Book Title: Shrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 16 पालक हुउ रे पातकी, जो (जा) ग्यो द्वेष अपार रे । पांचसइं मुनिवर पीलीया, घाली घांणी मझारि रे । खंधकसुरि तेणी वारि रे, जाग्यो क्रोध अपार रे । ध्वी (द्वी) पायन नामि रे तापसो, क्रोधि मलीउ खोहार रे । अमरापुरी सम द्वारिका, बाली कीधो ते छा* रे । ज्यादव कीधो संहार रे, भरीउ पाप भंडार रे । कीधो देश साह (संहार?) रे क्रो० ... ॥ ८ ॥ तप तपि रे बहु परि, क्रोधि ते सवि छार रे। चारित्र चोखुं रे तेहनु, नवि धरि क्रोध विकार रे । नाणी महिर लगा (र) रे क्रो० ...|| ९ || काउस्सग दोय मुनीवर रह्या, कुणालानि खाल रे । क्रोधि मेह वरसावीउ, तप थयु आल पंपाल रे । पडिया दुइ पाताल रे, लहि दुख्ख असराल रे । न करि साल संभाल रे क्रो० ... To...113011 ४. राख, नीर्मल त(ते) होइ रे आतमा, जिम लहो केवलनाण रे । हिसि ते सु(स) वि नाण रे, कुरगडु मुनि ना महिमा घणो, उपसम ल ( लि) उं सीवराज रे । एहवुं जाणी भो भवि जना, धोध(क्रोध) तजो सुखकाज रे । पामो भवोदधि पाज रे, पामु मुगतिनुं राज रे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आणइ उपसम वारि रेक्रो० ... ॥ ११ ॥ मई -२०१९ तपगच्छ नायक्ख(क) रे जाणीइ, श्री विजयप्रभुसुरिंदि रे । क्रोध न तस दस देहमां, मोटो एह मुणंद रे । प्रणमइ नरवर वृंद रे, संघविजय कविरायनो, देवविजय कविराय रे । तत्वविजय कहि भविजना, म करो कोय कषाय रे । मनवंछित फल थाय रे, जे छि सुखनी खाण रे क्रिो० ...॥१२॥ सीद्धां वंछित काज रे क्रो० ...॥ १३ ॥ सेवि मुनिवर वृंद रे क्रो० ...||१४|| दुरति ( दुरीत) दुरि पलाय रे क्रो०...॥ १५ ॥ । इति श्री च्यार कषाए प्रथम क्रोध स्वाध्याय संपूर्ण । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68