बांटना होगा। एक वह अचेतन मन जिसका रूप भद्दा है और वह अचेतन मन जो सुन्दर है, सरस और मधुर है। एक है कृष्णपक्ष और एक है शुक्लपक्ष। हम अचेतन मन के शुक्लपक्ष वाले भाग को सोया रहने दें। केवल अचेतन मन को जगाने से काम नहीं होगा। अचेतन मन के उस भाग को जगाएं, जहां अच्छाइयां हैं। सैद्धान्तिक भाषा में कहें तो उस धारा को जगाना है जो क्षायोपशमिक भाव है। उस धारा को शांत रहने देना है जो औदयिक भाव है। इसलिए केवल सचेतन मन को ही नहीं, अचेतन मन के कृष्णपक्ष वाले भाग को भी शांत करना है। ___ हमें प्रेक्षाध्यान की साधना में केवल जगाना ही नहीं है, किसी को जगाना है तो किसी को सुलाना है। एक को जगाना है तो एक को सुलाना है। सचेतन मन और अचेतन मन के कृष्णपक्ष को सुलाना है और उसके शुक्लपक्ष को जगाना है। इसका उपाय है—चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा।
शरीर के दो भाग हैं -नाभि से नीचे का भाग और नाभि से ऊपर का भाग। नीचे का भाग कृष्णपक्ष है और ऊपर का भाग शुक्लपक्ष।
जब दर्शनकेन्द्र और ज्योतिकेन्द्र का ध्यान करते हैं तो अचेतन मन का शुक्लपक्ष जागृत होता है। शरीरशास्त्रीय दृष्टि से विचार करें तो पिनियल और पिच्यूटरी ग्रन्थियों के स्राव एड्रीनलीन को प्रभावित करते हैं। इन सबका प्रभाव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org