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August-2018 आपवामां आवतुं होवाथी ते ऐतिहासिक साहित्य- अंग पण बने छे अने जेथी तेने सहायरूप छे. मुसलमानी राज्यना आरंभनो काळ गुजरातमां अंधाधुंधी अने त्रासनो तेमज हिंदुमंदिरो, धर्म अने साहित्यना विध्वंसनो केटलेक अंशे हतो.
आवा जुलमवाळा काळमां लोकोने संस्कृत, मागधी, प्राकृत आदि भाषाओनो अभ्यास करी उंचु तत्त्वज्ञान मेळवे तेटली शांति नहोती, परंतु उलटा साहित्यना भंडारोनुं रक्षण करवू मुश्केल थइ पडवाना कारणे ते भंडारो मांहेनां पुस्तको विनाश थवाना भये संताडी मुकवामां आवता हता, तेवा संजोगमां तेमज प्राकृत अने संस्कृत भाषानां अज्ञ जीवो माटे-सामान्य मनुष्यो माटे ते वखतना लोकोनी अभिरूचि उपर लक्ष आपी आवा रासो रचवामां आवेल छे.
आवा त्रासना वखतमां पण जैन महात्माओ-धर्मगुरूओ जागृत हता. आवा रासोनी रचना जैनधर्मना आगम उपरथी लीधेल छे, ते निःसंदेह वात छे. सामान्य मनुष्य प्राकृत ने संस्कृत भाषानुं ज्ञान मेळवी धर्मबोध लई शके तेम न होवाथी, ते काळमां चालती सरल गुजराती भाषामां काव्यरूपे तेवा मनुष्यो धर्मबोध पामी शके, सरळताथी समजी शके एवी स्वपरहित बुद्धिथी संसारथी त्यागी थयेल संयमी महानपुरूषोए आगम-सूत्रो, संस्कृत काव्योमांनी आख्यायिकाओने रासरूपे देशी भाषामां उतारी रचना करी. ____ मुंबई युनीवर्सिटीनी एम. ए. नी परिक्षामां पंडितवर्य श्री नेमविजयजी रचित शीलवतीनो रास गुजराती कॉर्समां दाखल थयो छे, के जे रास वडोदरानी प्राचीन काव्यमाळाना अंकमां विवेचन सहित प्रगट थयेल छे. तेमां रा0 ब0 हरगोवींददास कांटावाळाए जणावेल छे के “जे रासानो सामान्य अर्थ कहाणी थाय छे. ते उपरथी आवा कथाना संयोगे रासो कहेवानो परिचय पड्यो हशे.” ।
रासामां कहेली कथाओ कवि कल्पित हशे के मूळमां कांइ सत्यता होई तेमां कविनी कल्पनाए वधारो कर्यो हशे? ते विषे अहिं विवेचन करता नथी; परंतु आ कथाओ घणी रसभरी अने मनोरंजक होय छे एमां संशय नथी. अमारा जोवामां जे जे रासाओ आव्या छे ते सघळामां अमे एकवार सामान्य रीते जोईये छीये के ते बधामां अद्भत संकलना श्रोताओना मनने चमत्कार उत्पन्न करावे छे तेथी कविओ ते कारणे लोकश्रद्धाने पीछाणी शक्या हशे एम समजाय छे.
मंत्र सिद्धि सुवर्ण सिद्धि, रत्नादिकना चमत्कारी गुणो, भूत प्रेतादिकनी अद्भुत क्रियाओ, आकाश गमन, वृक्षादिनु एक ठामथी बीजे ठाम उडी जq ईत्यादि अनेक
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