Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
RNI:GUJMUL/2014/66126
ISSN 2454-3705
" श्रुतसागर | श्रुतसागर
SHRUTSAGAR (MONTHLY) August-2018, Volume : 05, Issue : 03, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/
EDITOR: Hiren Kishorbhai Doshi
BOOK-POST I PRINTED MATTER
रायनासली Aणहतातील
REASN
यति नजारा
LOSEदावादनाशनमा
रूई गाँव स्थित पार्श्वजिन धातुप्रतिमा लेख
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
For Private and Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Os
2
www.kobatirth.org
भायंदर, मुंबई में प. पू. राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के भव्यातिभव्य चातुर्मास प्रवेश की कुछ झलकियाँ
(कल्याणकशि चातुमास
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पाट पर विराजमान पूज्य आचार्य भगवंत व शिष्य परिवार
शोभायात्रा के साथ चातुर्मास प्रवेश करते हुए पूज्य आचार्य श्री सपरिवार
व्याख्यान में उपस्थित जन समुदाय
For Private and Personal Use Only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
RNI : GUJMUL/2014/66126
ISSN 2454-3705
(आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर श्रुतसागर SHRUTSAGAR (Monthly)
वर्ष-५, अंक-३, कुल अंक-५१, अगस्त-२०१८
Year-5, Issue-3, Total Issue-51, August-2018 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/
आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन सहयोगी हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. त्रिवेदी
ज्ञानमंदिर परिवार १५ अगस्त, २०१८, वि. सं. २०७४, श्रावण शुक्ल-५
सन आराध
अना के
वीर जा
त महावीर
द्रका
सवा
अमृतं त विद्या
अ
प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर __ (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org
For Private and Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुक्रम
1. संपादकीय 2. आध्यात्मिक पदो 3. Awakening 4. विचारमंजरी स्तवन 5. जिनप्रतिमाओं के लेख 6. गुजराती भाषासाहित्यमां जैन
रासाए अने कविताए लीधेलु प्रथम स्थान 7. समाचार सार 8. चातुर्मास सूची
रामप्रकाश झा आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी Acharya Padmasagarsuri सुयशचन्द्रविजयजी गणि आर्य मेहुलप्रभसागर
गांधी वल्लभदास त्रीभोवनदास 26
ब
पंडित सों झगडा भला, भला न मूरख मेल। निजरे देख्या घी भला, खाधा भला न तेल ॥
हस्तप्रत नं. २७९२ भावार्थः- विद्वज्जनों के साथ झगडा हो जाय तो अच्छा है, परंतु मूर्ख व्यक्ति के साथ मित्रता अच्छी नहीं है। जिस प्रकार घी का आँखों से देखना अच्छा है, परन्तु तेल का खाना भी अच्छा नहीं है।
* प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में
डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनीक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
For Private and Personal Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
संपादकीय
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रामप्रकाश झा
श्रुतसागर का यह नवीन अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें अपार हर्ष की अनुभति हो रही है।
इस अंक में गुरुवाणी के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद्बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. की कृति “आध्यात्मिक पदो” की गाथा ४२ से ४७ तक प्रकाशित की जा रही हैं। इस कृति के माध्यम से आध्यात्मिक उपदेश देते हुए अहिंसा, सत्यपालन, आहारादि से संबंधित साधारण जीवों को प्रतिबोध कराने का प्रयत्न किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक ‘Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है।
अप्रकाशित कृति के अंतर्गत इस अंक में प्रथम कृति के रूप में गणिवर्य सुयशचंद्रविजयजी म.सा. के द्वारा सम्पादित “विचारमंजरी स्तवन" प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति में २४ दंडक पद के २६ द्वारों का वर्णन करते हुए उनके स्वरूप का आलेखन किया गया है. द्वितीय कृति के रूप में आर्य मेहुलप्रभसागरजी म.सा. के द्वारा प्रस्तुत “जैनप्रतिमाओं के लेख” प्रकाशित किया जा रहा है, इस कृति में प. पू. मुनिश्री ने विहार के दौरान साबला, बांसवाडा, रूई, सांवेर आदि स्थानों पर विराजित प्रतिमाजी के लेखों का अध्ययन कर उनका परिचय प्रस्तुत किया है । ये लेख विक्रम की चौदहवीं से सत्रहवीं सदी के हैं। इन लेखों के माध्यम से तत्कालीन ऐतिहासिक साक्ष्यों का परिचय प्राप्त होता है।
पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में " गुजराती भाषासाहित्यमां जैन रासाए अने कविताए लीधेलुं प्रथम स्थान” प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख में जैन रासों तथा कविताओं की विशिष्टता का वर्णन करते हुए गुजराती भाषा साहित्य में उनके महत्त्वपूर्ण स्थान का वर्णन किया गया है।
हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे आगामी अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके।
For Private and Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
आध्यात्मिक पदो
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी
(हरिगीत छंद)
सेवा सुभक्ति वेद छे अन्तर् विषे जे प्रगटतो, पापो कर्यां कोटिगमे क्षण मात्रमां ते विघटतो; ज्यां भेद दृष्टि रही नहीं दुनिया निजात्मावत् भली, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. निज आत्मवत् सहु जीव पर ज्यां प्रीतिनां झरणां वहे, सहु जाति आदि भेद भावो ज्यां न ते किंचित् रहे; एवा फकीरो योगीओ सन्यासीओ वेदो वळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जे शब्दथी वैरो समे ते वेद अन्तर् जाणवो, भाषा गमे ते जातनी त्यां भेद भाव न आणवो; बालक युवा ने वृद्धमा कारूण्य झरणां वहे झरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. उपकारकारक साधुओ वृक्षो नदी ने सरवरो, मातापितादिक वेद छे उपकारी दिल वहेतो झरो; राजा गुरूओ वेद छे उपकार वृत्ति ज्यां वडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्रभु भक्तनां दिल वेद छे दिलमांज वेदो छे घणा, प्रभु भक्त दिलथी उठता, शब्दो ज वेद सुहामणा; स्याद्वादीना शुभ ध्यानमां अन्तर् ध्वनिओ उछळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. स्याद्वाद शासन वेद छे महा संघ तेमज जाणवो, उपशम वगेरे भाव त्रण्य ज वेद मनमां आणवो; सुखकार पुण्य ज वेद छे ने निर्जरा संवर वळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
42
43
44
45
46
47
(क्रमशः)
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Awakening
Acharya Padmasagarsuri
His greatest work is Siddhahem. This is a long but simple grammar. Since the time of Panini up to this day no grammarian of his eminence has appeared. Like Panini's grammar this book also contains 8 chapters. Panini dealt with Sanskrit grammar in 7 chapters and with Vedic grammar in the 8th chapter. In the same manner, Hemachandracharya dealt with Sanskrit grammar in 7 chapters and Prakrit grammar in the 8th chapter.
His second great book is Trishashtishalaka purashacharitham. In this book, he has written the life-histories of 63 great men in 36000 slokas.
His other famous works are; Abhidhanachintamani (a dictionary in verse like Amarakosh); Veetharag Stotra; (a commentary on a philosophical work entitled Syadvada manjari); Desi Namamala; (a dictionary); Yogashastram; Kavyanusasanam (a book on the principles of literature); Chandonusaanam; Dwayasraya mahakavyam; Parishista Parva; Shabdanusasanam; Anekartha Sangrahah (a dictionary) etc.
The great acharya was born on the Purnima day (the full moon day) and attained Purnatha (fulness or perfection).
He preached and spread the doctrine of Ahimsa throughout Gujarat and he also led Maharaj Jayasimha and King Kumarpal on the path of Dharma. Just as Arjuna received the message of Lord Krishna, King Kumarpal received the message of Hemachandracharya and attained the state of “Paramarhata” (the highest place of merit)
(Continue)
For Private and Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
विचारमंजरी स्तवन
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गणि सुयशचंद्रविजयजी
