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SHRUTSAGAR
September-2019 अधिकांश पाण्डुलिपियों पर प्रयोग किए गए। साथ ही प्रशिक्षण अन्तर्गत खराब हालत में रही हस्तप्रतों को किन-किन प्रकारों से सुरक्षित किया जा सकता है, उन सारी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी दी गई। उसमें प्रत की स्थिति को देखकर निर्णय लिया जाता है कि किन प्रतों में किस प्रकार के केमिकल का प्रयोग किया जाएगा, चिपके पत्रों को कैसे अलग किया जाता है, टूटने योग्य पत्रों को बहुमूल्य टिश्यु पेपर से आधार (स्ट्रेन्थ) देकर उन्हें कैसे सुरक्षित रखा जाता है, जिससे उन पत्रों की आयु बढ़ सके और विशेष रूप से हस्तप्रत की खराब स्थिति को देखकर उसे अधिक नुकसान पहुँचाए बिना उसका उपचार कैसे करना चाहिए, इन सभी विषयों से सम्बन्धित प्रशिक्षण दिया गया।
पाण्डुलिपिसंरक्षण के प्रशिक्षण अंतर्गत कुछ मुख्य कार्यों का उल्लेख निम्नलिखित है१) स्टोरेज हेन्डलींग, २) मेकेनिकल क्लिनिंग (ड्राय ब्रश, सूई वगेरे.) ३) सोल्वेन्ट क्लिनिंग (दाग-धब्बे, सेलोटेप को हटाया जाता है) ४) एक्वास (पानी) क्लिनिंग (PH पेपर से इन्क टेस्ट कर डिएसीडिफिकेशन करना), ५) कागज के टूटे भागों पर मेन्डिंग करना ६) बटकने योग्य प्रतों पर टिश्यु पेपर से लाईनिंग करना, ७) ह्युमीडिटी फायर मशीन से चिपके पत्रों को अलग करना ८) तब्दीले ए बदहवासी (कमजोर किनारीयों को आधार देना) ९) नेब्यूलाईजर द्वारा कागज के प्रतों को नमी देना व गोरेटेक्स विधि से भी चिपके हुए पत्रों को अलग करना १०) कागज में अगर छिद्र हों तो उनको पल्पिंग करना ११) टूटे हुए ताड़पत्रों को जोड़ना. १२) कमजोर ताड़पत्रों पर इनकेप्च्यूलेशन करना। इस तरह सुसज्जित रूप से कन्जर्वेशन का प्रशिक्षण दिया गया। कार्यकर्ताओं ने इन कार्यशालाओं में बहुत ही अच्छी तरह से प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
कार्यकर्ताओं द्वारा प्राप्त किए गए प्रशिक्षण एवं वहाँ संरक्षित की गई पाण्डुलिपियों की अद्यतन स्थिति देखकर संस्था की प्रबंधन समिति बहुत प्रभावित हुई है। उनके द्वारा इस विषय पर गहन विचार-विमर्श के बाद निकट भविष्य में संस्था में ही आधुनिक तकनीकि सुविधाओं से युक्त प्रयोगशाला (लैब) के निर्माण का निर्णय किया गया है। जिसमें ज्ञानभंडार में नष्ट हो रही पाण्डुलिपियों तथा पुस्तकों का विधिवत उपचार किया जा सकेगा
और उनका जीवन काल बढाने का उत्तम प्रयास किया जा सकेगा। जिससे संस्था में संगृहीत दुर्लभ-अमूल्य विरासत को भावि पीढ़ी के लिए सुरक्षित एवं संरक्षित किया जा सकेगा।
उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का निरन्तर योगदान रहा है और भविष्य में भी रहेगा। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की व्यवस्था को देखकर अन्य संस्थाओं ने इसकी अनुमोदना की है। जिसमें राष्ट्रिय पांडुलिपि मिशनदिल्ली, भारतीय अभिलेखागार-दिल्ली, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान-नई दिल्ली/लखनऊ एवं संस्कृत भारती-दिल्ली का समावेश है। भविष्य में समाज के कल्याण हेतु अन्य महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर भी काम किया जाएगा।
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