Book Title: Shrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 SHRUTSAGAR May-2019 इद्र अहिल्लासु रमउ रे, कपटि थयु मांजार। गोलणी गोविंदनो रे, कपटि कीयो अपार रे प्राणी०...॥१३॥ माया दुखनी भूमिका रे, स्वर्ग शइवनी(?) वात। सुक्रत संचय जे कर्यो रे, माया तेहनी धाडि रे प्राणी०...॥१४॥ माया विषधर सर्पणी रे, खाधां नर नि नारि । अजव तावज आणतां, टलि विष टलि विषनो विकार रे प्राणी०...॥१५॥ धन्य ते श्रावक श्राविका रे, धन ते साधु परिवार । कपटरहीत करि धर्मनि रे, सफल तेहनो अवतार रे प्राणी....॥१६॥ ।इति श्री च्यार कषाए व्रतीय माया सज्झाय । ।नमो रे नमो रे श्री शेत्रिज0 ए देशी। परिहर प्राणी परिहर प्राणी, परिहरि लोभनो व्याप रे। लोभ तणि रस जे नर तारा, ते नर मरी थाइ साप रे परिहरि...॥१॥ लोभ क्रोध सदा रहिवाशि, नाशि सजने नेहा रे। प्रतातणी छादनकालि, लोभ घनाघन मोहा रे परिहरि...॥२॥ आमीष लोपि(भि) मछ जे जालि, मृग पडीउ ते पास रे। कमलि भीड्यो मधुकर हवि, जोउ ला(लो)भ त पसांइ रे परिहरि...॥३॥ लोभि विर वरो धन ज वाधइ, लोभ छि क्रोधनु ठाम रे । दीवि पड्यो पतंग ज रोवि, पाप तरु आराम रे परिहरि...॥४॥ लोभि नीज बंधवनि साथि, भरथचक्री ते नडीउ रे। अहो अहो लोभ तणा फल विरुयां, सागर समुद्रि पडीउरे परिहरि...॥५॥ सुरप्रीइ नीज तात ज हणीउ, लोभ तणी गति दीठी रे। राजग्रही नगरीमां जांण्यो, लोभीउ मम्मण दीठो रे परिहरि...॥६॥ नवि नंद गया ते नरगि, मेहली सोवननी कोडि रे। मुव्वा(?)ण सेठ हुउ ते लोभी, नगइ गयु सवि छोडि रे परिहरि...॥७॥ पुत्री त्रीपत न पाम्यु सागर, बीजो चक्री कहीइ रे। कुचीकणि(?) गोसहस्त्र मेली, नरग तणां दुख लहीइ रे परिहरि...॥८॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68