‘विचारषट्त्रिंशिका’ के ‘विज्ञप्ति षटत्रिंशिका' जेवा अपर नामे ओळखाती प्रभुने विज्ञप्ति रूपे रचायेली स्तवना एटले ज दंडक प्रकरण । दंडक शब्दनो अर्थ थायजीव जेनाथी दंडाय ते दंडक । अनादि काळथी कर्मोना भारथी दबायेलो जीव विविध गतिओमां भिन्न भिन्न स्वरूप ग्रहण करतो संसारमां भम्या करे छे । क्यारेक देवगतिमां, तो क्यारेक नारकगतिमां, क्यारेक तिर्यंचगतिमां, तो क्यारेक मनुष्यगतिमां, क्यारेक वळी एकिंद्रियस्वरूपे, तो क्यारेक पंचिंद्रिय स्वरूपे एम घणां भवोमां भटके छे । कर्मनी परवशताथी ज जीवने ते-ते भवमां तेवा - तेवा शरीर, इन्द्रियादिकनी प्राप्ति थाय छे। गजसार मुनिए दंडक प्रकरणमां ते-ते भवोनी साथै प्राप्त थता शरीरादि २४ द्वारोनी विगते वर्णना करी छे ।
गजसार मुनिए सौ प्रथम पूर्वाचार्य रचित ग्रंथोमांथी दंडकनो विचार उद्धरीने प्राकृत भाषामां प्रस्तुत प्रकरणनी रचना करी । त्यारपछी बालजीवोना बोधने माटे विविध विद्वानोए संस्कृत-गुर्जरादि भाषामां वृत्ति, अवचूरि, टबादि साहित्यनुं सर्जन कर्यु। काळक्रमे १७मी सदीनी आसपास ज्यारे भक्तिपरक गेय भाषा साहित्यनी रचनाओनो प्रारंभ थयो त्यारे जीवविचार, नवतत्वादि अध्ययनोपयोगी प्रकरण ग्रंथना गुर्जर पद्यानुवाद लोकोपभोग्य बन्या । आ ज अरसामां अन्य प्रकरण ग्रंथोनी जेम दंडक प्रकरणना पण पद्यानुवाद थया । उपाध्याय चारूचंदजीए श्रीशांतिनाथ प्रभुनी दंडक विचारगर्भित स्तवना रची, तो कवि धर्मसुन्दरजीए दंडक विचारगर्भित आदिनाथ प्रभुनी स्तवना बनावी। महावीरजिनविनतिरूप दंडकगर्भित स्तवननी रचना कवि पद्मविजयजीए करी, तो आचार्य पार्श्वचंद्रसूरिए ९९ पद्योमा दंडकनुं स्वरूप वर्णव्यं । जो के आ बधी ज रचनाओने दंडक प्रकरणना आधारे करायेल मुक्तानुवाद कही ते वधु योग्य रहेशे। प्रस्तुत लेखमां प्रकाशित कवि जग ऋषि (जगर्षि) नी रचना पण उपरोक्त स्तवन श्रेणिमां उमेराती विशिष्ट रचना छे।
संपादित रचनानुं नामाभिधान कविए 'विचार षट्त्रिंशिका' ना आधारे ज ‘विचारमंजरी स्तवन’ कल्पेलुं होय तेवुं लागे छे । कविए अहीं दंडक प्रकरणनी जेम एक-एक दंडकपदमां २४ द्वारो वर्णन न करता, २४ द्वारोमा (१) प्राण (२) संज्ञि एम २ द्वारो उमेरी २६ द्वारोनुं स्वरूप आलेख्युं छे । जो के तेवुं करता कोईक-कोईक पदमां कवि बधा ज द्वारो स्पष्ट समजावी शक्या नथी, तो क्यांक वळी एक दंडक पदना
1
For Private and Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
9
August-2018
T
द्वारनुं अनुसंधान बीजा पदमां जोडी पदार्थावबोधमां असमंजस उभी करे छे । ते ज कारणथी ४-५ जग्याए अमोने पदार्थावबोध न थता त्यां अमे प्रश्नवाचक चिह्न मुक्युं छे। कृति मध्यकालीन गुर्जर भाषानी रचना छे तेथी शास्त्रीय शब्दोने तत्सम स्वरूपे काव्यमां प्रयोजवानी कृतिकारनी शैली उल्लेखनीय छे। प्रासादिकतानी दृष्टिए काव्य मध्यम कक्षानुं कहि शकाय ।
कृतिनी प्रतो अने कृतिकार
प्रस्तुत कृतिनी रचना सं. १६०३ मां कवि जग ऋषि (जगर्षि) एकरी छे । कृतिकार पू. आणंदविमलसूरिजीनी परंपराना साधु छे । काव्यमां तेमणे पोतानी आ गुरु परंपरानो संक्षेपमां उल्लेख पण कर्यो छे । रचना शैली जोता कविनी आ प्रारंभिक रचना हशे तेवुं अनुमान थाय छे। जो के आ पछी तेमणे कोई कृति रची होय तो खास तपास करवी घटे। आ कृतिना संपादन माटे अमोने (१) खंभात- अमर शाळा ज्ञानभंडारनी तेमज (२) कोबा-कैलाससागरसूरि ज्ञानभंडारनी एम २ प्रतो मळी हती, जेमांथी खंभात भंडारनी प्रत वधु प्राचीन तेमज शुद्ध वाचनावाळी होवाथी आदर्श प्रत तरीके अमे ते ज प्रत स्वीकारी छे । ज्यारे कोबानी प्रतनो उपयोग फक्त पाठांतर माटे कर्यो छे। जो के 'अ' ने बदले 'य'ना प्रयोगो, तेमज 'ई' तथा 'उ' ना स्वतंत्र प्रयोगो (दा. त. चु ने बदले चउ, तणुं ने बदले तणउ, च्यारि ने बदले चियारि) ने बाद करीए तो बीजा खास पाठांतरो पण कोबानी प्रतमां नथी। वळी खंभातनी प्रतनुं आलेखन गणि मतिविमलनी प्रेरणाथी थयुं होई तेनुं मुनिश्री द्वारा संमार्जन पण करायुं होय तेवुं विचारी शकाय ।
प्रान्ते संपादन माटे उपरोक्त बन्ने हस्तप्रतनी झेरोक्स आपवा बदल खंभात अमर शाळा ज्ञानभंडारना व्यवस्थापकोनो, प्रो. कीर्तिभाई तेमज मनुदादानो तथा कोबा श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानभंडारना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार ।
विचारमंजरी स्तवन
॥०॥ सकलगिरिशिरोमणि श्री ५ श्रीऋद्धिविमलगणिगुरुभ्यो नमः । वंदिय वीर जिणेसर देव, जासु सुरासुर सारइं सेव, पभणिसु दंडक- -क्रम चउवीस, एक एक प्रतिं बोल छवीस गणधर रचना अंग उपांग, पन्नवणा सुविचार उपांग, तेह थकी जांणी लवलेस, नाम ठाम जूजूया विसेस
For Private and Personal Use Only
11311
॥२॥
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
10
*
'तुंड पाठ प्रत नं. २मां मळे छे.
मनयोगी ते सन्नी कहिओ, असन्नीओ तेह विण लहिओ", पुरुषवेद स्त्रीवेद-भिलाष" उभय नपुंसकवेद" दुरास पर्यापति” आहार शरीर, इंदिय सास उसास वि पूर, भाषा मनोयोग छह थई, सम्यग् - मिथ्यादृष्टि 3 बि हुई त्रीजी मिश्र तेहनो भेद, दर्शन टालइ भवनो खेद,
13
14
चक्खु अचक्खु अवधि केवला, नाण'' पंच ते जगि पडवडा
श्रुतसागर
पहिलो दंडक नारय' तणो, भवनपति - दस दंडक सुणो,
2-11
थावर पंच-2-16 विगलिंदिय तिन्नि7-19, पंचिंदिय तिरि" नर" ए दुन्नि ॥३॥ विं ( वं) तर "जोइस " वेमाणिया, इणि परिं चऊवीसे जाणिया, चऊवीसे दंडकना नाम, बोल छवीस सुणो हिविं ठाम
ओरालिय वेकरिय' शरीर', आहारक मुनि करइ ज धीर, तेजस कारमणा' प्रधान, अवगाहना' तेहनो मान पहिलुं वज्जरिसहनाराच, बीजो कहीइं रिसहनाराच, त्रीजो नाम वली नाराच, चऊथो अर्द्धनाराच ज साच पंचम नाम निखर कीलिका, छट्ठो छेवट्ठो तिम तथा, ए संघयण' कहिया संठाण', समचउरंस निगोह निदाण सादि वामनो कुबज हुंड, छट्ठो विव(वि)ह प्रकारइ भुंड*, आहारइ पुद्गल आहार, भय मेहुण परिग्रह उदार कोह माण माया वली लोभ, नवमी लोक अनेरी ओघ', हेउवाद' दीहकालिकी, त्रीजी कही दृष्टिवादिकी कोहादि जे च्यारि कसाय', सर्व जीवनइ करइ अपाय', लेश्या' कृष्ण नील कापोत, तेजो पद्म शुक्ल उद्योत श्रोत चक्षु जिह्वा नासिका, 'स्पर्श पंच ए जन मोषका' समुदघात' दोय जीव अजीव, भेद सात भोगवइ सजीव प्रथम वेदि (द) नी बीय कसाय, त्रीजो मारणांतिकि (क) कहवाई, वैक्रिय आहारक तेजसं, केवली करइ केवली जिसं
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
अगस्त २०१८
11811
11411
॥६॥
॥७॥
11211
11811
118011
॥११॥
॥१२॥
॥१३॥
118811
॥१५॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
11
August-2018
॥१६॥
॥१७॥
॥१८॥
॥१९॥
॥२०॥
SHRUTSAGAR मति श्रुत अवधि भेद विभंग, तिन्नि अन्नाण' योग तिम रंग, ऊदारिक ऊदारिकमिश्र, वेउवी[य] आहारकमिश्र कम्मण कह्या कायना सात, च्यारि च्यारि मनि वचनइ वात, योग'' पनर बारह अउपिओग', आहारइं छह दिसिनो भोग ऊपजवो कहीयई उतपात, आऊखं भोगवई उदात, समोहिया जाइं समकाल, असमोहिया" श्रेणिबध-जाल2 चवन चवइं गमनिं गति करई, आगति आवी थानक धरइं, इंद्रिय बल आऊखुं सास, योग-पूर्व करो प्रकास
॥ तो राय मनिं विमासियो, सउ करिसि ए कांइ मारू-ए ढाल ॥ पूछइ जंबू सिर नामिय, कहई सोह[म] गणि सामिय, पिहलउं नारक सात, दंडक द्वारनी वात रत्नप्रभा सक्कराप्रभ, वालुक धूम पंका शुभ, तमा तमप्रभा सात, असंघयणी दुख-घात वैक्रिय तेजस कम्मण, तिन्नि शरीर विडंबन, सात धनुष तिन्नि हाथ, अंगुल छनु ए साथ भवधारणीय शरीर, रत्नप्रभा कहइ वीर, एह थकी वली बिमणं, उत्तर-वैक्रिय-करणं अंगुल असंख भाग, ऊपजवा तनु माग, भवधारणीय व्याख्यात, उत्तर भाग संख्यात न भजइ एकई संघयण, हुंड कहिउ छइ संठाण, क्रोध मान माया लोभ, च्यारि कषायनो खोभ'२ सन्नाहार भय मैथुन, परिग्रह सन्या छइ नवि धन, कृष्ण नील कापोत, लेश्या पाप स्वरूप वेदन कषाय मरण, अ(अं?)तिक प्राण निवारण, वैक्रिय समुदघात, इंद्रिय पंच विख्यात
॥२१॥
॥२२॥
॥२३॥
॥२४॥
॥२५॥
॥२६॥
॥२७॥
For Private and Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
12
श्रुतसागर
मनयोगइं दीर्घ जाणइं, सन्नी वीर वखाणइं, मन पाखइं ते असन्नी, नारक मांहिं हुई दुन्नी पंच पर्यापति दीठी, सम्यग मिश्र मिथ्यादृष्टी, दंसण चक्खु अक्खु, अवधि कहइं जिण दक्खु १३
नाणा तिन्नि अन्नाणा, दरसण तिन्नि पहाणा नव संख्या उपयोग, एकादश तिहां योग वैक्रिय वैक्रियमीस, कारमणा काय ईस, मन वचनइं च्यार च्यार, सर्व मिली थ्या" इग्यार दिसि सघली लई आहार, लेतां पामहं न पार, मणुअ तिरिय तिहां आवइं, आऊखुं घणुं पावई रतनप्रभा दस सहस, वरस कहिउं एह रहस७, उक्कोसु एक सागर, पुरूं दुःखनुं आगर तिन्नि उक्कोसा एक जहन, बीजी बहु दुःख दहन, तिन्नि थोडुं सात गु(गि)रूअं, त्रीजी अति दुःख विरूअं
१४
सागर दस छइं ए मांन, चउथई नरकइं प्रधांन, सात थकी नहीं हीणउ, सतरइं पंचमी जाण [ उ ]
,
जहन कहि दस सागर, छट्ठी बावीस दुह-भर, मघा इसुं छइं नाम, पापी जीवनो ठाम माधवती थई सात, सागर तेत्रीस वात, चवी मणुय तिरि थाई, गति पणि तेह मांहि जाइं आगति एह ज दंडक, मणुअ तिरिय थाइं नारक, मन वचनइं दुखभोग, त्रीजो कायनो योग
॥ ढाल ॥
भवनपति दस दंडक ए, बहु पुण्य तणा छई थानक ए, असुरा नागकुमार ए, सुवन्ना विद्युत सार ए
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अगस्त २०१८
॥२८॥
॥२९॥
113011
॥३१॥
॥३२॥
॥३३॥
113811
॥३५॥
॥३६॥
॥३७॥
॥३८॥ (?)
