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SHRUTSAGAR
August-2018 माध्यस्थपणु विगेरे बाबतनो महिमा बताववा कविवरोए सारो श्रम लीधो छे.
आ बाबतमां ध्यान खेंचवू जोइए के श्री नरसिंह महेता, प्रेमानंद, दयाराम के भालण कविनी के तेवा बीजा गुजराती कविओनी कविताओ धर्मने आगळ राखीने रचाय छे, एक शामळभट्ट सिवाय बीजा जुना घणाखरा कविओनी कविता पोताना धर्मनेज लगती छे. पोत पोताना धर्मने लगती कविताओने पण गुजराती भाषामां स्थान मळवू ज जोइए. ___ घणुंखरूं संस्कृत कविओर्नु अनुकरण करी असलना गुजराती कविओ पोतानी कविताओ रची गया छे अने तेमां घणो भाग धर्म संबंधी छे. आपणा भारतवर्षमां धर्मभाव ने आत्मवादनुं प्राबल्य होवाथी जेओ धर्म संबंधी कविता लखे छे तेज कविता, कथा, रासा वगेरे आ देशनी प्रजा पछी ते पोते गमे ते धर्म पाळती होय तेने प्रिय तथा पूज्य थइ पडे छे अने तेथी तेओ परंपराए अमर थाय छे. __ जेथी आटली हकीकत निवेदन कर्या पछी स्पष्ट समजाशे के धर्म विषये लखायेली कविताओ पण गुजराती भाषा साहित्यमांथी जेम बातल करी शकाय नहिं तेम ते पण गुजराती साहित्यमां अमुक स्थान भोगवती होवाथी गुजराती साहित्यनी अभिवृद्धिना अंगो पैकी- एक मुख्य अंग छे!!!
श्री आत्मानंद प्रकाश, वीर सं.२४५०, पु.२१, अंक-११ मांथी साभार
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