Book Title: Soya Man Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 245
________________ 244 सोया मन जग जाए वह कहीं रुकने को तैयार नहीं है। इस तीव्रता ने अनेक असामान्य बीमारियों और विक्षेपों को उत्पन्न किया है। इसने जीवन की शैली में आमूलचूल परिवर्तन घटित कर दिया है। हृदय-विशेषज्ञ कहते हैं जब तक इस जीवन शैली में परिवर्तन नहीं होगा तब तक हृदय-रोग पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकेगा। आज यह बीमारी विस्तार पा रही है। जहां विश्राम और सुस्ताने की अनिवार्यता है, वहां भी आदमी रुकता नहीं, दौड़ता ही चला जाता है। जहां आदमी को शिथिलीकरण करना होता है, वहां वह और अधिक तेजी से भागता है। इसका परिणाम आज हम सबके समक्ष है। सब इसको भोग रहे हैं। . ___ हम हृदय की प्रवृत्ति से बोधपाठ लें। वह प्रवृत्ति के साथ ही साथ निवृत्ति भी करता है। निवृत्ति भी दुगुनी। यही कारण है कि वह लंबे समय तक अपना कार्य संपादित करने में सक्षम होता है। पर पता नहीं मस्तिष्क हृदय की बात को क्यों नहीं मानता। आदमी क्यों नहीं इससे कुछ सीखता। क्यों नहीं वह प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति करता है? आदमी के विचारों का प्रवाह क्षण भर के लिए भी नहीं रुकता। चिन्तन के क्षणों के साथ अचिन्तन के क्षणों का संतुलन न होने के कारण सारी समस्याएं उभर रही हैं। इस स्थिति में न समाज की समस्या का समाधान होगा और न व्यक्ति की समस्या का समाधान होगा। यह पहली जीवन शैली अच्छी नहीं कही जा सकती। तीसरी जीवन शैली है अकेले में रहना और अकेले में जीना। यह व्यावहारिक नहीं है। यह शायद योगी के लिए काम की हो सकती। यह समाज के लिए मान्य नहीं हो सकती। अकेला व्यक्ति हिमालय की गुफा में जाकर जीवन यापन करे, पर वह समाज के लिए उपयोगी नहीं है। इसको मान्य नहीं किया जा सकता। दूसरी जीवन शैली है—अकेले में रहना और समाज में जीना। समाज में जीते हुए भी अकेले में रहना। इस शैली को विकसित करना चाहिए। व्यक्ति समाज को छोड़ नहीं सकता। वह समाज में रहे, कोई आपत्ति नहीं है। किन्तु समाज में रहते हुए अकेले रहना, यह बहुत बड़ी कला है। इस कला को सीखना __आचार्यश्री ने अणुव्रत आन्दोलन के प्रथम अधिवेशन पर एक महत्वपूर्ण बात कही थी। आपने कहा—'मैं यह नहीं चाहता कि लोग सब कुछ छोड़कर संन्यासी बन जाएं। यदि सभी संन्यासी बन जाएंगे तो समाज कैसे चलेगा? और जो छोड़ने वाले हैं, उन्हें भी कुछ सोचना पड़ेगा। यह संभव नहीं है। पर यह संभव है कि आप जहां हैं वहां रहते हुए अणुव्रती बनें, ईमानदार और नैतिक बनें।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250