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९. युद्ध : कामवृत्ति के साथ
काम मौलिक मनोवृत्ति है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य की हु सारी शक्तियों का विकास कामशक्ति के द्वारा होता है। इसमें पूरी सचाई नहीं है और सभी मनोवैज्ञानिक इसमें एक मत नहीं है । फ्रायड ने इस पर बहुत बल दिया तो यूंग ने इसे अस्वीकार कर दिया । उत्तरवर्ती मनोवैज्ञानिकों ने भी फ्रायड का समर्थन नहीं किया ।
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मनुष्य में अनेक शक्तियां हैं । उनमें एक है कामशक्ति, काम की ऊर्जा । काम एक वृत्ति है। उसके साथ इसलिए लड़ना है, संघर्ष करना है कि वह उच्छृंखल न बने, निरंकुश न बने। उस पर नियन्त्रण आवश्यक है । नियन्त्रण स्थापित करने के लिए संघर्ष आवश्यक है। संघर्ष के बिना उस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। वृत्ति अपना दबाव डालती है और निरंकुश होना चाहती है । व्यक्ति यदि काम की निरंकुशता को सहन कर लेता है तो उसकी जीवन-यात्रा गड़बड़ा जाती है। व्यक्ति काम पर नियन्त्रण करके ही जीवन-यात्रा सुचारु रूप से चला सकता है । नियन्त्रण के लिए पुरुषार्थ का प्रयोग करना होता है । काम अपने पर नियन्त्रण चाहता नहीं और व्यक्ति उस पर नियन्त्रण करना चाहता है, तब संघर्ष होना अनिवार्य है । यह संघर्ष का हेतु है ।
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प्रश्न है, कामवृत्ति के साथ कैसे लड़ें? जब तक लड़ाई का सही ढंग ज्ञात नहीं होता तब तक विजय प्राप्त नहीं होती और पराजित होना पड़ता है विजय पराजय में बदल जाती है। जो लड़ाई के सम्यक् तरीके जानता है, जिसके साधन सशक्त हैं, वह विजयी बनता है । जो लड़ाई के सूत्रों से अनजान है, जिसके साधन कमजोर हैं, वह लड़ नहीं सकता और यदि लड़ता है तो पराजित हो जाता है । यह जय और पराजय का सिद्धान्त है ।
कामवृत्ति के साथ लड़ना है तो साधनों को शक्तिशाली बनाना होगा और कामवृत्ति के स्वरूप को समझना होगा ।
आदमी किसी भी अवस्था में चला जाए, उसे भूख लगती है, प्यास लगती है। भूख और प्यास के न लगने पर माना जाता है कि व्यक्ति बीमार है, रोगग्रस्त है । जीवन-यात्रा के लिए भूख भी जरूरी है और प्यास भी जरूरी है । भूख और प्यास पर विजय पाना है तो उनके हेतु को जानना होगा। वे क्यों और
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