॥३९॥
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
13
August-2018
॥४०॥
॥४१॥
॥४२॥
॥४३॥
॥४४॥
॥४५॥
SHRUTSAGAR
अग्नि द्वीपा उदधी दिसी ए, दीसइं पवन थणि ऋद्धिं तिसी ए, नारक जिम शरीर ए, अवगाहना छइ बहु फेर ए हाथ सात उक्कोस ए, भवधारणी अंगुल अंश रे, जहन्न असंख संख्यात ए, उत्तर-वैक्रिय हिविं वात ए उक्कोसुंजोयण लाख ए, संठाण चउरंस सम भाख ए, कोह माण माय लोभ ए, सदा च्यारि कषायनो वेध ए संन्या सरिखा नारकी ए, एक तेजोलेश्या तेहथी ए, अधिकी इंद्रीय पंच ए, तिम समुदधातु संच ए वेदना बीजो कषाय ए, मारणांती वैक्रिय काय ए. तेजस सन्नी असन्नीया ए, एक दीर्घकालिकी वन्नीया ए पर्यापति हविं पंच ए, मन भाषा एक ज संच ए, समकित मिच्छादिट्ठीआ ए, मीस पुरुषवेद वली इत्थीआ° ए चक्खु अचक्खु दंसणी ए, बीजो अवधि कहइं इम केवली ए, मति श्रुत अवधि तीय नाण ए, विपरीति ते हवइं अनाण ए मण वयण काम तिय जोग ए, नारक तिम लहइं उवओग ए, मणवंछिय आहार ए, दिसि सवि पुद्गल-संभार ए मणुय तिरिय उतपात ए, आऊखं सुणह व्याख्यात ए, सहस दस वरस जहन्न ए, एक सागर अधिक प्रधान ए एह सामान्य वखाणिओ ए, हिविं कहुं जो जिम जाणिओ ए, एक सागर चमरिंदु ए, झाझेरुं एक बलिंदु ए तिन्नि पल्योपम साढ२ ए, देवी दाहिणि दिसिं गाढ ए, उत्तर च्यारि साढां सही ए, पल्योपम असुरूदेवी लही ए दाहिणि उत्तर जूजूआ ए, पल्योपम दोढ वि किंचूना ए, नव निकायना देव ए, देवीनो सुणह निखेव ए आध दाहिणि उत्तर देसुणुं ए, पल्योपम भोगवई ते ऊणुं ए, मणुअ तिरियगति ऊपजइं [ए], निज कीधई करमई नीपजइं ए
॥४६॥
॥४७॥
॥४८॥
॥४९॥
॥५०॥
॥५१॥
॥५२॥
For Private and Personal Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
14
श्रुतसागर
चवन जिम उतपात ए, गति आगति कहो हिवई वात ए, पुढवि पाणी वणकाय ए, मणुय तिरियगतिइ य जाइ (य) ए प्राण दस समोहिया ए, असमोहिया भुवनपतिया ए, (?) थावर पुढवीकाय ए, तिंहा तिन्नि सरीर अपाय ए
उरालिय तेजस कम (म्म) णा ए, अंगुल भाग असंख अवगाहना ए, जहन्न उक्कोस ए माण ए, अधिको नवि देह - प्रमाण ए
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छेवट्ठो एक असार ए, मसूरनो हवई आकार ए,
सन्ना आहार भय मेहुणी ए, परिग्रह हुइ चउथी जिणि भणी ए कृष्ण नील कापोत ए, तेजो लेस्या नवि उद्योत ए, समुदघात तिनि जातीया ए, वेयणा कसाय मारणांतिया ए
इंद्रिय एक शरीर ए, असन्नीय वेद कलीब ए२२, पर्यापति आहार ए, तनु इंद्रि ऊसास प्रकार ए मिच्छादिट्ठी ते सदा ए, अचक्खु दंसण संपदा ए, मति श्रुति दुन्नि अन्नाण ए, काय जोग हुई एकाहिन्नाण ए एह तिन्नि उवओग ए, उरालि मीस तेऊ जोग ए, छह दिसि ल्यइं आहार ए, उपजवो नरक परिहार ए वरस सहस्र बावीस ए, उक्कोसुं आयु जगीस ए, अंतरमुहूर्त काल ए, थोडुं तो अंति सुकमाल ए समोहिया असमोहिया ए, जाई मणुअ तिरियगति मोहिया ए, दस दंडक मांहिं गति करइ ए, देव नारक मांहिं न अवतरई ए थावर पंच विगलिंदिया ए, तीय मणुअ तिरि पंचिंदियाए, ए दस दंडक गति कही ए, पुढवी पाणीय वणसई तिम सही ए इंद्रिय एक बल काय ए, फासिंदी सासोसास आय ए, प्राण-संख्या पुढवी काईया ए, तिम च्यारि सरिखा एगिंदिया ए
विण नारक त्रेवीस ए, दंडक आवइ निसि दीस ए, उरलि मिश्र तिनि जोग ए, कारमण थोडो भोग ए
For Private and Personal Use Only
अगस्त २०१८
॥५३॥
114811
114411
॥५६॥
114011
114211
114811
॥६०॥
॥६१॥
॥६२॥
॥६३॥
॥६४॥
॥६५॥
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
August-2018
॥६६॥
॥६९॥
॥६९॥
॥७०॥
SHRUTSAGAR पहिलो मिश्र वखाणिउ(ओ) ए, पछइ ऊदारिक जाणिओ ए, पाणीअ थिवुग आकार ए, संठाण छई भिन्न प्रकार ए सात सहस्र वर्षायु ए, उक्कोसो ते कहीवायु ए, तेउ काय इम उदिसिउ५ ए, संठाण सूची अग्रई जिसिउ ए
॥६७॥ कृष्ण नील कापोत ए, लेश्या तिनि पाप उद्योत ए, मणुय तिरिय उतपात ए, बहु जीव तणो संघात ए तिन्नि अहोरत(त्त) आऊखुं ए, थोडं ते पुढवी सारिखं ए, दंडक नव मांहिं गति करइ ए, देव नारक मनुष्य न अवतरइं ए आगति दस तिहां अटकली ए, देव नारक आगति सवि टली ए, चवन तणी परि तिम कही ए, गति आगति हुंती ते लही ए वाउकाय सह फेर ए, एक वैक्रिय तनु अधिकेर ए, ध्वजाकार संठाण ए, चउ समुदघातनो ठाण ए
॥७९॥ वैक्रिय अधिको ते थकी ए, पंच योग लेवा गति तिम कही ए, वर्ष सहस्र तिन आऊ ए, आगतिनो सरिसो भाव ए
॥७२॥ पंचम वणसई काय ए, पुढवी जिम ते कहवाय ए, नाणा-विधि संठाण ए, आउ वरस सहस दस माण ए, जोयण सहस उक्कोस ए, देह ऊंचो एह विसेस ए, थावर-द्वार पूरा थयां ए, विगलिंदिय बोलुं जिम लह्यां ए
॥ सफल संसार बहु ए गणुं-ए ढाल ॥ सुणह बेंदिया तिन्नि शरीरगा, बार जोयण मोटा देह उको(क्को)सगा९, छेवठ्ठउ संघयण संठाण हुंडया, काय रसणिंदिया दुन्नि तिहां इंदिया ॥७५।। तिनि(न्नि) समुघाय हुइ सदा असन्नीया, सीत आतप भई सुख ग्रहण वन्नीया, हेव(उ)उवएसकी सन्ना जिनवर कहइं, रसण-वसि कायना घणा दुख ते सहइं ॥७६॥ वेद नपुंसक पंच पज्जत्तिया, थावर पंचथी वचनि अधिका थया, दिट्ठि समा मिच्छा मीस त्रीजी भली, दुन्नि अन्नाण मति सू(श्रु)ति पुहती रली२३ ॥७७॥
॥७३॥
॥७४॥
For Private and Personal Use Only
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
16
श्रुतसागर
अगस्त-२०१८ नाण अन्नाण आगम सयजइ३४ हुइ, वचन काया मिली च्यारि जोगा भइ, उरल५ उरालिय मीस कारमणा, सच्चअसच्च तह अचक्खु एग दंसणा ॥७८।। पंच उवओग दुदु नाम अन्नाणया, लेसा किन्हा नीला काऊ सह ठाणया, बार वरसाउखुं अपर विचारणा, पुढवि दारह थकी करो मनि धारणा ॥७९॥ जिम बेंदिया तेइंदिया नासिका, सहित मुख तईय फासिंदिया, तिन्नि गाऊ ऊंचा च्यारि चऊरिंदिया, चक्खु दरसण गाउ पगत बुधारया* ॥८०॥ इगुण पन्नास दिण आऊ उक्कोसया, मास छह चउरिंदीया जहन्न अंतमुहुत्तया, आगति दस गति दस विगति कही, थावर पंच मणु तिरिय विगला लही ॥८१॥ चवन उतपात आहार पुढवी परइं, डं(दं)डक पूर्वइं कह्या तिम ते करइं, प्राण छह बेंद्री(दि)या सात तेइंदिया, आठ संख्या लहइं प्राण चरिंदिया ॥८२॥
॥ ढाल॥
॥८३॥
भणिसु समुच्छिम तिरिय नाम पंचिदिय उदार(दार) उरालिय कम्मणा तेजसा तिन्नि ऊ(उ)दार, जहन्न देह अंगुल असंख्य अवगाहन भाग, जलचर जोयण सहस एक उक्कोस विभाग थलचर गाऊ दुन्नि देह नव जोअण सीम, ख(खे)चर पंचिदिया देह धनुष नव अधिको नीम, उरि(र)परि भूजपरि सापजाति क्रमि जोयण धनुष, दुन्नियादि नव अंत कह्यो देहमान विशेष छेवट्ठो संघयण हुंड संठाण ज एक, सन्नी चउ कोहादि चउर तिनि लेश्या रेक, कृष्ण नील कापोत अशुभ इंद्रिय हुई पंच, समुदघात वेदना आदि तिनि मरण-प्रपंच सदा असन्नी वेद एक जे अशुभ नपुंस, पर्यापति मन विना पंच आहार विशेष,
॥८४||
॥८५॥
* चक्खु दरसण योजन एग तनु धारया आवो पाठ होई शके खरो
For Private and Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
August-2018
॥८६॥
॥८७॥
॥८८॥
SHRUTSAGAR समकित मिथ्यादृष्टि दुन्नि दरसण दुइ पहिला, नाण अनाण दुन्नि दुन्नि जाण्या ते सोहिला काय वचनइं हुई जोग दुन्नि उपयोग छ धार, नाण अनाणा दुनि दंसण छ दिसि आहार, मणुय तिरिय उतपात चवन देव नारक चिहुं गति, पधारइं निज कर्म वसई जिहां बंधी छइ मति अंतरमुहूर्त जहन्न आयु उक्कोसुं जलचर, पूरव एक कोडि वरस चउरासी थलचर, सहस बहुत्तरि ख(खे)चर आउ उरपरि तु त्रिपन, भुजपरि मुच्छिम वरस आयु बायालीस पन(?)
