Book Title: Shrutsagar Ank 2012 12 023 Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिसम्बर २०१२ संपादकीय जैन धर्म-दर्शन में चातुर्मास का बहुत बड़ा महत्त्व है। ऋषि-मनीषियों ने साधना-आराधना की दृष्टि से पूरे बारह महिनों को तीन भागों में कार्तिकी चातुर्मास, फाल्गुनी चातुर्मास एवं आषाढ़ी चातुर्मास के रूप में विभक्त किया है। इनमें आषादी चातुर्मास के महत्त्व के सम्बन्ध में थोड़ा-बहुत तो हम सभी जानते ही हैं। आषाढी चातुर्मास का समय आषाढ शुक्ल चतुर्दशी से कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक का होता है। इस चातुर्मास का समय भी कितना सुन्दर होता है, जिसके आने पर ग्रीष्मकाल से त्रस्त समस्त चराचर प्राणी आनन्द की अनुभूति करते हैं। जिधर देखें उधर हरियाली ही हरियाली नजर आती है। शुष्क नदी-नाले जल से पूर्ण होकर झूम उठते हैं। इस संसार में शायद कोई ऐसा जीव होगा जो इस अवधि की प्रतिक्षा नहीं करता होगा। अपलक नेत्रों से किसान वर्षा की राह देखता है, क्योंकि यही चार महिने उसके शेष आठ महिनों के आधार होते हैं। यदि मेघराज ने अपनी कृपा की तो उसका दिल खुशियों से झूम उठता है और अपने आपको धन्य, भाग्यशाली और खुशकिस्मत समझता है। जैसे किसान इस चातुर्मास की राह देखता है ठीक उसी प्रकार श्रावक भी अपने हृदय में से इस अवधि की प्रतिक्षा करता रहता है। मगर चातुर्मास के आगमन की राह देखने में दोनों की दृष्टि अलग-अलग है। किसान पानी के लिये तो श्रावक जिनवाणी के लिये प्रतिक्षारत रहता है। क्योंकि श्रावक अच्छी तरह जानता है मैलापन, मेरी आत्मा पर लगे दाग जिनवाणी रूपी जल से ही धुल सकता है और यह तभी सम्भव है, जब किसी सद्गुरु का सान्निध्य प्राप्त होगा। जिनवाणी का प्रभाव तो शास्त्रों में सुवर्णांकित है। यह जीवन को देदीप्यमान करने वाली, नई दिशा प्रदान करने वाली, जीवन की राह परिवर्तित करने में सक्षम है। जिनवाणी के प्रभाव से जीव शिव बनता है, आत्मा परमात्मा बनती है, अर्थात् कंकर शंकर बन जाता है। जिनवाणी मोह में मस्त आत्मा की विवेक रूपी चक्षु को खोलने वाली कुंजी है। अंधकार को प्रकाश में एवं मृत्यु को अमृत में परिवर्तित करने में समर्थ है। वर्ष के आठ माह में तो पूज्य साधु-साध्वी भगवन्त गाँव-गाँव, नगर-नगर में विचरण करते हुए लोगों को परमात्मा के शासन से पूर्ण परिचित कराते हुए अपने आत्मोकर्ष के लिये प्रवृत्त रहते हैं। किन्तु चातुर्मास के चार महिने विशेष रूप से जीवोत्पत्ति होने के कारण जीवहिंसा से बचने के लिये एक जगह स्थिरता करते हैं। इस अवधि में अपने गाँवशहर में चातुर्मास के लिये श्रीसंघ पूज्य साधु-साध्वीजी भगवन्तों से विशेष विनती करते हैं, तथा उनके सान्निध्य में अपनी आत्मा की निर्मलता की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। इस अवधि में संपूर्ण भारतभर में लगभग प्रत्येक छोटेबड़े जैनबहुल क्षेत्रों में कोई न कोई साधु-साध्वीजी का चातुर्मास अवश्य ही होता है। हमारे सौभाग्य से राष्ट्रसन्त हमारे परम गुरु आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब का मंगलकारी सान्निध्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास अवधि में यहाँ प्रवचन शिविरों के साथ ही अनेक धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया! पूज्यश्री का चातुर्मास यहाँ निर्विघ्न सम्पन्न हुआ है। इस अवधि में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का वातावरण पूर्ण धार्मिक बना रहा, देश-विदेश के अनेक श्रद्धालु भक्तों ने यहाँ आकर पूज्यश्री की पुण्यवाणी एवं पुण्य दर्शन का लाभ प्राप्त कर अपने को धन्य बनाया। (अनुक्रम लेख लेखक ૧. ગૌતમસ્વામી ભાસ-સપ્તક સંપાદક - હિરેન દોશી, ૨, ચાલો, ન્યાયને ન્યાય આપીએ મુનિશ્રી રત્નવલ્લભવિજયજી મ. સા. ૯ 3. विनय अरुण झा ४. प.पू.आ.पद्मसागरसूरिजी म.सा. का संभवित विहार कार्यक्रम ૫. ધર્મની રક્ષા કાજે સ્વ. રતિલાલ મફાભાઈ શાહ ૬. સત્તરભેદિપૂજા કથા - એક પરિચય ડૉ. મિલિન્દ સનકુમાર જોષી ૭. જ્ઞાનમંદિર – સંક્ષિપ્ત અહેવાલ નવેમ્બર-૧૨ ८. ग्रंथ पश्यिय હિરેન દોશી For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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