Book Title: Shu Vidyut Sachit Teukay Che
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Anekant Bharati Prakashan
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५७२. किहांयक पानो अर्द्ध ही, किहां पत्र बे तीन । गळ्यो ग्रन्थ इम आदि बहु, इह विध कर्ह्यसुचीन ||५|| ए पुस्ताक रै मांहि । पानो ताहि ॥ ६ ॥
५७३. बलि कह्युं तृतिय अध्येन में, चैंठो इक पाना थकी, बीजो ५७४. ते माटे ए सूत्र ना, अलावा तिहां भणाहार सूत्रां तणा, त्यां ५७५. दोष न देवो तेहनी, खंड-खंड
न पामेह ।
पत्र सढ्या खाधी बलि, जीव उद्देहि जेह ||८|| ५७६. हरिभध्र निज मति करी, सांधी लिख्युंज ताम ।
इम कह्युं महा-निशीथ में, बलि अन्य आचारज नाम ॥ ९ ll ५७७. तिण सूं महानिशीथ पिण, डोहलाणों छै एह ।
सर्व मूलगो नहि रह्यो, निपुण विचारी लेह ||१०|| ५७८. शेष रह्या षट तेह में, कांइक कांइक बाय ।
अंग सूं न मिलै तेह वच, किम मानीजै ताय ॥ ११ ॥ ५७९. टीका चूर्णि दीपिका, भाष्य नियुक्ती जाण ।
किंणहिक री दीसै नथी, तिण सूं एह अप्रमाण ||१२||
अशुद्ध लिख्यं हुवै जेह ॥ ७ ॥ थइ एह ।
१. महानिशीथ, अध्ययन २, पत्र ७ (हस्तलिखित) :
एयरस य कुलिहियदोसो न दायव्वो सुयहरेहिं किंतु जो चेव एयस्स पुव्वायरिसो आसि तत्थे व । कत्थइ सिलोगो कत्थइ सिलोगद्धं कत्थइ पयक्खरं कत्थइ अक्खरपंतिया कत्थइ पन्नगपुट्ठिय कत्थइ वेतिन्नि पन्नगाणि एवमाइ बहुगंथं परिगलियं ति ।
२.
३. दीमक
४. महानिशीथ, अध्ययन ३, पत्र २५ (हस्तलिखित) :
एत्थ य जत्थ जत्थ पण्णाणुलग्गं सुतालावगं न संपज्जइ तत्थ तत्थ सुयहरेहिं कुलिहियदोसो न दायव्वो तित् । किंतु जो सो एयस्स अचितचिंतामणिकष्पभूयस्स महानिसीहसुयक्खंधस्स पुव्वायरिसो आसि तहिं चेव खंडाखंडीए उद्देहियाएहिं हेऊहिं वहवे पत्तगा परिसडिया तहावि अच्चंत सुहमत्थाइसयंति । इमं महानिसीयसुयक्खंधं कसिणपवयणस्स परमसारभूय परं तत्तं महत्थं ति कलिऊण पवयणवच्छल्लत्तेणं बहुभव्यसत्तोवयारियं च काउं तहा य आयरिअट्टयाए आयरिअ हरिभद्देणं जं तत्थायरिसो दिट्टं तं सव्वं समतीए साहिऊण लिहियं ति । अन्नेहिं पि सिद्धसेणदिवायर
आलापक
वाइ जक्खसे देवगुत्त जसवद्वणखमासमण सीसरविगुत्त णेमिचंद जिनदास गणखमग सव्वरिसिं पमुहेहिं जुणप्पहाणसुयहरेहिं बहुमण्णियमिति । ( पत्र २५ ) ५. मिलावटी
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