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अपनी आत्मा अपना मित्र
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राज्य का विस्तार करना ठीक नहीं है, क्योंकि उस राज्य के नागरिक भ्रष्ट हैं। उनका चरित्र ऊंचा नहीं है। उनके मिलने से हमारा राज्य भी प्रभावित होगा, नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा।' राजा ने इस कथन के लिए प्रमाण मांगा। मंत्री ने कहा मैं प्रमाणित करूंगा। ___ एक दिन राजा, मंत्री तथा अन्यान्य संभ्रांत नागरिक विजित प्रदेश में गए। वहां मंत्री ने नगर में घोषणा करवाई कि कल महाराजाधिराज समरसेन दूध के तालाब में स्नान करेंगे। अभी तालाब सूखा है। प्रात:काल होते-होते सभी नागरिक दो-दो लोटा दूध तालाब में डालकर उस तालाब को दूध से भर दें। सबने घोषणा सुनी। ___ एक नागरिक ने सोचा, सभी दूध डालेंगे ही, मैं यदि पानी डाल देता हूं तो कौन देखेगा। वह अंधरे-अंधरे जाकर दो लोटा पानी डाल आया। दूसरे, तीसरे और चौथे नागरिक ने भी यही सोचा। सभी ने दूध के बदले पानी डाला और तालाब पानी से भर गया।
राजा समरसेन, मंत्री कुषाण तथा अन्यान्य लोग तालाब पर उपस्थित हुए। राजा ने जब उसे पानी से भरा देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मंत्री के बिना कहे ही राजा को सारी बात ज्ञात हो गई। उसने उस राज्य को अपने राज्य में न मिलाकर पुन: उसी राजा को लौटा दिया।
कोई भी व्यक्ति अप्रशस्त को अपने साथ न रखना चाहता है और न मिलाना चाहता है। एक भ्रष्ट अफसर भी अपने अधीनस्थ अफसरों को अभ्रष्ट देखना चाहता है। एक बेईमान सेठ भी बेईमान नौकर को नहीं चाहता। एक आलसी व्यक्ति अपने नौकर को आलसी देखना नहीं चाहता। यह आदमी की प्रकृति है।
आत्मा का अच्छा उत्थान हमारा मित्र है और बुरा उत्थान शत्रु। हम इसे समझें।
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