॥ ढाल ॥ चउपई॥ आगति दुई हुई गति बावीस, कर्मजोगि आवइ निस दीस, चवन च्यारि गति जिनवरि कही, प्राण थया नव मनविण सही पंच थावर विगलिंदी तिनि(न्नि), पंचिंदी(दि)य तिरि नर ए दुन्नि, दस आवई नारकमांहि जाइ, जोइस कल्य चिंता सवि थाइं योग च्यारि ऊदारिक एक, बीजो मिश्र ऊदारिक रेक, कारमण त्रीजो जाणिवओ, चउथो सच्चासच्च जा(आ)णिवउ(ओ) तिरिय पंचिंदिय गर्भज-दार, वैक्रिय अधिको एक उदार, अवगाहना कहुं जूजूई, दस सय जोयण जलचर थई ख(खे)चर धनुष नव थलचर देह, गाऊ छह उक्कोसु छेह, उरपरि सहस एक भुजपरा, गाऊ नव तनु ते दुह नरा छह संघयण छए संठाण,चउ कसाय सन्ना चउ ठाण, लेशा सघली इंद्रिय पंच, समुदघात दुन्निय नवि संच केवल आहारक नवि जिहां, पंच पूर्विला लाभइ तिहां, सन्नि असन्नी(नि) तिन्नि ज वेद, पर्यापति पूरी नवि भेद
॥८९॥
॥९०॥
॥९१॥
॥९
॥
॥९२॥
॥९३॥
॥९४॥
॥९५॥
For Private and Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥९६॥
॥९७||
॥९८॥
॥९९॥
श्रुतसागर
18
अगस्त-२०१८ दृष्टि तिन्नि दरसण वलि नाण, तिनि तिनि क्रमि धरइं पहाण, तिम अनाण तिय जोगपयोग, ति नव संख्या सरिखो भोग सर्व दिसीनो ल्यइ आहार, चिहुं गति ऊपजवा व्यवहार, जलचर जीवइं पूर्वकोडि, तिन्नि पल्योपम थलचर जोडि पलिय असंखभाग खेचरा, कोडिपूर्व उरपरि भुजपरा, चवन च्यारि गति तिम उतपात, गति आगति चउवीस विख्यात प्राण धरई दस तेरह योग, पनर मांहिला दुनि वियोग, आहारक टाली ते पंच, तु मनि वचनिं हुई संच मनुष्य मांहिं हुइ पंच शरीर, ऊंचा गाऊ तिन्नि ज धीर, तिरि जिम संघयण संठाण, इंद्रिय पंच कामना बाण
॥१००॥ लेश्या सन्ना सकल कसाय, पर्यापति छह प्राण अपाय, मणुअ तिरिय गर्भज सारिसा, बीजा भेद जूजूआ दिस्या
॥१०१॥ समुदघात वेदना कषाय, मरणांतिकी वैक्रिय काय, तेजस आहारक केवली, मनुष्य मांहिं पहुंचइ रली
॥१०२॥ सन्नि असन्नि सघला वेद, दिट्ठी ति दरसणनो भेद, चक्खु अचक्खु अवधि केवला, दंसण नाण पंच मोकला
॥१०३॥ योग पनर बारह उवयोग, आहारइं छह दिसि नवि योग, गति सघली आगति बावीस, सिद्धि तणी गति अधिक जगीस ॥१०४॥ तिन पल्योपम जे युगलीया, आऊखइ उक्कोसा मलिया, पूर्व कोडि एक कर्मभूमि, जहन ज अंतर्मुहूर्त सीमि
॥१०५॥ सत्तम पुढवी नारकी, तेउ वाउ दु जीह्वा (?) पातकी, असंख आउखई मणुअ तिरी, मणुअ मांहिं नवि आवइ मरी ॥१०६॥
॥ ढाल॥ व्यंतर सोल निकाय ए, बत्रीस ते इंद्र कहवाय ए, सहस दस वरस जहन्न ट्ठिती ए, एक पलिय उको(क्को)सो सुरपती ए ॥१०७।।
For Private and Personal Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
SHRUTSAGAR
19
देवी पल्योपम आघ ए, थोडुं ते सुर जिम लाध ए, बीजो सहूअ विचार ए, भवनपती (ति) जेम प्रकार ए चंद्र पल्योपम एक ए, लाख वरस अधिक इम रेक ए, सूर सहस एक जाणिवउ ए, देवीनुं आध वखाणवउ ए पूरुं पल्योपम ग्रह तणुं ए, नखि (ख) त्रनं आधुं तिम भणिओ (पुं) ए. तारा चउथो भाग ए, अधिलो" ते देवि विभाग ए
चंद्र सूर ग्रह रिषि तणुं ए, पलिय चउथो भाग नवि अति घणुं ए, पलिअ (य)नो आठमो अंस ए, तारा- देवि ए जहन्न विसेस ए लेशा तेजो एक ए, एकादस जोग विवेक ए, कहिया रहिया जे सेष ए, भवनाधिपति मिली एक ए
॥ ढाल
कहउं विमाणिय दंडक, जिहां छई बहु सुख साधक, तिन्नि सरीरनो योग, वैक्रिय उत्तम भोग
सात हाथ देहमान, सोहम बीजुं ईसान, त्रीजइ चउथइ छह हाथ, पंचमि पंच छट्ठओ साथ सातमि आठमि च्यार, शुक्र कहिओ सहसार, आगलि चिहुं हाथ तिन्नि, नव ग्रैवेयक ए दुन्नि
पंच अनुत्तर देवा, एक हाथ देह लेवा, सभावि” एह ज तनु भाख, उत्तर पूरुं ए लाख नव ग्रैवेयक अणुत्तर, नवि बोल्युं तिहां उत्तर, आउखुं दुन्नि सागर, पहिला कल्पना जे सुर बीजइ छइ अतिरेक, जहन पलिय एक छेद (क), सनतकुमार माहि(हिं)[द्र]इं, सात सागर आऊ हइं
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पंचम कल्प ब्रह्म नाम, दस सागर आउ ठाम, लांतिक चउदस सागर, शुक्र सतत्त) र सुखआगर
* ११३ नं की गाथाक्रम आववानो रही गयो छे.
For Private and Personal Use Only
August-2018
॥१०८॥
॥१०९॥
॥११०॥
॥१११॥
॥११२।।*
॥११४॥
॥११५॥
॥११६॥
॥११७॥
॥११८॥
॥११९॥
॥१२०॥
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
श्रुतसागर
20
आघो(घु) एकेकु वाधई, उपरि त्रेवीस लाभ (ध) इं, हिठलि जे छइ उक्कोस, ऊपरि जहन्न न दोस विजय उक्को तेत्रीस, जहन कहिओ एकत्रीस, सव्वट्ठ सिद्धइं तेत्रीस, जहन नहीं लवलेस
॥ ढाल ॥
सोहमि ईसानि देवलोकि देवी उतपात, परिग्रहीतनो पलिय सात नव आऊख वात, अपरिग्रही पंचास पलिय पंचावन गुरूअं, जहन पलिय एक अधिक वली ते हियडइ धरूअं
लेश्या तेजो पढम दुगे ऊपरि त्रिहुं पदम, लांतक मडी(हिं?) सुकल एक जिहां रूडा सदम४२, सन्ना दस संठाण एक समचऊरंस सर्व,
चउ कसाय बहु लोभवंत छइ ऋद्धिनो गर्व
इंद्री नाण अनाण योग उपयोग ज दिठी, गेविज्जा लगइं सरिस कहिया जाइ मिच्छादिट्ठी,
समुदघात हुइ पंच संच बारह देवलोक, पंच पर्यापति कही सही भाषा मन एक दुन्नि वेद स्त्री पुरुष उदय सोहम इसानई, उपरि बोलिओ पुरुषवेद इम गणधर मानई, सोहम इसान देवलोक दंडक गति पंच, पुढवी पाणी तिरिय मणुय वनसपती (ति) संच मणुय तिरियगति दुन्नि लहइं आठम सुर देवा, उपरिला एक मणुय गती(ति) नवमाथी लेवा, तिरिय जाइं सहसार लगइं आगति दुन्नि जाणी, आठमआ(मां)थी एक मनुष्य इम वीरि वखाणी
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अगस्त २०१८
॥१२१॥
॥१२२॥
॥१२३॥
॥१२४॥
॥१२५॥
॥१२६॥
॥१२७॥
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
August-2018
21 ॥ राग आसाउरी ॥
॥१३०॥
श्री सुधर्म कहइं जंबू सुणुं, ए जीव भम्युं इम अति घj, अति घणुं तेह तणो पार न पा[म]इ ए
॥१२८॥ इम चउवीस दंडक करी, अनंत अनंती देह धरी, देह धरी थिर थई नही जिन कही ए
॥१२९॥ सागर जाइ अनंत ए, निगोद मांहिं वसंत ए, जंत एणी परि रलई संसार मांही(हिं) ए जिन आन्या अंगीकरई, समकित सूधुं आदरइं, आदरइं तेह तरई संसारथी ए
॥१३१॥ चंद्रगच्छि उद्योतकरू, वइरी शाखा मनोहरू, मनोहरू श्री आणंदविमलसूरीश्वरू ए
॥१३२॥ श्री विजयदानसूरिंद ए, दीठई हुई आणंद ए, आणंद ए साथई चरणकमल नमुंए
॥१३३॥ श्रीपति रिषी पंडित मुनि, हुं(दु)समकालि ध(धि)नु धिनु, [धिनु] धिनु रत्नत्रयस्युं सोभता ए
॥१३४॥ पंडित जग रिषी ऊचरई, संवत सोल त्री(ती)डोत्तरइं (१६०३), त्री(ती)डोत्तरइं विचारमंजरी ए रची ए
॥१३५॥ एह भणीनइ जे सद्दहइ, रत्नत्रय जो ते लहइं, ते लहइं अविचल पदवी सिद्धनी ए
॥१३६॥ ॥ इति श्रीविचार मंजरी स्तवनं संपूर्णः ॥ छ॥ गणि मतिविमल लखावीतं ॥ मंगलमवस्यं ॥ छ ॥ भद्रम् ॥ छ ॥
शब्दकोश- १. वैक्रिय, २. कार्मण, ३. ?, ४. हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा, ५. दुःख, ६. लूटनारा, ७. इच्छा, ८.?, ९. औदारिक, १०. समुर्छिम, ११. असमुर्छिम, १२. क्षोभ, १३. दक्ष, १४. प्रधान, १५. थया, १६. लेवं, १७. रहस्य, १८. स्तनित, १९. तेवी, २०. स्त्री, २१. सार्ध-अर्ध सहित, २२. नपुंसक, २३. त्रण, २४. परपोटो, २५. उपदेश्यु, २६. विचारी, २७.?, २८. बे इंद्रियवाळा, २९. उत्कृष्ट, ३०. समुद्धात, ३१. जिह्वाने वश थई, ३२. श्रुतज्ञान, ३३. आनंद, ३४. सहजपणे, ३५. औदारिक, ३६. सत्यासत्य भाषायोग, ३७. द्वार, ३८. ?, ३९. जेवा (?), ४०. नीचेनो, ४१. स्वाभाविक, ४२. आवास.
