Book Title: Shrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 33 SHRUTSAGAR May-2019 वैसे ग्रंथ के गूढार्थों को खोलने के लिए पूज्य मुनिश्रीजी ने मात्र दो वर्षों के अन्तराल में ही संस्कृत एवं गुजराती भाषा में विशाल टीका एवं विवरण की रचना करके न केवल विद्यार्थियों का मार्ग सरल किया है, बल्कि संपूर्ण विद्वज्जगत् को नव्यन्याय के दुरूहतम क्षेत्र में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया है। पूज्य मुनिश्रीजी ने अपने भगीरथ पुरुषार्थ के द्वारा नव्यन्याय के गूढ़ तर्कों की सरल-सलिलरूपी ज्ञान भागीरथी को इस धरातल पर लाने का कार्य किया है जिसमें विद्वज्जन डुबकी लगाकर अवश्य ही पावन-पवित्र बनेंगे। इस ग्रंथ की विशेषता एवं उपयोगिता के कारण संपूर्ण विद्वज्जगत् में मुक्तकंठ से प्रशंसा हो रही है। ग्रंथ के प्रारम्भ में महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि के साथ-साथ अनेक मूर्धन्य विद्वानों के भी प्रशंसापत्रों को प्रकाशित किया गया है। पूज्य आचार्य श्री यशोविजयसूरीश्वरजी म. सा. की छत्रछाया में रचित इस ग्रंथ का संशोधन पूज्य पंन्यास श्री रत्नबोधिविजयजी म. सा. ने किया है। इसका प्रकाशन श्री दिव्यदर्शन ट्रस्ट, अहमदाबाद द्वारा किया गया है। ग्रंथ विशालकाय होने से लगभग ४५०० पृष्ठों को कुल १४ भागों में प्रकाशित किया गया है. पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। ग्रंथ में विषयानुक्रमणिका के साथ-साथ अनेक प्रकार के परिशिष्टों में अन्य कई महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का संकलन करने से प्रकाशन बहूपयोगी हो गया है। पूज्यश्रीजी की यह रचना एक सीमाचिह्नरूप प्रस्तुति है। संघ, विद्वद्वर्ग, तथा जिज्ञासु वर्ग इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में है। मुनिश्री की साहित्यसर्जन यात्रा जारी रहे, ऐसी शुभेच्छा है। । अन्ततः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रस्तुत प्रकाशन जैन साहित्य गगन में देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति जिज्ञासुओं को प्रतिबोधित करता रहेगा। पूज्य मुनिश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन। ___अन्त में एक निवेदन है कि जिस प्रकार संस्कृत एवं गुजराती भाषा में टीकाएँ लिखी गई हैं, उसी प्रकार संस्कृत या गुजराती टीका का हिन्दी अनुवाद करवाकर प्रकाशित करवाने की कृपा करें, ताकि वैसे विद्यार्थी जिन्हें गुजराती भाषा का ज्ञान नहीं है तथा संस्कृत भाषा में भी अच्छी पैठ नहीं है, उन सबके लिए भी यह ग्रंथ बहुत सहायक एवं उपयोगी सिद्ध होगा। आशा है मेरे निवेदन पर पूज्यश्रीजी अवश्य ही ध्यान देंगे। पूज्यश्रीजी को कोटिशः वन्दना. For Private and Personal Use Only

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