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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ अप्रगट त्रण लघु गुरुगुणस्वाध्याय
___ गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रस्तुत अंकमां आपणे त्रण अप्रगट लघु गुरुतत्व- वर्णन करती सज्झायो जोईशुं । लणे पूज्यो तपागच्छनी सोमसुंदरसूरिजीनी परंपराना वाहक छ । स्वप्रतिभाना बळे जिनशासननी जाहोजलालीने जाळवी राखवामां आ लणे महापुरुषोनुं खूब ज सारं योगदान छ। अहीं आपणे कृतिना आधारे तेमनो आंशिक परिचय मेळववा प्रयत्न करीशुं । जो के त्रणमांथी पू. हेमविमलसूरिजी तथा पू. हेमसोमसूरिजीना जीवन चरित्रनी वातो तो अन्य स्थळे पण मळे छ । ज्यारे पू. लक्ष्मीकल्लोल गणिना जीवन चरित्र पर प्रकाश पाथरती कदाच आ प्राप्त प्रथम कृति हशे। खास तो संपादनार्थे आ त्रणे कृतिओनी हस्तप्रत उपलब्ध कराववा बदल श्री नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरिजी ज्ञानमंदिर (सुरत) ना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार।
हेमविमलसूरि स्वाध्याय अप्रतिम प्रतिभाना धणी एवा पू. हेमविमलसूरिजी महाराज प्रस्तुत कृतिना चरित्रनायक तो छे ज, साथे साथे “वादीय टोडरमल्ल” बिरुदने धरनार समर्थवादी पण छे, जिनशासनमां आनंदविमलसूरि-सोमविमलसूरि आदि ५०० श्रमण-श्रमणीओनी भेट श्रीसंघने आपनार पुण्यपुरुष छे, तो “कमल” शब्द श्लेषमय पार्श्वजिन स्तवनादि ग्रंथोना रचयिता पण छे, वळी म्लेच्छोवडे करायेली एक जैनाचार्यनी कदर्थनाने वर्णवती “जवामींनो जुवाळ” नामनी नोवेल(वार्ता)ना कथानायक पण तओश्री ज खरा। जो के हजु पण तेमना माटेना घणा पासा खोली शकाय, पण तेवू न करता आपणे कृतिने आधारे ज तेमना व्यक्तितत्वनो परिचय मेळवीशुं । ___कविए अहीं प्रथम पद्यनुं मंगलाचरण 'मां' शारदाना तथा स्वगुरुना नामोच्चार पूर्वक कर्यु छ। कृति नानी होई विगत वर्णन पण टुंकमां ज करवू तेवी टेक साथे जाणे कविए बीजीथी छट्टी गाथा सुधीमां तो चरित्रनायकना माता-पिता-ग्रामादिकना नामोल्लेखथी लईने, बाळसहज क्रीडा, विद्याध्ययन, धर्माभ्यास, लक्ष्मीसागरसूरिजीना शिष्य सुमतिसाधुसूरि पासे संयम ग्रहण कर्यानी वात गुंथी काढी छ । आ ज द्रुतगतिमां निरुपणने आगळ वधारता कवि त्यारपछीना पद्योमां मुनि हेमविमलना ज्ञानाध्ययननी तथा मांडवगढनी वादसभामां विजय मेळवी ‘वादीय टोडरमल्ल' बिरुद प्राप्त कर्यानी विगतो रजू करे छ।
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