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आध्यात्मिक पदो
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी
(हरिगीत छंद)
सेवा सुभक्ति वेद छे अन्तर् विषे जे प्रगटतो, पापो कर्यां कोटिगमे क्षण मात्रमां ते विघटतो; ज्यां भेद दृष्टि रही नहीं दुनिया निजात्मावत् भली, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. निज आत्मवत् सहु जीव पर ज्यां प्रीतिनां झरणां वहे, सहु जाति आदि भेद भावो ज्यां न ते किंचित् रहे; एवा फकीरो योगीओ सन्यासीओ वेदो वळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जे शब्दथी वैरो समे ते वेद अन्तर् जाणवो, भाषा गमे ते जातनी त्यां भेद भाव न आणवो; बालक युवा ने वृद्धमा कारूण्य झरणां वहे झरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. उपकारकारक साधुओ वृक्षो नदी ने सरवरो, मातापितादिक वेद छे उपकारी दिल वहेतो झरो; राजा गुरूओ वेद छे उपकार वृत्ति ज्यां वडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्रभु भक्तनां दिल वेद छे दिलमांज वेदो छे घणा, प्रभु भक्त दिलथी उठता, शब्दो ज वेद सुहामणा; स्याद्वादीना शुभ ध्यानमां अन्तर् ध्वनिओ उछळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. स्याद्वाद शासन वेद छे महा संघ तेमज जाणवो, उपशम वगेरे भाव त्रण्य ज वेद मनमां आणवो; सुखकार पुण्य ज वेद छे ने निर्जरा संवर वळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी.
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(क्रमशः)