For Private and Personal Use Only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिनप्रतिमाओं के लेख
संपादक- आर्य मेहुलप्रभसागर वर्तमान काल में भवसमुद्र से पार उतरने हेतु शास्त्रकार भगवंतों ने दो मुख्य मार्ग बताए हैं- १. जिन प्रतिमा तथा २. जिनवाणी। प्रथम मार्ग में स्थापित जिनप्रतिमा, जिनमंदिर एवं तीर्थों के प्रति चतुर्विध संघ की श्रद्धा पुरातन काल से ही प्रचलित है। जिसके संदर्भ आगमों, टीकाओं सहित अनेक स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में उपलब्ध हैं। जिनप्रतिमा, जिनमंदिर निर्माण के समय प्रतिमा एवं मंदिर के उचित स्थान पर निर्माणकर्ता व प्रतिष्ठाकारक के नामादि उत्कीर्ण किये जाते रहे हैं। ये उल्लेख समयांतर में ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में विश्व के लिए विरासत बनते हैं।
इन उल्लेखों में तत्कालीन नगर, जैनाचार्य, गृहस्थनाम आदि अनेक प्रकार की विशिष्ट जानकारियों के साथ-साथ धर्म एवं संस्कृति की व्यापकता का सटीक अनुमान होता है।
विगत माह में केसरियाजी तीर्थ से इंदौर के लिए चातुर्मास हेतु विहार हुआ। इस दौरान साबला, बांसवाडा, रूई, सांवेर आदि स्थानों पर विराजित प्रतिमाजी के लेखपठन का अभ्यास किया। उनमें से कुछ प्रतिमालेख अविकल रूप में यहाँ प्रस्तुत हैं। पठन में यदि स्खलना हुई हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ।
ये लेख विक्रम की चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक के हैं। ये लेख कहीं प्रकाशित हों यह ज्ञात नहीं । सुज्ञ अवगत करावें।
श्रीसंघ के प्रतिनिधियों से निवेदन है कि प्राचीन विरासत के महत्व को समझकर प्राचीनता को कायम रखते हुए प्रतिमालेख आदि विविध सामग्री का सुव्यवस्थित प्रबंध करें।
निम्न प्रतिमालेखों में क्रमांक १ से ४ तक बांसवाडा के प्राचीन बावन देहरी मंदिर स्थित जिनप्रतिमाओं के हैं, जो मंदिर के रंगमंडप में कांच की दर्शनीय आलमारी में बिराजित हैं। क्रमांक ५ का प्रतिमालेख उज्जैन के रूई गाँव के जिनमन्दिर में स्थापित जिनप्रतिमा का है। क्रमांक ६ से १० तक के प्रतिमालेख बांसवाडा जिले स्थित साबला गाँव के जिनमंदिर में विराजित जिनप्रतिमाओं के हैं तथा क्रमांक ११से १४ तक के लेख उज्जैन जिले के सांवेर गाँव के जिनमन्दिर में विराजित जिनप्रतिमाओं के हैं।
For Private and Personal Use Only
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
SHRUTSAGAR
23
August-2018
प्रतिमालेख क्रमांक १ में हुंबड ज्ञाति का उल्लेख है। जो वर्त्तमान में मेवाड़, डुंगरपुर आदि स्थानों पर बहुतायत संख्या में रहते हैं एवं अधिक संख्या में दिगम्बर अनुयायी बन गये हैं।
प्रतिमालेख क्रमांक ३में जिनप्रतिमा के रजतमय चक्षु हैं।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रतिमालेख क्रमांक ५ वाली संभवतः साढे छः इंच की विशिष्ट जिनप्रतिमा मनोहारी एवं चिताकर्षक है । ॐ ह्रीँ के मध्य स्थित श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा के दोनों तरफ धरणेन्द्र देव एवं पद्मावती देवी की अंकुशधारी खड़ी मूर्ति है। निम्न भाग में नवग्रह की स्थापना की गई है। मूर्ति के शीर्ष भाग पर कलश बना हुआ है। स्थानीय निवासी भक्तिवश इस प्रतिमा को चमत्कारी मूर्ति के नाम से आहुत करते हैं । इस प्रतिमालेख के प्रारंभ में अलाई वर्ष का भी उल्लेख नज़र आता है किन्तु अंक अस्पष्ट है, अनुमानतः ४२ हो ऐसा दीखता है।
क्रमांक ११की मूर्ति का प्रतिमालेख चौदहवीं शताब्दी के अंतिम दशक का है। इस प्रतिमालेख में पडिमात्रा का उपयोग नहीं है । प्रतिमा के दोनों ओर चामरधारी देव-देवी एवं शिर पर फणायुक्त मूर्ति नयनरम्य है । श्रीवत्स के स्थान से संभवतः चांदी के निकल जाने से छिद्र हो गया लगता है ।
अस्पष्ट, संदिग्ध एवं पूर्तिपाठों को कोष्ठक में रखे गए हैं।
१. पंचधातुमय श्री शांतिजिन पंचतीर्थी
संवत् १६३५ वर्षे वैशाख वदि ११ बुधे श्री जिरपुर वास्तव्य श्री हुंबड ज्ञातीय पु० राजा भा० राजलदे सु० पु० मघा पु० देवा मेपा भा० सोभागदे सुता अमराज नागराज देवा भा० देवलदे समस्त कुटुंबयुतेन श्री शांतिनाथ बिंबं कारापितं श्रेयसे श्रयो श्री वृद्धतपापक्षे भट्टारिक श्री तेजरत्नसूरिभिः स्तत्पट्टे भट्टारिक श्री५ देवसुंदरसूरिभिः प्रतीष्ठितं शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥
२. पंचधातुमय श्री शीतलनाथजिन मूर्ति ५ इंच
सं० १७०५ व० ज्ये० सु० १० शुक्रे श्रा० विमलादे श्री शीतलनाथ बिंबं कारितं वृद्धतपापक्षे भ० श्री भुवनकीर्तिसूरिभिः ॥
३. पंचधातुमय श्री वासुपूज्य जिन पंचतीर्थी
संवत् १५०६ फागुण सुदि १३ छाजहड गोत्रे सं० भामा पुत्र सं० मोकलेन भा० माणिकदे पु० मेहा सहितेन चाहिणिदे नमित्तं श्री वासुपूज्य बिं० प्रतिष्ठित पल्लिगच्छे
For Private and Personal Use Only
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
24
श्रुतसागर
अगस्त-२०१८ श्री यशोदेवसूरिभिः ४. पंचधातुमय श्री वासुपूज्य जिन पंचतीर्थी ___सं० १५०६ वर्षे मा० शु० १३ कर्पटवाणिज्ये नीमा ज्ञातीय दे० रामा भा० वाकुं सुत दोपचाकेन भा० जाकु भ्रातृ रत्ना पुत्र देवदासादि कुटुंबयुतेन निजश्रेयसे श्री वासुपूज्य बिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्री जयचंद्रसूरिभिः ॥ ५. विशिष्ट जिनप्रतिमा ___ (अलाई ४२र्क)अकबरजलालदी(न) राज्ये ॥ सिद्धि सं. १६५४ वर्षे वैशाख शु ५ सोमे ॥ ऊकेशवंशे वृद्धशाखायां रायभणसाली गोने मुहता चाचा तत्पुत्र मुहता लोला भार्या ललतादे तत्पुत्र मुहता सहसाकेन भार्या लीलादे लखमादे भगिनी बाई जसमां प्रमुख परिवारयुतेन श्री पार्श्वनाथ बिंब कारितं प्र० श्री बृहत्खरतरगछे श्रीजिनवर्धनसूरि संताने श्री जिनसिंहसूरि पट्टे श्री जिनचंद्रसूरिभिः श्रीरस्तु श्री अहमदावाद नगरे निष्पन्न ॥
साबला जिला बांसवाडा ५२देहरी मंदिर स्थित ६.धर्मनाथ जिन पंचतीर्थी
॥ संवत् १५१५ मार्ग शुदि १० गुरौ श्री कोरंटगच्छे मांडुत्र गोत्रे सा० डामर भा० कपूरदे पु० जूठाकेन श्री धर्मनाथ बिंबं का० प्र० श्रीस्तंभदेवसूरिभिः ७. श्री वासुपूज्यस्वामी चोवीसी ____सं० १५३५ वर्षे मागसिर शुदि ५ गुरौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे० वीका भा० सलखू सुत माहिआकेन भा० माणकदे भ्रातृ काला भा० कामलदे सु० श्रीपाल कुष्ट(?) चतुर्विंशतिपट्टिका श्री वासुपूज्य बिंब कारितं प्रति० श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीगुणतिलकसूरि उपदेशेन कोठी वास्तव्य ८. श्री सुमतिनाथ जिन प्रतिमा ३ इंची
सं० १६९७ व० पौष शु० ५ गुरौ मा० कल्याण भा० रतननाई नीगया(?) श्री सुमतिना० बिं० का० प्र० तपा श्रीविजयदेव ९. श्री सुमतिनाथ जिन चोवीसी
॥ संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ट शुदि ६ बधे (बुधे) प्राग्वाट् ज्ञातीय सं० नरबंद भा० मदुअरि पु० सं० थावर सं० महिराज भा० जसमाई पु० रामदे(व) सहितेन स्वमातृपितृ
For Private and Personal Use Only
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
25
SHRUTSAGAR
August-2018 कुटंबश्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपा० श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः ॥ छः ॥ पतन वास्तव्य १० श्री नमिनाथ जिन पंचतीर्थी
सं० १४७८ वर्षे ज्ये० वदि ९ शु० उ० सा० नीसल भा० षेही सुत का माला केन पितृमातृ श्रेयसे श्री नमिनाथ बिंब कारापिता(तं) श्री नागेंद्रगच्छे प्र० श्री पद्माणंदसूरिभिः। शुभं भवतु। सांवेर जिला इन्दौर ११. श्री पार्श्वजिन एकतीर्थी
॥ संवत् १३९८ आषाढ सुदि २ बुधे गांधी गोत्रे सा० गोसलान्वये सा० माल्हा साजणाभ्यां पितुः सा० चावदेव श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंब का० प्र० मलधारि श्री राजशेखरसूरिभिः १२. श्री नमिनाथ जिन पंचतीर्थी
॥ ई०॥ संवत् १५१५ वर्षे आषाढ वदि १ ऊकेशवंशे आयरिया गोत्रे सा० पूना पुत्र सा० रूपा भार्या मोही तत्पुत्रेण सा० कान्हा सुश्रावकेण पुत्र लखमणादि सहितेन श्री नमि बिंब का० श्री खरतरगच्छे श्रीश्रीश्री जिनभद्रसूरिपट्टे श्री जिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभं भवतु ॥ १३. श्री श्रेयांसजिन पंचतीर्थी
॥ संवत् १५६३ वर्षे पौष वदि ५ रवौ श्री वीरवंशे सं० ठाकर भा० रमकू सं० नागड भा० रत्नू पुत्र सं० लाला सुश्रावकेण भा० कमी पुत्र सं० कुरा भा० रमाई पुत्र सं० पुजा रीडा प्रमुख कुटुंबसहितेन स्वपुत्र सं० अपा पुण्यार्थं श्रीश्रीश्री अंचलगच्छेश श्री भावसागरसूरीणामुपदेशेन श्री श्रेयांसनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री संघेन श्रीपत्तन वास्तव्य ॥ १४. श्रीपार्श्वजिन पंचतीर्थी __सं० १४७३ जेष्ट शुदि ५ बाभ गोत्रे स० भेजा पुत्र सा० सामी पुत्रः खेता जयसिंघ तिहुणा साल्हा सोना .... स्वपित्रोः श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंब का० प्र० मलधारि श्रीपतिसागरसूरिभिः।
For Private and Personal Use Only
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुजराती भाषासाहित्यमां जैन रासाए अने कविताए लीधेलुं प्रथम स्थ
गांधी वल्लभदास त्रीभोवनदास
अनेक जैन कवि-महात्माओए अनेक रासाओ लखेला छे. गद्यमां कवितामां लखायेला अनेक महापुरूषोना चरित्रोना- कथारूप ग्रंथोने मुख्यत्वे रास एवं नाम आपेलुं होय छे. आवा रासाना ग्रंथोमां जुदी जुदी नीति अने धर्मनी वातो समजाववा माटे उन्नत आत्माओना जीवन चरित्रो आपवामां आवेलां होय छे.
