Book Title: Soya Man Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ सोया मन जग जाए आत्म-नियंत्रण का तीसरा अर्थ है— आवेश पर नियंत्रण । क्रोध, लोभ, मोह, माया, द्वेष आदि-आदि आवेशों पर नियंत्रण करना, अपने भावतंत्र पर नियंत्रण करना भी आत्म - 1 - नियंत्रण है । शरीर - नियंत्रण, मन या विचार नियंत्रण, आवेश या भाव-नियंत्रण इन तीनों का समुच्चय करने पर एक शब्द बनता है—- आत्म-1 - नियंत्रण | अध्यात्म के आचार्यों ने कहा-- आत्म-नियंत्रण करो। अपने पर अनुशासन करो। अपने पर अनुशासन का सूत्र है अप्पाचेवदमेयव्वो — आत्मा का दमन करो आत्मा पर अनुशासन करो। सर्वत्र नियंत्रण चलता है । कोई भी समाज ऐसा नहीं है । जो नियंत्रण - विहीन हो । मात्रा का भेद हो सकता है। कहीं अधिक और कहीं कम, पर अनुशासन सर्वत्र है । सभी प्रणालियों में अनुशासन चलता है । प्रणाली चाहे सामाजिक हो या राजनैतिक, गणतंत्र हो या प्रजातंत्र या एकतंत्र -- ये सभी नियंत्रण से ही चलते हैं। परिवार भी व्यवस्था से चलता है। धर्मसंघ भी नियंत्रण से मुक्त नहीं है। जब तक शरीर है, आवेश है, मन है, विचार है तब तक नियंत्रण से मुक्त नहीं है। जब तक शरीर है, आवेश है, मन है, विचार है तब तक नियंत्रण बंद हो नहीं सकता। आचार्य शंकर ने बहुत सुन्दर कहा है'यावदविद्यसंज्ञो त्थं जीवत्वं प्रतिपद्यते । तावद् विधिनिषेधानां शंकरोऽप्यस्ति किंकरः । । ' 232 — जब तक जीव में अविद्या है, अविद्या से उत्पन्न जीवत्व है, तब तक शंकर हो चाहे अन्य सब विधि - निषेध के सेवक हैं। बड़े से बड़ा आदमी भी विधि - निषेध को छोड़ नहीं सकता । विधि—यह करो, निषेध - यह मत करो, यही है नियंत्रण । विधि-निषेध का संयुक्त नाम है नियन्त्रण | नियन्त्रण की समाप्ति का अर्थ है विधि निषेध की परंपरा की समाप्ति । समाज विधि-निषेध के आधार पर चलता है। इसे समाप्त नहीं किया जा सकता। इसका तात्पर्य है कि नियंत्रण को कभी समाप्त नहीं किया जा सकता । अध्यात्म कहता है, समाज की बात छोड़ो, पहले अपने विधि - निषेध पर ध्यान केन्द्रित करो। स्व का नियंत्रण स्व पर, यह है अपना विधि - निषेध । इसका अभ्यास अपेक्षित है। प्रश्न है क्यों करें ? शरीर पर या शरीर की इच्छा-चालित प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना इसलिए जरूरी है कि समाज शिष्ट बने। समाज का प्रत्येक घटक यदि इस नियंत्रण से बाहर रहता है तो वह व्यक्ति अशिष्ट कहलाता है । शिष्ट कहलाने के लिए हाथ का, पैर का, वाणी का, चाल-चलन का, बैठने - उठने का, व्यवहार का - सब पर नियंत्रण रखना होता है । इच्छा-चालित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250