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सोया मन जग जाए
पहले इन चारों में से हमें नाक का अधिक मूल्यांकन करना है।
जो व्यक्ति शरीर के अवयव नाक को समझ लेता है, उसका सही मूल्यांकन कर लेता है वह सर्वांगीणता प्राप्त कर लेता है। नकटे का अपशकुन माना जाता है। जिसका नाक चला गया, उसका सब कुछ चला गया। नाक शरीर का मुख्य अवयव है, सौन्दर्य का घटक है। प्रेक्षाध्यान शिविर की इस अल्पावधिक साधना में प्रत्येक व्यक्ति अधिक नाक वाला बने, अधिक से अधिक नाक को विकसित करे, प्राणकेन्द्र को विकसित करे।
नाक व्यक्तित्व का परिचायक है। उसके आधार पर व्यक्ति को पहचाना जा सकता है। आज भी यह विज्ञान की शाखा के रूप में स्वीकृत है। नाक की बनावट के आधार पर व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान को पढ़ा जा सकता है। इसकी अनेक सूक्ष्मताएं हैं। यदि इन सूक्ष्मताओं में न जाएं तो भी व्यवहार की भूमिका पर यह कहा जा सकता है कि जिसका नाक अच्छा है, उसका मस्तिष्क भी अच्छा है। जिसका नाक अच्छा नहीं है, उसका मस्तिष्क भी अच्छा नहीं है। जिसका नाक पर नियंत्रण है, उसका मस्तिष्क पर नियन्त्रण है, अपान पर नियन्त्रण है। जिसका नाक पर नियन्त्रण नहीं है, प्राण पर नियन्त्रण नहीं है, उसका मस्तिष्क पर और अपान पर भी नियंत्रण नहीं है।
सब अपने-अपने नाक को टटोलें और शिविर काल में उसको विकसित करने का विशेष प्रयत्न करें। शिविर में पहले दिन का प्रयोग नाक का प्रयोग होता है। जिसने अपने नाक को मना लिया उसने अपने देवता को मना लिया, प्रसन्न कर लिया। जिसने नाक को नहीं मनाया, उसने अपने देवता को भी नहीं मनाया। इष्ट देव को मनाने के लिए पहली पूजा या मनौति नाक की करें और इसके आस-पास जो कुछ हो रहा है उसको पकड़ें, उस पर ध्यान केन्द्रित करें।
दीर्घ श्वास का प्रयोग आत्मना युद्धस्व का पहला सूत्र है। अपने आप से लड़ने का यह पहला पाठ आपके विकास का हेतु बनेगा। कल्याणमस्तु ।
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