वैष्णवधर्ममां पण केटलाक रासो ते धर्मना-महात्माओए बनावेला छे, परंतु जैन कविना बनावेला रासो तरफ दृष्टि करतां तेमां जे नवरस - युक्त वर्णनो आपेल छे तेवा तेमां नथी एम जणाय छे. जैन रासोमा केटलेक स्थळे तो ते रस अने अलंकारथी छलकाई जाय छे एटलुंज नहि, परंतु रसना आलंबन, उद्दीपन, विभाव वगेरे साधनोनो ज्यां जेवो घटे तेवो उपयोग करी ए वर्णनो वांचवामां आहलाद थाय तेवां रसभरित कर्यां छे. तेज आवी कृतिने जैन कवियोए रास एवं नाम आपेल छे.
आवा रासोमांथी जेम केटलेक अंशे जैन इतिहास विभाग देखाय छे तेम जुनी गुजराती भाषा ते समये केवी हती, कया सैकामां शुं फेरफार थया तेनुं पण भान थाय छे. वळी जैन साहित्य शब्दनो खरो अर्थ पण तेमां सार्थक थाय छे, ते पण जरूरी आतवाळु छे.
जैन रासोनी कविता हालना कवियोनी पेठे वृत, के छंदमां लखवामां आवेल नथी, परंतु अमुक राग अने तालसहित गवाय अने तेमां कोइ राग रागणीनी छाया आवे एवी देशीयो, ढाळो, गरबीओ विगेरेमां रचायेल छे.
कवि प्रेमानंदे ज्यारे कडवां अने दयारामभाइए मीठां एम पोतानी कविताना मथाळे लख्युं छे, त्यारे जैन कविओए देशीओनुं नाम आपी उपर ढाळ पहेली, बीजी एम लखेल छे, अने कवि प्रेमानंदनी कवितामां जेम वलण आवे छे तेम जैनकवि रचित रासाओमां ढाळनी पूर्वे दुहा, दोहरा के सोरठा दोहरा आपेल होय छे.
जैन कवि विरचित रासाओमां मंगळाचरणमां देव, गुरु ने सरस्वती देवीनी स्तुति करेली होय छे अने कया पुरूष माटे अने धर्मना कया स्वरूप उपर रास लख्यो छे ते जाणवामां आवे छे. दरेक रासमां छेवटे प्रशस्ति रचनार महा पुरूषनुं नाम, रचवानो समय, स्थळ, गाम, संवत, मास, वार विगेरे तेमज पोताना गुरूनी परंपरा पेढीनुं नाम
For Private and Personal Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
27
August-2018 आपवामां आवतुं होवाथी ते ऐतिहासिक साहित्य- अंग पण बने छे अने जेथी तेने सहायरूप छे. मुसलमानी राज्यना आरंभनो काळ गुजरातमां अंधाधुंधी अने त्रासनो तेमज हिंदुमंदिरो, धर्म अने साहित्यना विध्वंसनो केटलेक अंशे हतो.
आवा जुलमवाळा काळमां लोकोने संस्कृत, मागधी, प्राकृत आदि भाषाओनो अभ्यास करी उंचु तत्त्वज्ञान मेळवे तेटली शांति नहोती, परंतु उलटा साहित्यना भंडारोनुं रक्षण करवू मुश्केल थइ पडवाना कारणे ते भंडारो मांहेनां पुस्तको विनाश थवाना भये संताडी मुकवामां आवता हता, तेवा संजोगमां तेमज प्राकृत अने संस्कृत भाषानां अज्ञ जीवो माटे-सामान्य मनुष्यो माटे ते वखतना लोकोनी अभिरूचि उपर लक्ष आपी आवा रासो रचवामां आवेल छे.
आवा त्रासना वखतमां पण जैन महात्माओ-धर्मगुरूओ जागृत हता. आवा रासोनी रचना जैनधर्मना आगम उपरथी लीधेल छे, ते निःसंदेह वात छे. सामान्य मनुष्य प्राकृत ने संस्कृत भाषानुं ज्ञान मेळवी धर्मबोध लई शके तेम न होवाथी, ते काळमां चालती सरल गुजराती भाषामां काव्यरूपे तेवा मनुष्यो धर्मबोध पामी शके, सरळताथी समजी शके एवी स्वपरहित बुद्धिथी संसारथी त्यागी थयेल संयमी महानपुरूषोए आगम-सूत्रो, संस्कृत काव्योमांनी आख्यायिकाओने रासरूपे देशी भाषामां उतारी रचना करी. ____ मुंबई युनीवर्सिटीनी एम. ए. नी परिक्षामां पंडितवर्य श्री नेमविजयजी रचित शीलवतीनो रास गुजराती कॉर्समां दाखल थयो छे, के जे रास वडोदरानी प्राचीन काव्यमाळाना अंकमां विवेचन सहित प्रगट थयेल छे. तेमां रा0 ब0 हरगोवींददास कांटावाळाए जणावेल छे के “जे रासानो सामान्य अर्थ कहाणी थाय छे. ते उपरथी आवा कथाना संयोगे रासो कहेवानो परिचय पड्यो हशे.” ।
रासामां कहेली कथाओ कवि कल्पित हशे के मूळमां कांइ सत्यता होई तेमां कविनी कल्पनाए वधारो कर्यो हशे? ते विषे अहिं विवेचन करता नथी; परंतु आ कथाओ घणी रसभरी अने मनोरंजक होय छे एमां संशय नथी. अमारा जोवामां जे जे रासाओ आव्या छे ते सघळामां अमे एकवार सामान्य रीते जोईये छीये के ते बधामां अद्भत संकलना श्रोताओना मनने चमत्कार उत्पन्न करावे छे तेथी कविओ ते कारणे लोकश्रद्धाने पीछाणी शक्या हशे एम समजाय छे.
मंत्र सिद्धि सुवर्ण सिद्धि, रत्नादिकना चमत्कारी गुणो, भूत प्रेतादिकनी अद्भुत क्रियाओ, आकाश गमन, वृक्षादिनु एक ठामथी बीजे ठाम उडी जq ईत्यादि अनेक
For Private and Personal Use Only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
अगस्त-२०१८ कथाओ एवा रासाओमां वर्णवेली छे. धर्म अने सुनीतिने केवो गाढ संबंध छे ते जैन कविओना लखायेला रासो परथी स्पष्ट मालम पडी आवे छे.”
उपर प्रमाणे रा. ब. कांटावाळाए जैन रासोना संबंधमां ते रासोनी कथा रसभरित अने मनोरंजक होय छे, तेम का छे, तेमां तो ते अमारा अभिप्रायने मळता छे, परंतु कल्पित छे के कंई सत्यता युक्त छे, तेमां तेओश्री शंकाशील जोवाय छे; तो ते संबंधमां मारे जणावq जोईये के, जेम मिमांसक दर्शनना मुख्य शास्त्र वेद ईश्वर प्रणित होइ, तेमां आवेल कथाओ सत्य होइ शके, तेम जैन धर्मना मूळ सूत्रो (आगमो) के जे तिर्थंकर भगवाने प्ररूपेला होईने आ जैन रासो ते आगमोना कथानकोमाथी पद्य रूपे उद्धृत थयेला होवाथी ते सप्रमाण छे.
हालमां तेवा रासो सुमारे पोणा चारसो हाथ आव्या छे, छतां बीजा रासो पण भंडारोमां पडेला होइ अने प्रसिद्धिमां न आव्या होय ते बनवाजोग छे; एटले जो आ बधा रासो प्रगट थाय तो अनेक काव्यदोहनो ते संग्रहमांथी बहार आवी शके. __जैन दर्शनमां श्वेताम्बरी अने दिगम्बरी एम बे मुख्य भेदो छे. श्वेताम्बरीमां मूर्तिपूजक अने स्थानकवासी एम बे भेदो छे. जोवाता रास संग्रहमां श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन महात्माओनी कृतिना घणा रासो छे. ज्यारे स्थानकवासी कृत धर्मसींहजी, धर्मदासजी, खोडीदासजी, जेमलजी ऋषी, तिलोकऋषी, जेठमलजी अने हमणां थई गयेला श्री उमेदचंद्रजी ईत्यादि मुनिओएज थोडा रासो लखी गुजराती साहित्यवृद्धिनी दिशामां कंईक प्रयत्न कर्यो छे, तेम मारे कहेवू जोईये.
कविता जेवी चीज सारा रागमां गवातां घणा जीवोने प्रिय थयेल छे. गायनथी मनुष्यो तेमज पशुओर्नु पण चित्त ललचाय छे.जेथी कविता तरफ रुचि करावी भकितने नीतिना रस्ते दोरावानुं कार्य आवा मनोरंजक रसभरित रासोवडे जैन महात्माओए करेलुं होय तेम चोक्कस जणाय छे.
शास्त्रोना वांचन- बाळ जीवोने कठिन कार्य होवाथी आवा रासो वांचवाथी ते वधारे प्रिय थइ संगीतना रस साथे बोध पामी शके छे. केटलाक रासो वांचतां तेना महापुरूषोए तर्क अने कवित्व शक्तिने एटली बधी सराणे चढावी होय छे के ते वांचतां ते पुरूषोना बुद्धिबळनी परीक्षा स्वाभाविक थइ जाय छे.
