Book Title: Shrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 66
________________ 32 मई-२०१९ श्रुतसागर में स्थान रखती है। टीकाकार ने इस कृति में बहुत ही गूढ़ एवं सूक्ष्म अनुप्रेक्षा की है। अनेक उहापोह और चिन्तन-मनन द्वारा तत्त्वों को बहुत ही संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है। इस टीका का विषय इतना गूढ़ है कि सामान्य विद्वान की तो बात ही क्या बड़े-बड़े नैयायिक भी ऊपर-ऊपर ही विचरण करते नजर आते हैं। इसे समझने के लिए कई बार नैयायिकों के सेमिनार का आयोजन भी किया जाता है, फिर भी विद्वान संतुष्ट नहीं हो पाते हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में गूढार्थतत्त्वालोक पर संस्कृत भाषामय यशोलता टीका तथा गुजराती भाषामय विनम्रा विस्तृत विवरण की रचना पूज्य मुनि श्री भक्तियशविजयजी द्वारा की गई है. पूज्य मुनिश्रीजी ने दुनिया के इस कठिनतम ग्रंथ पर बृहद् टीका की रचना करके सामान्य जनों के लिए भी सरल बना दिया है। इस कठिनतम ग्रंथ में प्रवेश पाना विद्यार्थियों के लिए अब कठिन नहीं रहा है। गूढार्थतत्त्वालोक और यशोलता टीका के अध्ययन के पश्चात यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि श्री धर्मदत्त झाजी ने अपनी अद्वितीय बुद्धिप्रतिभा के बल पर यदि गागर में सागर को समाहित किया है, तो पूज्य मुनिश्रीजी ने अपनी विचक्षण प्रज्ञा के बल पर प्रस्तुत रचना में गागर से सागर को बाहर निकाल दिया है। पूज्य मुनिश्रीजी ने गूढार्थतत्त्वालोक के लगभग ९०० श्लोक प्रमाण पर लगभग ९०,००० श्लोक प्रमाण वाली टीका की रचना करके नव्यन्याय के क्षेत्र में एक क्रान्ति ला दी है। जैसा कि ज्ञातव्य है पूज्य मुनिश्रीजी की आयु अभी मात्र २० वर्ष की है, दीक्षा पर्याय भी मात्र ७ वर्ष की है, फिर भी वे यशोलता जैसी विशाल टीका की रचना करके विद्वज्जगत् में देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति स्थान ग्रहण कर चुके हैं। पूज्य मुनिश्रीजी ने अपने निवेदन में यह स्पष्ट लिखा है कि उनके गुरु पूज्य आचार्य श्री यशोविजयसूरीश्वरजी म. सा. की यह प्रबल भावना है कि उनका शिष्य उनसे भी बढ़कर विद्वान बने। और, मुनिश्रीजी ने इस कृति के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया है। पूज्य आचार्य श्री यशोविजयसूरीश्वरजी म. सा. भी द्वात्रिंशत्-द्वात्रिंशिका, द्रव्य गुण पर्यायनो रास आदि कई ऐसे गूढ ग्रंथों पर विस्तृत टीकाओं आदि की रचना कर अपने वैदुष्य का परिचय करा चुके हैं। संस्कृत भाषा में लिखित एवं नव्यन्याय की परिभाषायुक्त तर्क, व्याप्ति, नियम आदि से संबंधित इस ग्रंथ की गुत्थी को खोलने का प्रयास वर्षों तक अनेक विद्वानों द्वारा किया जाता रहा है, जिस ग्रंथ की एक-एक पंक्ति की व्याख्या करने में यदि असावधानीवश एकाध शब्द आगे-पीछे हो जाए तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती

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