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August-2018
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SHRUTSAGAR समकित मिथ्यादृष्टि दुन्नि दरसण दुइ पहिला, नाण अनाण दुन्नि दुन्नि जाण्या ते सोहिला काय वचनइं हुई जोग दुन्नि उपयोग छ धार, नाण अनाणा दुनि दंसण छ दिसि आहार, मणुय तिरिय उतपात चवन देव नारक चिहुं गति, पधारइं निज कर्म वसई जिहां बंधी छइ मति अंतरमुहूर्त जहन्न आयु उक्कोसुं जलचर, पूरव एक कोडि वरस चउरासी थलचर, सहस बहुत्तरि ख(खे)चर आउ उरपरि तु त्रिपन, भुजपरि मुच्छिम वरस आयु बायालीस पन(?)
॥ ढाल ॥ चउपई॥ आगति दुई हुई गति बावीस, कर्मजोगि आवइ निस दीस, चवन च्यारि गति जिनवरि कही, प्राण थया नव मनविण सही पंच थावर विगलिंदी तिनि(न्नि), पंचिंदी(दि)य तिरि नर ए दुन्नि, दस आवई नारकमांहि जाइ, जोइस कल्य चिंता सवि थाइं योग च्यारि ऊदारिक एक, बीजो मिश्र ऊदारिक रेक, कारमण त्रीजो जाणिवओ, चउथो सच्चासच्च जा(आ)णिवउ(ओ) तिरिय पंचिंदिय गर्भज-दार, वैक्रिय अधिको एक उदार, अवगाहना कहुं जूजूई, दस सय जोयण जलचर थई ख(खे)चर धनुष नव थलचर देह, गाऊ छह उक्कोसु छेह, उरपरि सहस एक भुजपरा, गाऊ नव तनु ते दुह नरा छह संघयण छए संठाण,चउ कसाय सन्ना चउ ठाण, लेशा सघली इंद्रिय पंच, समुदघात दुन्निय नवि संच केवल आहारक नवि जिहां, पंच पूर्विला लाभइ तिहां, सन्नि असन्नी(नि) तिन्नि ज वेद, पर्यापति पूरी नवि भेद
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