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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आध्यात्मिक पदो आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी (हरिगीत छंद) सेवा सुभक्ति वेद छे अन्तर् विषे जे प्रगटतो, पापो कर्यां कोटिगमे क्षण मात्रमां ते विघटतो; ज्यां भेद दृष्टि रही नहीं दुनिया निजात्मावत् भली, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. निज आत्मवत् सहु जीव पर ज्यां प्रीतिनां झरणां वहे, सहु जाति आदि भेद भावो ज्यां न ते किंचित् रहे; एवा फकीरो योगीओ सन्यासीओ वेदो वळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जे शब्दथी वैरो समे ते वेद अन्तर् जाणवो, भाषा गमे ते जातनी त्यां भेद भाव न आणवो; बालक युवा ने वृद्धमा कारूण्य झरणां वहे झरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. उपकारकारक साधुओ वृक्षो नदी ने सरवरो, मातापितादिक वेद छे उपकारी दिल वहेतो झरो; राजा गुरूओ वेद छे उपकार वृत्ति ज्यां वडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्रभु भक्तनां दिल वेद छे दिलमांज वेदो छे घणा, प्रभु भक्त दिलथी उठता, शब्दो ज वेद सुहामणा; स्याद्वादीना शुभ ध्यानमां अन्तर् ध्वनिओ उछळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. स्याद्वाद शासन वेद छे महा संघ तेमज जाणवो, उपशम वगेरे भाव त्रण्य ज वेद मनमां आणवो; सुखकार पुण्य ज वेद छे ने निर्जरा संवर वळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only 42 43 44 45 46 47 (क्रमशः)
SR No.525337
Book TitleShrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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