Book Title: Shrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
मई-२०१९ गुजराती बोलीमा विवृत अने संवृत ए-ओ
चुनीलाल वर्धमान शाह (गतांक से आगे)
लेखनमा स्वरोने व्यंजनोथी जूदा पाडवानी जे पद्धति १५-१६ मा शतकमा हती, ते माटे उच्चारण-भेद- तत्त्व पण केटलेक अंशे जवाबदार हशे, एम आ उपरथी मानवू पडे छे । हणइया शब्द हणिया माटे लखायेलो हशे अने आजे पण कवितामां लखाय छे; परंतु ते पछीना काळमां हणइया नुं रूप हणेआ थयु जे १९ मी सदीना अंत सुधी चालु हतुं । आ बे प्रकारनां रूप उपरथी तेना उच्चारणमां जे प्रयत्नभेद होवानो संभव छे, ते आ प्रमाणेः
हण-इया हणिया
हण-इया=हणेआ आ ज रीते वास्तविक बोलीमां अइ-अउ जेवां स्वयुग्मोनां उच्चारणोमां पण प्रयत्नोना विकल्पो प्रचलित थया होय ए अस्वाभाविक जणातुं नथी। गौरी शब्दनां बे रूपो छेः गोरी अने गॉर्य । आ बेउ रूप प्रयत्नोना विकल्पनां परिणामो छः
गौरी-गउरी-गोरी (गौरवर्णी सुंदरी)
गौरी-गउरी-गॉर्य (पार्वती) जूनी गुजरातीना लेखनमा व्यंजनो साथेना स्वरोना आश्लेष-विश्लेषना नियमोमां जेवी शिथिलता हती, तेवी उच्चारणमा हती तथा प्रयत्नमां पण हती। कःपुनः उपरथी साधित थएलुं कवण रूप अत्यारे कवितामां प्रचलित छे, ज्यारे गद्यमां कॉण प्रचलित छे; पण कउण अने कुण ए जूनी गुजरातीना काळमां प्रचलित हतां । कउण मां क उपर प्रयत्न मूकनारा कोण-कॉण बोलता थया, अने कउण ए उ उपर प्रयत्न मूकनारा कुण बोलता थया। ए ज रीते केटलाक शब्दोमां स्वरोना विश्लेष थवाथी (वस्तुतः बोलीमां प्रसरवाथी) प्रयत्नो बदलायानां अने संवृत ए-ओ प्रचलित थयानां उदाहरणो मळे छ ।
सुराष्ट्र-सउरट्ठ-सोरठ कुमार-कुंवर-कुंयर-कुअर-कुर-कउर-कोर (देवकुर-देवकोर)
थुवर-थुअर-थउअर-थोर* *कोइ थॉर पण बोले छे; तेमने थउर जेवा प्रयत्ननो वारसो मलेलो होय छे.
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