दरेक रासमां मुख्य पात्रे संसारत्यागी तेमणे स्वर्ग के मोक्ष सुखनी प्राप्ति कर्यानुं जणाय छे के जे दरेक जावोने ते मेळव्या सिवाय छुटको नथी. मोक्षगामी उच्च पात्रनेज कविश्री मूळ ग्रंथोमांथी मुख्य पात्र तरीके रासमां पसंद करे छे, अने
For Private and Personal Use Only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
20
SHRUTSAGAR
August-2018 खरेखर सद्वर्तनशाळी उच्च कोटिना पात्रने ज सद्गुणशाळी बनाववानो कविनो आशय स्तुतिपात्र अने उपकारक छे.
जैन कविश्रीना अनेक रासोमांथी केटलाक जेमके विमळ मंत्रीश्वरनो रास, कुमारपाळनो रास विगेरेमा ऐतिहासिक ज्ञान आपवानो योग्य प्रयत्न थयो छे, एटले रासोमां मात्र महात्माओना जीवनवृत्तांत नथी, परंतु ऐतिहासिक साहित्य पण आवेल छे. तेनी साथे व्यवहार- ज्ञान, ज्योतिष, सामुद्रीकशास्त्रनुं ज्ञान, पण किंचित् किंचित् जणाय छे वळी महात्मा श्रीकृष्णजी विगेरे यादवो जैनधर्मी हता. __वल्लभीपुरना राजा शीलादित्यना दरबारमां पण जैन महात्माओ धर्म संबंधी संवाद करता हता. वनराज चावडाथी मांडीने विशलदेव वाघेला अने राजा कमारपाळ सुधीनो ईतिहास तपासीए तो तेमां जैन मुनिओ अने जैन मंत्रीओ अनेक थई गया छे, ते देखाय छे, आवा रासा जैन महात्माओ उपरांत जैन गृहस्थोए पण लखी गुजराती साहित्यमां अभिवृद्धि करी छे. जेथी एम जणाय छे के गुजराती साहित्यनी वृद्धि माटे अने धर्मनीतिना सिद्धांत तरफ जनसमूहने वाळी शकाय तेवा पात्रो आगमसूत्रोमांथी पसंद करी, तेमना वर्णनो बताववानो प्रयत्न पण आ रासोमां करवामां आव्यो छे; आम छतां किंचित पण कोईपण महाशये जैन गुजराती साहित्यने अत्यारसुधी पुरतो ईन्साफ आप्यो नथी तेथी ते तरफ जन समाजनुं लक्ष जोइये तेटलुं खेंचायु नथी.
जैन कविओ के जेनी कृतीथी गुजराती भाषा गुजरातमां जन्म पाम्यानुं जैन ईतिहासथी प्रथम मान धरावे छे, एम जणाय छे, अने ते गुजराती भाषा गुजराती कवितानी भाषामां (कविताओमां) सवी, नयरी, विगेरे जुनी गुजराती भाषाना शब्दोनो उपयोग थयेलो होवाथी तेने हाथ पण अडाड्यो नथी उपरांत गुजराती भाषाना साहित्यमांथी तेने बहिष्कार करवानें कोईपण रीते वाजबी नथी. जो के आपणी आ गुजराती साहित्य परिषद- लक्ष तेना उपर केटलाक वखतथी गयेल होवाथी जैन साहित्ये गुजराती साहित्यमां पण मोटो फाळो आप्यो छे एम हवे केटलाक साहित्यप्रेमी साक्षर बंधुओने जणायु छे तेथी खुशी थवा जेतुं छे.
हालमा मात्र गुजराती पांच धोरण भणी इंग्रेजी स्कुलो अने आगळ कोलेजोमां दाखल थइ, भणी अने उपाधि मेळवनार केटलाक गुजराती बंधुओ कहे छे के हालमां विद्वानोनी संस्कृतमय गुजराती भाषा अमाराथी समजाती नथी, तेटला उपरथी तेवा विद्वानोनी तेवी कृति वांचवाथी दूर रहेवाय नहि, तो पछी तेनाथी गुजराती भाषाने पण गुजराती भाषा साहित्य न कहेवू एम बनेज नहीं. प्रथमथीज जैन साहित्य तरफ
For Private and Personal Use Only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
30
श्रुतसागर
अगस्त-२०१८ बेदरकारी बताववामां आवी न होत तो गुजराती साहित्यने परिपुष्ट थवानी जोगवाई क्यारनी मळी गई होत; परंतु आमां केटलेक अंशे जैन कोम पण पोताना तेवा प्रमाद माटे ठपकापात्र छे. केटलाक विद्वानो कहे छे तेम जैन गद्य, पद्य साहित्य तो मात्र तेमना धर्मने लगतुं होवाथी गुजराती भाषाना अभ्यसीओनुं लक्ष तेना तरफ खेंचायु नथी ते पण तेओनुं अजाणपणुं सुचवे छे.
गुजराती भाषाना प्रथम जन्मकाळमां जैन मुनिओ अने जैन मंत्रीओ दर्शन देता जणाय छे. जैनोना संपूर्ण उदयकाळमां ज्यारे बीजाओ तेओ तरफ जुदा भावथी जोता हता, त्यारे ए जैन महापुरूषो बीजाओ तरफ उदार भावथी वर्तता हता, एम गुजरातनो जैन ईतिहास अने आवा रासो तपासतां जणाय छे; एटलं ज नहीं परंतु ते ते प्रसंगोए मुनिओए साहित्य, रासो, काव्यो, ईतिहास अने उपदेशक ग्रंथो लखी गुजरातना साहित्यनी वृद्धि करी छे.
तेमज जैन गृहस्थो वस्तुपाळ-तेजपाळ जेवा अमात्यो वगेरे ए पण लखी साहित्यमां अभिवृद्धि करी छे; जेथी एम जणाय छे के गुजराती साहित्यनी वृद्धि माटे अने धर्मनीतिना सिद्धांतोना समाजमां प्रचार माटे असाधारण श्रम लइ बीजाओ माटे अनुकरणीय द्रष्टांत मुक्युं छे. तेवू जैन साहित्य हजु पण अप्रगट अवस्थामां ज्यांत्यां पडी रही उद्धईने बतावी देवानो, के प्रमादवश तेनो अयोग्य नाश थवा देवानो आ जमानो नथी. अत्यारना ब्रिटीश राज्यमां ते संरक्षित होवाथी तेने जलदी प्रगट करवानुं कार्य जैनदर्शनना मुनिओ अने श्रीमानो जलदी मुख्यत्वे करीने हाथ धरशे एम अमे नम्र भावे सूचना करीए छीये. ___ उपर जणावेल रासाओ जैन उपाश्रय धर्मना स्थानमा आजे पण चोमासानानिवृत्तिना-दिवसोमां तेमज केटलेक स्थळे उनाळाना लांबा दिवसोमां पण बपोरना वखते मुनि महाराजाओ के जाणकार जैन गृहस्थो वांचे छे अने अनेक श्रोताओ श्रवण करे छे. जैन शास्त्रो आगमो वांचवा-विचारवा के समजवानुं सामान्य जीवो माटे मुश्केल होवाथी तेओना लाभ माटे धर्मनीतिनुं सरळ रीते शिक्षण आपनारा आवा रासो आ देशमां रचनार महापुरूषोए तेवा चारसो पांचसो वर्षनो भूतकाळ तपासतां जनसमूह उपर महद् उपकार कर्यो छे एम सहज जणाय छे.
गुर्जर भाषानी स्थिति प्रदेशमां जैन कविओ सारी रीते दीपी उठ्या छे. आवा रासोमां आवेली तेमनी कविताओए अनेक रंगो देखाड्या छे. अनेक दाखला, द्रष्टांतो आपी दान-शील-तप-भावना-अहिंसा-सत्य-ब्रह्मचर्य, मैत्री-करूणा-प्रमोद अने
For Private and Personal Use Only
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
31
SHRUTSAGAR
August-2018 माध्यस्थपणु विगेरे बाबतनो महिमा बताववा कविवरोए सारो श्रम लीधो छे.
आ बाबतमां ध्यान खेंचवू जोइए के श्री नरसिंह महेता, प्रेमानंद, दयाराम के भालण कविनी के तेवा बीजा गुजराती कविओनी कविताओ धर्मने आगळ राखीने रचाय छे, एक शामळभट्ट सिवाय बीजा जुना घणाखरा कविओनी कविता पोताना धर्मनेज लगती छे. पोत पोताना धर्मने लगती कविताओने पण गुजराती भाषामां स्थान मळवू ज जोइए. ___ घणुंखरूं संस्कृत कविओर्नु अनुकरण करी असलना गुजराती कविओ पोतानी कविताओ रची गया छे अने तेमां घणो भाग धर्म संबंधी छे. आपणा भारतवर्षमां धर्मभाव ने आत्मवादनुं प्राबल्य होवाथी जेओ धर्म संबंधी कविता लखे छे तेज कविता, कथा, रासा वगेरे आ देशनी प्रजा पछी ते पोते गमे ते धर्म पाळती होय तेने प्रिय तथा पूज्य थइ पडे छे अने तेथी तेओ परंपराए अमर थाय छे. __ जेथी आटली हकीकत निवेदन कर्या पछी स्पष्ट समजाशे के धर्म विषये लखायेली कविताओ पण गुजराती भाषा साहित्यमांथी जेम बातल करी शकाय नहिं तेम ते पण गुजराती साहित्यमां अमुक स्थान भोगवती होवाथी गुजराती साहित्यनी अभिवृद्धिना अंगो पैकी- एक मुख्य अंग छे!!!
श्री आत्मानंद प्रकाश, वीर सं.२४५०, पु.२१, अंक-११ मांथी साभार
क्या आप अपने ज्ञानभंडार को समद्ध करना चाहते हैं ?
पुस्तकें भेंट में दी जाती हैं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में आगम, प्रकीर्णक, औपदेशिक, आध्यात्मिक, प्रवचन, कथा, स्तवन-स्तुति संग्रह आदि विविध प्रकार के साहित्य तथा प्राकृत, संस्कृत, मारुगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी, पुरानी हिन्दी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं की भेंट में आई बहुमूल्य पुस्तकों की अधिक नकलों का अतिविशाल संग्रह है, जो हम किसी भी पाठशाला, ज्ञानभंडार को भेंट में देते हैं. संग्रह की सूची भी उपलब्ध है.
यदि आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं तो यथाशीघ्र संपर्क करें. पहले आने वाले आवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी.
