Book Title: Shrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ SHRUTSAGAR May-2019 क्रोध, मान, माया, लोभ वगेरे रखे वचे ते ठेकाणे मनमां पेशीने आत्माने छेतरे नहि. चालतां पोतानी नानी अवस्था हती त्यारथी जेटलां पाप यादीमां आवे तेटलां संभारी संभारी शुद्धअंतःकरणपूर्वक मिच्छामि दुक्कडं देवो. ____ चोरी, जारी, छळ, कपट, जीवनी हिंसा, असत्यवचन, देवगुरूधर्मनी निंदा करी होय ते सर्वे दुष्कृत्य वैराग्यपूर्वक मनमां संभारी निंदवां के जेथी पापकर्म आत्मा साथे लागेला छे ते नाश पामतां जाय. वळी मनमां विचारवं के हे चेतन ! घणा सारा भावथी अहिं कर्मनो नाश करवा आव्यो छे, माटे कंइ पण बाकी मूकीश नहि. भव्यजीवोने ए गिरि स्वप्नमां सुवर्णनो देखाय छे ए वात सत्य छे. ए गिरिनां भावथी दर्शन करतो मनुष्य आत्माने उज्ज्वल करे छे अने पोतानो सिद्धाचल आत्मा तेनां दर्शन करे छे. ___ए गिरि चढतां ज्यारे अप्रमत्त हिंगलाजनो हडो आवे छे त्यारे पापनो घडो फुटे छे. हिंगलाज सुधी आवतां खुब थाक लागे छे. त्यारे चेतन थाक लेवा विश्राम करे छे. ते वखते भावना भाववी के हे चेतन ! मनमा विचार के तें कोइ वखत भावे करी आत्मारूप सिद्धाचल गिरिनां दर्शन कर्या होत तो आ थाक लागे छे ते लागत नहि. आ थाक तने लागतो नथी, थाक पुद्गलने लागे छे पण ते ते सारो थाक लागे छे के जेथी तारां भवोभवनां पाप चाल्यां जतां, तुं थाकरहीत थाय छे माटे चढता परिणाम राख. स्त्री पुत्र परिवारने माटे त्हें टाढ, तडका, भूख, तृषा इत्यादि घणां दुःख सहन कर्यां पण ते दुःखथी मुक्तिपद पाम्यो नहि, पण जो आ वखते तुं शरीर- दुःख सहन करीश तो मुक्तिपद सहेलुं छे. एम विचारी शुभभावे हे चेतन ! आगळ वध अने आदिनाथनां दर्शन करी आत्मस्वरूप प्राप्त कर. एम वधी आगळ चालतां पांडवो विगेरेनां दर्शन करी विचारो के अहो ! ते पुण्यवंता महाबळवान हता. तेओ पण एक वखत आ जगतमांथी चाल्या गया. तो हे चेतन ! विचार के तुं केम पारकी वस्तु पोतानी मानी पापनी प्रवृत्ति कर्या करे छे. ___ मरती वखते जीवनी साथे पुण्य ने पाप आवे छे. माटे आत्मध्यानीओ तो काळानुभावे पुण्य अने पापनो पण त्याग करी सिद्ध स्थानमां बीराजे छे. जे जीव भावथी शखंजय पर चढे छे ते जीव पोताने उत्पन्न थयेला एवा जे सारा भाव तेथी गुणश्रेणिपर चढी केवलज्ञान पामी परमात्मपद प्राप्त करे छे. धार्मिक गद्य संग्रह भा.१ पृ. ८९६

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68