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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 August-2018 ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०॥ SHRUTSAGAR मति श्रुत अवधि भेद विभंग, तिन्नि अन्नाण' योग तिम रंग, ऊदारिक ऊदारिकमिश्र, वेउवी[य] आहारकमिश्र कम्मण कह्या कायना सात, च्यारि च्यारि मनि वचनइ वात, योग'' पनर बारह अउपिओग', आहारइं छह दिसिनो भोग ऊपजवो कहीयई उतपात, आऊखं भोगवई उदात, समोहिया जाइं समकाल, असमोहिया" श्रेणिबध-जाल2 चवन चवइं गमनिं गति करई, आगति आवी थानक धरइं, इंद्रिय बल आऊखुं सास, योग-पूर्व करो प्रकास ॥ तो राय मनिं विमासियो, सउ करिसि ए कांइ मारू-ए ढाल ॥ पूछइ जंबू सिर नामिय, कहई सोह[म] गणि सामिय, पिहलउं नारक सात, दंडक द्वारनी वात रत्नप्रभा सक्कराप्रभ, वालुक धूम पंका शुभ, तमा तमप्रभा सात, असंघयणी दुख-घात वैक्रिय तेजस कम्मण, तिन्नि शरीर विडंबन, सात धनुष तिन्नि हाथ, अंगुल छनु ए साथ भवधारणीय शरीर, रत्नप्रभा कहइ वीर, एह थकी वली बिमणं, उत्तर-वैक्रिय-करणं अंगुल असंख भाग, ऊपजवा तनु माग, भवधारणीय व्याख्यात, उत्तर भाग संख्यात न भजइ एकई संघयण, हुंड कहिउ छइ संठाण, क्रोध मान माया लोभ, च्यारि कषायनो खोभ'२ सन्नाहार भय मैथुन, परिग्रह सन्या छइ नवि धन, कृष्ण नील कापोत, लेश्या पाप स्वरूप वेदन कषाय मरण, अ(अं?)तिक प्राण निवारण, वैक्रिय समुदघात, इंद्रिय पंच विख्यात ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525337
Book TitleShrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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