For Private and Personal Use Only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समाचार सार राष्ट्रसन्त प. पू. आचार्य भगवन्त श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.आदि ___ठाणा का भायंदर, मुम्बई में कल्याणकारी चातुर्मास प्रवेश
मुंबई, भायंदर के श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय जैन संघ के पावन प्रांगण में अनंत पुण्य के स्वामी श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ परमात्मा की करुणामयी छत्रछाया में जिनशासन के महान प्रभावक, राष्ट्रसन्त पूज्यपाद आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा., पू. आचार्य श्री हेमचन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी म. सा., पर्यायस्थविर प. नीतिसागरजी म. सा. आदि मुनि भगवन्तों एवं योगनिष्ठ समुदायवर्तिनी पू. सा. नलिनयशाश्रीजी म. सा. आदि श्रमणीवृंद का कल्याणकारी चातुर्मास प्रवेश आषाढ सुद-६, दि.१८-७-२०१८ बुधवार के दिन हर्षोल्लास के वातावरण में भव्यातिभव्य सामैया के साथ चतुर्विध संघ की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।
महेश्वरी भुवन में नवकारशी के बाद प्रातः ८.३० बजे पूज्य गुरुभगवन्तों का भव्य सामैया भायंदर के १५० फुट रोड स्थित परम गुरुभक्त श्री मांगीलालजी शाह के निवास स्थान वसंत वैभव से प्रारम्भ हुआ। 'गुरुजी अमारो अन्तर्नाद, अमने आपो आशीर्वाद की गगनभेदी ध्वनि के साथ अनेक गुरुभक्त इस सामैया में सम्मिलित हुए।
स्थानीय महिला मंडल, शासनध्वज लहराते हुए शासन सैनिक, सिर पर मंगलकलश लिए चल रही बहनें आदि अनेक विशेषताओं से युक्त इस सामैया में सुप्रसिद्ध दिनकर बैण्ड का मधुर संगीत मन्त्रमुग्ध कर रहा था। भायंदर के राजमार्गों पर से होते हुए यह सामैया बावन जिनालय के जैनसंघ में पहुँचकर विराट धर्मसभा में परिवर्तित हो गया। श्रीसंघ के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री सुरेशभाई संघवी, प्रमुख श्री मांगीलालजी शाह, उपप्रमुख श्री चन्द्रकान्तभाई सिरोया, सेक्रेटरी श्री योगेशभाई शाह, श्री परेशभाई शाह, श्री राकेशभाई शाह, श्री दिनेशभाई तातेड एवं कमिटी के अन्य सदस्यों ने पूज्यश्री का भव्य स्वागत किया
और पूज्यश्री ने चातुर्मास प्रवेश करके गुरुभक्तों को मांगलिक सुनाया। गुरुपूजन और कामली का चढावा अहमदाबाद के जाने-माने बिल्डर श्री दशरथभाई पटेल परिवार ने लिया। इस पावन अवसर पर आणंदजी कल्याणजी पेढी के ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई शाह, दीव-दमण-दादरानगर हवेली और सेलवास के गवर्नर श्री प्रफुलभाई पटेल, खासदार श्री राजन विचारे, मिरा-भायंदर के आमदार श्री नरेन्द्र महेता, महापौर श्री डिम्पलबेन महेता एवं पूर्व महापौर श्रीमती गीताबेन जैन, नगरसेवक श्री सरेशजी खण्डेलवाल, श्री ध्रुवकिशोर पाटिल, श्री भगवती शर्मा, श्री रमेश जैन, श्रीमती सुमन कोठारी, श्रीमती सीमाबेन शाह तथा साईन शो के प्रकाशक श्री दशरथभाई पटेल एवं अनेक महानुभावों ने उपस्थित रहकर पूज्यश्री के आशीर्वाद प्राप्त किए। मुम्बई एवं भारतभर के विभिन्न राज्यों से अनेक गुरुभक्त पूज्यश्री के इस चातुर्मास प्रवेश के अवसर पर विशेष रूप से भायंदर
(शेष पृष्ठ ३४ पर)
For Private and Personal Use Only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पूज्य योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के
समुदायवर्तीसाधु-साध्वीजी म.सा. की चातुर्मास सूची 1. प. पू. तपागच्छाधिपती आचार्य श्रीमद् मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजीम.सा,
आचार्यदेवश्री उदयकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा आदि ठाणा
श्री सेटेलाईट श्वे. म. जैन. संघ. - श्यामल चार रस्ता सेटेलाईट, पिन ३८००१५ 2. प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूसूरीश्वरजी म.सा., आचार्यदेवश्री
श्री हेमचंद्रसागसूरीश्वरजी म.सा., गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी म.सा., पर्यायस्थविर श्री नीतिसागरजी म.सा आदि ठाणा-८ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, बावन जिनालय जैन पेढ़ी ट्रस्ट, देवचंदनगर, जिल्ला-ठाणा,
भायंदर वेस्ट, मुंबई, पिन ४०११०१ 3. आचार्यदेवश्री वर्धमानसागरसूरीश्वरजी म.सा तथा पूज्य आचार्यदेवश्री विमल
सागरसूरिजी म. सा. आदि ठाणा-७
दर्शन बंग्लो, वासुपूज्य मंदिर के सामने, तळेटी रोड, पालीताना, पिन ३६४२७० 4. आचार्यदेवश्री अमृतसागरसूरीश्वरजी म.सा, आचार्यदेवश्री अरुणोदयसागर
सूरीश्वरजी म. सा.
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर, पिन ३८२००७ 5. आचार्यदेवश्री विनयसागरसूरीश्वरजी म.सा आदि ठाणा-२
श्री त्रिभुवन जैन श्वेताम्बर मू. संघ, १०९ए, मोतीलाल नेहरू रोड, कोलकाता 6. आचार्यदेवश्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म.सा, आदि ठाणा-२
श्री वर्धमाननगर श्वे. जैन संघ, संभवनाथ जैन मंदिर, 218, भंडारा रोड, नागपुर 7. आचार्यदेवश्री विवेकसागरसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा-२
श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर-उपाश्रय, पार्श्व दर्शन, पहेलो माल, जुना नागरदास
रोड, अंधेरी (ईस्ट) मुंबई, पिन-४०००६९ 8. आचार्यदेवश्री अजयसागरसूरीश्वरजी म.सा आदि ठाणा-३
प्रेरणातीर्थ जैन संघ, सेटेलाईट, अहमदाबाद, पिन ३८००१५ 9. आचार्यदेवश्री प्रसन्नकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. आदि ठाणा-२
श्री जूहू स्कीम जैन संघ, प्लेजेन्ट पैलेस, नॉर्थ साउथ, रोड नं.-५, विले पार्ले वेस्ट, मुम्बई-४०००५६ 10. आचार्यदेवश्री अरविंदसागरसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा-६
श्री मुनिसुव्रतस्वामि जिनालय, श्री राजस्थान जैन संघ, जैन मंदिर रोड, टेम्बी नाका, ठाणा (वे) पिन ४००६०१
For Private and Personal Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
34
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
11. आचार्यदेवश्री श्री महेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म.सा आदि ठाणा-३
श्री शान्तिनाथ जैन श्वे. मू. पू. संघ - ३७०, जैन टेम्पल, ७वां क्रोस, लक्ष्मी रोड, शांतिनगर, बेंग्लोर, पिन५६००२७
12. गणिवर्य श्री नयपद्मसागरजी म.सा
आदित्य हाईट्स, घासवाला कम्पाउंड, साने गुरुजी मार्ग, RTOलेन, ताडदेव - मुंबई 13. मुनिराज श्री शांतिसागरजी म. सा. आदि ठाणा
समाधि मंदिर, विजापुर (उत्तर गुजरात )
अगस्त २०१८
(पृष्ठ ३२ से आगे)
पधारे थे। बावन जिनालय की ओर से उपस्थित मेहमानों की साधर्मिक भक्ति रखी गई थी। पूज्यश्री के प्रवेश के अवसर पर विशेष प्रभावना भी की गई थी।
इस प्रसंग पर प. पू. आचार्य श्री प्रसन्नकीर्तिसागरसूरिजी म. सा., पू. आ. श्री विवेकसागरसूरिजी म. सा., पू. गणिवर्य श्री नयपद्मसागरजी म. सा. इस कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित रहे ।
श्री महावीर जैन विद्यालय का २४वाँ साहित्य समारोह का आयोजन
महावीर जैन आराधना केन्द्र के प्रांगण में दि. दि. १२/७/१८ से १४/७/१८ तक त्रिदिवसीय महावीर जैन विद्यालय का २४वाँ साहित्य समारोह मनाया गया. जिसमें विविध विषयों पर लेख प्रस्तुत किये गये। अंतिम दिन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के अवलोकन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पावर पॉईन्ट प्रेजेन्टेशन द्वारा संस्था का परिचय दिया गया, विविध प्रकार के हस्तप्रतों व ताडपत्रीय ग्रंथों का साक्षात् परिचय दिया गया एवं सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय की भी मुलाकात ली गई। संस्था का परिचय प्राप्त कर सभी अत्यंत प्रभावित हुए ।
३० विश्वविद्यालय के ३८ ग्रन्थपाल कोबा की मुलाकात पर
For Private and Personal Use Only
गुजरात युनिवर्सिटी के माध्यम से भारत भर के ३० विशिष्ट विश्वविद्यालयों के ३८ ग्रन्थपाल आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा की मुलाकात हेतु पधारे थे। उन्हें पावर पॉईन्ट प्रेजेन्टेशन के माध्यम से ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों का परिचय कराया गया। हस्तप्रतों एवं ताडपत्त्रीय ग्रन्थों का परिचय दिया गया । हस्तप्रतों का ऐसा विशाल संग्रह देखकर सभी भावविभोर हो गए। उन्होंने जैन शिल्प-स - स्थापत्य कलाकृतियों के संग्रहरूप सम्राट् संप्रति संग्रहालय के दर्शन भी किए। ज्ञानमन्दिर की व्यवस्था व सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय का अदुभुत संग्रह देखकर सभी ने मुक्त स्वर से प्रशंसा की ।
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भायंदर, मुंबई में प. पू. राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा..
के भव्यातिभव्य चातुर्मास प्रवेश की कुछ झलकियाँ
SEE
कट्याणकाश चातृमाथ
मलकानयाधानीमा
पूज्य आचार्य भगवन्त को कामली ओढ़ाते
उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए अहमदाबाद के बिल्डर श्रीदशरथभाई। पटेल एवं दीव, दमन व दादरानगर हवेली के
हुए दीव, दमन व दादरानगर हवेली के
एडमिनिस्ट्रेटर श्री प्रफुल्लभाई पटेल एडमिनिस्ट्रेटर श्री प्रफुल्लभाई पटेल
उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए प.पू. आचार्य भगवन्त
श्री महावीर जैन विद्यालय का २४वाँ साहित्य सम्मेलन
श्री महावीर जैन विद्यालय के २४वें साहित्य सम्मेलन में पधारे हुए महानुभाव ज्ञानमन्दिर और यहाँ संग्रहित हस्तप्रतों व ताडपत्रों का परिचय प्राप्त करते हुए 35
For Private and Personal Use Only
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City SO, and on 20th date of every month ander Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2018, ता SUPRIORIES समाजणEसपनाल्न सांवेर गाँव स्थित पार्श्वजिन धातुप्रतिमा लेख BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205,252 फेक्स (079) 23276249 Website: www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar Pin-382007, Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar.Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007. Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI For Private and Personal Use Only