Book Title: Soya Man Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 195
________________ 194 सोया मन जग जाए और एक है सत्य का संसार। आभास के संसार में आभास तो होता है सत्य का, पर वह पूरी सचाई नहीं होती। सत्य के संसार में सत्य का पूरा साक्षात्कार होता है। दोनों के बीच में भेदरेखा यह है कि जहां चित्त की विषमता है वह व्यवहार का संसार और जहां चित्त की विषमता नहीं है, समता है वह अध्यात्म का संसार, वास्तविक संसार। यही है चेतना का जगत्, समता का जगत्।। हम चाहते क्या हैं विषमता या समता? हमें प्रिय क्या है—समता या विषमता? हम चाहते हैं समता, पर व्यवहार में लाते हैं विषमता। सिद्धान्तत: हमें प्रिय है समता, पर व्यवहार में है विषमता। जहां महत्त्व देने का प्रश्न आता है वहां हम समता को महत्त्व देते हैं। दो व्यक्ति लड़ रहे हैं। एक गाली-गलौज दे रहा है। दूसरा शांत है। लोग उस शांत व्यक्ति को पंसद करेंगे, उसे अच्छा बतायेंगे। झगड़ा या कलह करने वाले को कोई भी अच्छा नहीं कहेगा। इसका निष्कर्ष है कि हमारी अन्तस् चेतना का झुकाव सदा समता की ओर रहता है। किन्तु व्यवहार का गुरुत्वाकर्षण इतना तीव्र है कि वह खींचता है विषमता की ओर। एक ओर से समता की प्रेरणा प्राप्त होती है और दूसरी ओर से विषमता की प्रेरणा। बड़ी समस्या है। पूरे इतिहास को देखें, जो व्यक्ति समता के साथ जीये हैं, उनको महान् आदर्श माना गया है। जिन लोगों ने विषमता का जीवन जीया है, उनका इतिहास तो है, पर उन्हें आदर्श व्यक्ति नहीं माना गया। उनके जीवन का अनुसरण करना किसी ने नहीं स्वीकारा। इतिहास में और हमारी धर्म परम्परा में ऐसे अनेक व्यक्ति हुए हैं, अनेक इतिवृत्त हैं, जिन्हें आदर्श और पूज्य माना गया है, क्योंकि उन व्यक्तियों ने इन सभी द्वन्द्वों युगलों के परे का जीवन जीया है। जो इन द्वन्द्वों से अतीत होकर जीता है, वह आदर्श रूप बन जाता है। द्वन्द्व का जीवन है गाली के बदले गाली, ईंट का जबाब पत्थर से और एक की हत्या के बदले पांच की हत्या। प्रतिशोध का जीवन द्वन्द्व का जीवन है, संसार का जीवन है। यह चित्त की विषमता का जीवन है। गाली को सहना, ईंट के प्रहार को सहना, समभाव से सहना, यह है द्वन्द्वातीत जीवन। किसी ने आचार्य भिक्षु से कहा आज अनर्थ हो गया। आज मैंने तुम्हारा मुंह देख लिया। मुझे नरक जाना पड़ेगा। तुम्हारा मुंह देखने वाला नरक में जाता है। ___ भिक्षु से सुना। उनके चित्त की विषमता धुल चुकी थी। उन्होंने मुस्करा कर कहा मैं तो इस बात में विश्वास नहीं करता कि किसी का मंह देखने मात्र से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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