Book Title: Shrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 9 August-2018 T द्वारनुं अनुसंधान बीजा पदमां जोडी पदार्थावबोधमां असमंजस उभी करे छे । ते ज कारणथी ४-५ जग्याए अमोने पदार्थावबोध न थता त्यां अमे प्रश्नवाचक चिह्न मुक्युं छे। कृति मध्यकालीन गुर्जर भाषानी रचना छे तेथी शास्त्रीय शब्दोने तत्सम स्वरूपे काव्यमां प्रयोजवानी कृतिकारनी शैली उल्लेखनीय छे। प्रासादिकतानी दृष्टिए काव्य मध्यम कक्षानुं कहि शकाय । कृतिनी प्रतो अने कृतिकार प्रस्तुत कृतिनी रचना सं. १६०३ मां कवि जग ऋषि (जगर्षि) एकरी छे । कृतिकार पू. आणंदविमलसूरिजीनी परंपराना साधु छे । काव्यमां तेमणे पोतानी आ गुरु परंपरानो संक्षेपमां उल्लेख पण कर्यो छे । रचना शैली जोता कविनी आ प्रारंभिक रचना हशे तेवुं अनुमान थाय छे। जो के आ पछी तेमणे कोई कृति रची होय तो खास तपास करवी घटे। आ कृतिना संपादन माटे अमोने (१) खंभात- अमर शाळा ज्ञानभंडारनी तेमज (२) कोबा-कैलाससागरसूरि ज्ञानभंडारनी एम २ प्रतो मळी हती, जेमांथी खंभात भंडारनी प्रत वधु प्राचीन तेमज शुद्ध वाचनावाळी होवाथी आदर्श प्रत तरीके अमे ते ज प्रत स्वीकारी छे । ज्यारे कोबानी प्रतनो उपयोग फक्त पाठांतर माटे कर्यो छे। जो के 'अ' ने बदले 'य'ना प्रयोगो, तेमज 'ई' तथा 'उ' ना स्वतंत्र प्रयोगो (दा. त. चु ने बदले चउ, तणुं ने बदले तणउ, च्यारि ने बदले चियारि) ने बाद करीए तो बीजा खास पाठांतरो पण कोबानी प्रतमां नथी। वळी खंभातनी प्रतनुं आलेखन गणि मतिविमलनी प्रेरणाथी थयुं होई तेनुं मुनिश्री द्वारा संमार्जन पण करायुं होय तेवुं विचारी शकाय । प्रान्ते संपादन माटे उपरोक्त बन्ने हस्तप्रतनी झेरोक्स आपवा बदल खंभात अमर शाळा ज्ञानभंडारना व्यवस्थापकोनो, प्रो. कीर्तिभाई तेमज मनुदादानो तथा कोबा श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानभंडारना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार । विचारमंजरी स्तवन ॥०॥ सकलगिरिशिरोमणि श्री ५ श्रीऋद्धिविमलगणिगुरुभ्यो नमः । वंदिय वीर जिणेसर देव, जासु सुरासुर सारइं सेव, पभणिसु दंडक- -क्रम चउवीस, एक एक प्रतिं बोल छवीस गणधर रचना अंग उपांग, पन्नवणा सुविचार उपांग, तेह थकी जांणी लवलेस, नाम ठाम जूजूया विसेस For Private and Personal Use Only 11311 ॥२॥

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