Book Title: Soya Man Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 237
________________ 236 सोया मन जग जाए और जब श्वास को निकालता है तब इडा नाड़ी-तंत्र अर्थात् सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (अनुकम्पी) सक्रिय बनता है। पर प्रश्न है कि इस परानुकम्पी नाड़ी-तंत्र को कौन संचालित कर रहा है? इसका संचालक है प्राण। जब तक प्राण पर नियंत्रण नहीं होता तब तक कोई परिवर्तन संभव नहीं है। बाहरी जगत् और भीतरी जगत् में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्राण-नियंत्रण जरूरी है। जब तक यह नहीं होता तब तक बाहरी सचाई और भीतरी सचाई भिन्न-भिन्न होती है। __ स्कूल में अध्यापक ने विद्यार्थी को बताया कि 'माई हेड' का अर्थ है मेरा सिर। लड़का घर गया। इस वाक्य को रटने लगा कि 'माई हेड' अर्थात् मास्टरजी का सिर। पिता ने सुना। लड़का जोर-जोर से रटता जा रहा था। पिता ने बच्चे को बुलाकर कहा—गलत रट रहे हो। 'माई हेड' का अर्थ क्या है ? लड़का बोला, स्कूल में 'माई हेड' का अर्थ है, मास्टरजी का सिर और घर में इसका अर्थ है—पिताजी का सिर। सचाइयां दो हो गईं। ___ जैसे-जैसे प्रेक्षा आगे बढ़ेगी, हमारी प्रेक्षा का क्षेत्र विस्तार होता जाएगा। श्वास की प्रेक्षा करते हैं। श्वास को संचालित करता है श्वास-प्राण । हम उसे देखने का अभ्यास करेंगे। मन को संचालित करता है मन का प्राण। उस प्राण तक हमें पहुंचना होगा। हमें स्थूल में नहीं अटकना है। सूक्ष्म तक पहुंचना है। यह बहुत दूर की मंजिल है। अभी तो मात्र एक कदम बढ़ाया है। लंबे समय तक लम्बी यात्रा करनी है। यदि आत्म-नियंत्रण की बात हृदयंगम हो जाती है और यदि इससे आत्मा भावित हो जाती है तो विवेक, बुद्धि और स्मृति बढ़ेगी। अन्यान्य सचाइयां ज्ञात होती जाएंगी। आत्मा को वह ठोस आनन्द प्राप्त होगा जिसकी कल्पना आत्मा को अनियंत्रित रखने वाला कर नहीं सकता। __ मैंने पहले कहा था कि ज्योति-केन्द्र पर ध्यान करें और साथ ही साथ दीर्घ श्वास का प्रयोग भी करें। प्रश्न होता है कि दोनों एक साथ कैसे हो सकते हैं? दोनों एक साथ होंगे तभी एकाग्रता सधेगी। चेतना को ज्योति-केन्द्र पर टिका दिया। श्वास दीर्घ कर दिया। श्वास की क्रिया अपने आप चलेगी और ध्यान वहां का वहां टिका रहेगा। जब यह बात सध जाएगी तक एकाग्रता का समग्र अर्थ समझ में उतर आएगा। दोनों एक साथ हो सकते हैं। अभ्यास अपेक्षित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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